गुड़ सा मीठा गुढ़ियारी

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 रायपुर का सुप्रसिद्ध मोहल्ला गुढ़ियारी का इतिहास गुड़ सा मीठा है। इस क्षेत्र के होलसेल किराना मार्केट पर पूरे छत्तीसगढ़ समेत आधे ओड़िशा और आधे झारखंड का बाजार निर्भर है। यहां तक कि नागपुर तक भी गुढ़ियारी से सामान भेजे जाते हैं। किराना मार्किट की वजह है कि कुछ लोग गुढ़ियारी का नाम गुड़ से जोड़कर भी देखते हैं।
असल में गुढ़ियारी छत्तीसगढ़ के अन्य गांवों की तरह एक गांव ही था। इस नाम के कई गांव अंचल के अलग अलग जगहों पर हैं। वैसे गुढ़ियारी से लगकर गोगांव और गोंदवारा नाम के गांव थे। जिनमें से गोंदवारा को गोड़ आदिवासियों से जोड़कर देखा जाता है। आज जहां पर गुढ़ियारी पड़ाव है, वही मूल गुढ़ियारी गांव है।

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इस क्षेत्र की किस्मत तब बदली जब 4 दिसम्बर 1887 को नागपुर से रायपुर तक रेलवे लाइन बिछकर रेल चलने की शुरुआत हुई। इसके बाद रायपुर बिलासपुर रेलखंड का 14 फरवरी 1889 में विस्तार हुआ। ततपश्चात आसनसोल तक मुख्यलाइन का विस्तार 1 फरवरी 1891 में हुआ।
पहले के जमाने में जब पूरे भारत भर रेलवे स्टेशन बनाए गए, वहां रेलवे स्टेशन का गेट सिर्फ एक ओर ही रखा जाता था। स्टेशन के दूसरी ओर सामान उतारने के लिए इंतजाम रखे जाते थे। बोलचाल की भाषा में इसे माल धक्का कहा जाता है। इसी माल धक्के ने गुढ़ियारी की किस्मत बदल ली। तेल, गुड़, हल्दी, मिर्ची, नमक आदि यहीं पर उतरना शुरू हुए। इसके बाद धीरे धीरे कर यहां किराना व्यवसायी आकर बसने लगे।
(फेसबुक पर सक्रिय अजय कुमार वर्मा पत्रकारिता से  करियर शुरू किया इन दिनों रायपुर नगर निगम में कार्यरत हैं उनका रायपुर पर #सन्डे_की_चकल्लस  काफी चर्चित है )

पहले यह मोहल्ला धरसींवा विधानसभा के अंतर्गत आता था। साल 1967 में इसे रायपुर नगर निगम क्षेत्र में शामिल कर गुढ़ियारी वार्ड बनाया गया। इसके बाद इसे विभाजित कर गुढ़ियारी, शुक्रवारी बाजार, ठक्कर बापा नामक 3 वार्ड बनाये गए। पुराने गुढ़ियारी वार्ड में शामिल रामनगर क्षेत्र में भी अब दो वार्ड बन गए हैं।

गुढ़ियारी में प्रवेश करने के लिए पहले रेलवे स्टेशन से लेकर पड़ाव तक पतली सी सड़क हुआ करती थी। वहां एक अंडरब्रिज के ऊपर मुंबई हावड़ा लाइन की ट्रेनें चलती थी। वहीं नीचे छोटी लाइन की ट्रेनें चलती थी। यह अति व्यस्त सड़क आज की तरह तब भी हुआ करती थी।
माल लाने ले जाने के लिए पहले सिर्फ बैलगाड़िया हुआ करती थीं। बैलगाड़ियों की पहियों के कारण वहां की सड़क खराब हो जाती थी। इस सड़क को पहियों से बचाने के लिए तब सीमेंट की ईंटों से बनी सड़क बनाई गई थी। इस सड़क के अलावा लोग आज जहां पर ओवरब्रिज स्थित है, वहीं पर से रेलवे लाइन को कूदते फांदते पार करते थे। इसी चक्कर में कई दुर्घटनाएं और मौतें हो जाती थी।
कई आंदोलनों के बाद तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्व पुरुषोत्तम लाल कौशिक ने साल 1978 में यहां ओवरब्रिज बनाने की स्वीकृति दिलवाई।
यहां का एकमात्र तालाब मच्छी तालाब है। बहुत बाद में एक जगह छुई मिट्टी खोद खोदकर लोगों ने एक तालाब बना दिया जिसे नया तालाब कहा जाता है। पुरानी बस्ती के जैतु साव मठ के पास एक समय में एक गाय जगह विशेष पर हर दिन खड़ी हो जाती थी और उसके थनों से आप ही आप दूध झरने लगता था। लोगों का जब उस ओर ध्यान गया तो उस जगह की खुदाई की गई।
खुदाई से हनुमान जी की 3 मूर्तियां निकलीं। उनमें से एक को गोपिया पारा के पास, दूसरे को दूधाधारी मठ और तीसरे को गुढ़ियारी के मच्छी तालाब के पास स्थापित की गई। यही तीनों मूर्तियां रायपुर में हनुमान जी की सबसे पुरानी मूर्तियां मानी जाती हैं।
गुढ़ियारी की बात हो और यहां के गणेशोत्सव की बात ना हो तो रायपुर को जानने वाले दिल पर ले लेंगे और नाराज भी हो जाएंगे। बाल गंगाधर तिलक के आह्वान पर जब गणेशोत्सव की शुरुआत की गई, लगभग उसी काल में ही गुढ़ियारी पड़ाव में वहां के व्यवसायियों ने भी गणेश प्रतिमा स्थापित कर गणेशोत्सव मनाना शुरू कर दिया। यहां के गणेश की स्थल सजावट झांकी की विशेषता यहां की भव्यता थी। यह माना जाता था कि गुढ़ियारी का झांकी नहीं देखा तो रायपुर में कुछ भी नहीं देखा।
मतलब गुढ़ियारी के झांकी दर्शन के बिना झांकियों का दर्शन अधूरा है। इसके बाद बारी आती है विसर्जन के दिन चलित झांकी की। इसके लिए गुढ़ियारी वाले राजनांदगांव की सजी सजाई चलित झांकी को खरीदकर ले आते थे।
उनकी झांकी लगातार दो बार शहर की सभी झांकियों में प्रथम आई। तीसरी बार प्रथम आने पर रनिंग शील्ड उन्हें मिल जाता। किन्तु तीसरी बाद गणित बाजी हो गई। उन्हें प्रथम घोषित करने के बदले सर्वश्रेष्ठ घोषित कर रनिंग शील्ड से वंचित कर दिया गया। जिसे लेकर जमकर विवाद भी हुआ।  #सन्डे_की_चकल्लस   
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