उच्चशिक्षित बेरोजगारों की फौज खड़ी करेगी ऑनलाईन परीक्षाएं

कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर को बड़ी वजह मानकर सरकारें जिस तरह से ऑनलाईन परीक्षाओं को बढ़ावा देती जा रहीं हैं, इससे आने वाले दिनों में उच्चशिक्षित बेरोजगारों की बड़ी फौज खड़ी होती जा रही है। उच्चशिक्षित बेरोजगारों की यह फौज भविष्य में सरकार के लिए ही मुसीबत बनने वाली है।

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कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर को बड़ी वजह मानकर सरकारें जिस तरह से ऑनलाईन परीक्षाओं को बढ़ावा देती जा रहीं हैं, इससे आने वाले दिनों में उच्चशिक्षित बेरोजगारों की बड़ी फौज खड़ी होती जा रही है। उच्चशिक्षित बेरोजगारों की यह फौज भविष्य में सरकार के लिए ही मुसीबत बनने वाली है।

-डॉ. लखन चौधरी

कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर को बड़ी वजह मानकर सरकारें जिस तरह से ऑनलाईन परीक्षाओं को बढ़ावा देती जा रहीं हैं, इससे आने वाले दिनों में उच्चशिक्षित बेरोजगारों की बड़ी फौज खड़ी होती जा रही है। उच्चशिक्षित बेरोजगारों की यह फौज भविष्य में सरकार के लिए ही मुसीबत बनने वाली है।

इस वक्त सरकारें कोई जोखिम ना लेते हुए सबको डिग्री बांटने का जो उपक्रम कर रहीं हैं, यह ना तो सरकारों के लिए सही है, और ना ही स्वयं विद्यार्थियों या युवाओं के लिए उचित है। इसके बावजूद कोरोना की आड़ में धड़ल्ले से डिग्री बांटने का काम चल रहा है। इसका दुर्भाग्यजनक पहलू यह है कि इसको लेकर गंभीरता कहीं नहीं है।

ऑनलाईन परीक्षाएं : कितनी जरूरी, कितनी उपयोगी और कितनी सार्थक ?उच्चशिक्षा में ऑनलाईन परीक्षाएं उन विद्यार्थियों के लिए वरदान साबित हो रहीं हैं, जिन्हें ज्ञान, अनुभव नहीं चाहिए; या कहा जाये कि इनकी तुलना में जिनके लिए डिग्रियां अधिक महत्व रखती हैं। बीच में बड़ी खबर आई थी कि पंजाब में खासकर लड़कियां डिग्रियों के लिए उच्चशिक्षा में बड़ी तादाद में दाखिला ले रहीं हैं।

उच्चशिक्षा की बड़ी डिग्रियों से लड़कियों की बड़े घरानों में आसानी से शादियां हो जाती हैं, लिहाजा पिछले कुछ सालों से पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में उच्चशिक्षण संस्थानों पर लड़कियों के प्रवेश दर कई गुना तक बढ़ गये हैं, एवं लगातार बढ़ते जा रहे हैं। ऑनलाईन परीक्षाएं इस तरह की परिस्थितियों के लिए वरदान सिद्ध हो रहीं हैं।

पंजाब एवं हरियाणा ही क्यों ? छत्तीसगढ़ सहित तमाम ग्रामीण समाज में विवाह के लिए उच्चशिक्षा की डिग्री लेने का चलन लगातार बढ़ता जा रहा है। आज भी बहुत से युवक-युवतियां विवाह में अच्छे प्रस्ताव या दहेज आदि के लिए बड़ी डिग्रियों के पीछे भागते ही हैं। इस मामले में ऑनलाईन परीक्षाओं को एक बार उपयोगी ठहराया जा सकता है।

छत्तीसगढ़ सहित लगभग सारे राज्यों के ग्रामीण, खेतिहर समाज के लिए यह एक वजह हो सकती है, और इन समाजों के लिए ऑनलाईन परीक्षाओं की उपयोगिता समझी जा सकती है। हांलाकि यह कहना इससे अधिक सही है कि इस समय उच्चशिक्षा की ऑफलाईन डिग्री लेना भी कोई कठिन काम नहीं रह गया है।

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ऑनलाईन परीक्षाएं : कितनी जरूरी, कितनी उपयोगी और कितनी सार्थक ?

सरकार के ऑनलाईन परीक्षाओं के इस निर्णय से बहुत से विद्यार्थी खुश एवं संतुष्ट हैं, एवं हो सकते हैं, लेकिन अधिकांश शिक्षक एवं प्राध्यापक सरकार के इस निर्णय से खुश एवं सहमत नहीं दिखते हैं। विद्यार्थियों का ही एक वर्ग है जो इस निर्णय से इत्तफाक नहीं रखता है। जो पढ़ने-लिखने वाला समूह है, वह सरकार के इस निर्णय से बिल्कुल भी सहमत नहीं है। इसकी वजह यह है कि इस पद्धति से हासिल उपाधि या प्राप्त डिग्री कॅरियर अथवा जीवन के लिए कतई लाभदायक या फायदेमंद या सहायक नहीं है, और ना ही रोजगार, स्वरोजगार के लिए मददगार है।

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प्रतिस्पर्धा के इस जमाने में, जहां गलाकाट प्रतियोगिता का युग है; ऑनलाईन पद्धति से हासिल या प्राप्त की गई डिग्री का कोई मोल या मतलब नहीं रह जाता है। एक-एक पदों की नौकरियों के लिए जहां हजारों-हजार की तादाद में बेरोजगारों की फौज खड़ी है, ऐसे में डिग्रियों की ही कितनी कीमत बचती है। जहां भर्तियां प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के माध्यम से होती हों, वहां प्राप्तांकों की क्या कीमत रह जाती है। यह सोचने की बात है।

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बेरोजगारी या स्वरोजगार का मसला एक है। मगर उच्चशिक्षा की गुणवत्ता एवं गुणात्मकता का मसला इससे अधिक महत्वपूर्णं है, जिसकी अनदेखी एवं उपेक्षा हमारी सरकारें लगातार करती आ रहीं हैं। दरअसल में उच्चशिक्षा की महत्ता कॅरियर या रोजगार या स्वरोजगार के लिए जितनी महत्वपूर्णं है या होती है; उससे कहीं अधिक उपयोगी जीवन की समस्याओं एवं चुनौतियों के निपटने के लिए होती है। सरकारों को यह गंभीरता से साचना चाहिए कि आखिरकार ऑनलाईन पद्धति से थोक में डिग्रियां बांटकर उच्चशिक्षित बेरोजगारों की बड़ी फौज खड़ी करने के अतिरिक्त सरकारें कर क्या रहीं है ?

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)

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