बाघ के पीछे पड़े वन विभाग को अनायास हाथ लगे शिकारी!

पिथौरा| बाघ के पीछे पड़ा वन विभाग को अनायास ही शिकारी हाथ लग गये जो भागते भटक गये थे. इसे अपनी बड़ी कामयाबी बताने वाले वन विभाग की यह लापरवाही का सबूत भी है कि बार नवापारा अभ्यारण्य के जंगलों में वन्य जीवों का शिकार जारी है.     

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पिथौरा| बाघ के पीछे पड़े  वन विभाग को अनायास ही शिकारी हाथ लग गये जो भागते भटक गये थे. इसे अपनी बड़ी कामयाबी बताने वाले वन विभाग की यह लापरवाही का सबूत भी है कि बार नवापारा अभ्यारण्य के जंगलों में वन्य जीवों का शिकार जारी है.

बता दें महासमुन्द की सरहद लगे बलौदाबाजार जिले में स्थित  बार अभ्यारण्य मं कुछ दिन पहले वन कर्मियों ने एक कार से दो बोरा चीतल मांस पकड़ा था. वन मण्डलाधिकारी इसे अपनी बड़ी कामयाबी मान रहे हैं,  परन्तु क्षेत्र में शिकार लंबे समय से चल रहा है.  यदि वह विभाग बाघ के पीछे न पड़ कर बेजुबान वन्य प्राणियों को बचाने जुटता तो ये खबर आती ही नहीं.

बाघ: वन ग्रामों के पहुँच मार्गों को वन विभाग के काटे जाने से परेशान ग्रामीण कलेक्टर से मिले
pics : worldwildlife.org
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वन विभाग ने विगत दिनों एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया था कि वन विभाग द्वारा मशक्कत के बाद शिकारियों को पकड़ा गया है. परन्तु सच इसके ठीक विपरीत है. पकड़े गए शिकारी अपनी मूर्खता में पकड़े गए हैं. आरोपी बसना क्षेत्र के जिस गाँव के निवासी हैं उस गाँव के कुछ खबरनवीसों ने भी सोशल मीडिया में इस बात का खुलासा किया है कि पकड़े गए आरोपियों के साथ कुछ अन्य ग्रामीण आये दिन चीतल का मांस बेचते हैं.

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उनकी इस बात से इस खबर की पुष्टि तो हुई ही, यह भी साफ हो गया कि  शिकार ले जाते समय आरोपियों ने जो रास्ता चुना था वो काफी खतरनाक था. जिसमें वे फंस भी गए. लिहाजा ये बात साफ है कि यदि वे किसी अन्य मार्ग से जाते तो शायद वन विभाग को अभी भी शिकार के बारे में पता नहीं चलता.

बार अभ्यारण्य से वन्य प्राणी का मांस कार में ले जाते दो लोगों को वन विभाग ने दबोचा

 

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बड़े शहरों तक सप्लाई

सूत्रों की मानें तो वन क्षेत्र खासकर देवपुर मुख्यालय के आसपास के ग्रामों में शिकार कारोबार बन चुका है. यहां प्रतिदिन शिकार कर मांस बेचा जाता है. यही मांस बड़े शहरों तक आसानी से पहुँच जाता है.

वास्तविकता  यह  

विगत दो वर्ष पूर्व deshdigital ने देवपुर मुख्यालय से शिकार लेकर जाने के रास्तों में वन विभाग द्वारा क्या सुरक्षा उपाय किये गए है. इसकी वास्तविकता परखी थी. जिसमें यह तथ्य सामने आय कि बार अभ्यारण्य के सीमावर्ती ग्रामों से आसानी से ले जाया जा सकता था. शिकार को पिथौरा या कसडोल के रास्ते जितने भी वन विभाग की जांच चौकियां है किसी मे हमारी कार की जांच तो दूर पूछा भी नही गया कि कहा से आ रहे है और कहा जाना है.

बहरहाल, इस घटना से वन विभाग के बारे में आम लोगों की इस धारणा को बल मिलता है कि  वन विभाग के अफसर जंगल या वन्य प्राणियों की सुरक्षा की बजाय शासन से किसी तरह फंड लेने की जुगाड़ में ही लगे रहते हैं, जिससे वनों में अवैध कटाई के साथ वन्य प्राणियों के हो रहे शिकार की भनक तक विभागीय अफसरों को नहीं लगती.

deshdigital के लिए रजिंदर खनूजा

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