प्रशंसा का परिष्कृत रूप है स्तुति जो देवों को प्रिय होती है
'प्रशंसा, इतनी मोहक तथा मीठी होती है कि खाने वाला खाता चला जाता है। उसे इस बात की भी चिंता नहीं रहती कि पचाने की क्षमता उसमें है भी या नहीं? या कहीं वह अपच की स्थिति में रोग-ग्रस्त न हो…
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