अपने आखिरी वक्त में कुरआन शरीफ का पद्य अनुवाद पूरा किया था रवींद्र जैन ने

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आज बड़े गीतकार-संगीतकार रवींद्र जैन ‘दादू’ का जन्मदिन है। मेरी पीढ़ी के लोगों का बचपन रेडियो पर उनके गीत-भजन सुनते हुए गुजरा है। फिल्मों में भी उन्होंने खूब लिखा और बेहतरीन संगीत दिया। 28 फरवरी 1944 को जन्म लिए रवींद्र जैन का निधन 9 अक्टूबर 2015 को हुआ।

उन्हें सुना तो मैनें बचपन से लेकिन मुलाकात सिर्फ एक ही बार हुई। 12 अक्टूबर 2013 को ‘दादू’ दुर्ग-भिलाई आए थे। शाम को दुर्ग के होटल सागर में उनसे सिर्फ दुआ-सलाम ही हो पाई क्योंकि वो थके हुए भी थे और उन्हें पास में कातुलबोड़ में दुर्गापूजा में जाना था।

थोड़ी देर बाद वहां के लिए रवाना हुए। उन्होंने पूजा अर्चना की और ढाकी सुनने की फरमाइश की तो आयोजकों ने तुरंत ढाकी वालों को बुलाया। अगले दिन दशहरा पर ‘दादू’ को सेक्टर-7 में कार्यक्रम देना था, इसलिए उन्होंने 13 अक्टूबर को रिहर्सल के बाद इंटरव्यू के लिए वक्त मुकर्रर किया।

सुबह जब मैं होटल सागर के हॉल में पहुंचा तो ‘दादू’ अपने गीतों की स्थानीय गायक-गायिकाओं और साजिंदो से रिहर्सल करवा रहे थे। माहौल पूरा संगीतमय था और लग रहा था कि वही 70-80 वाला दौर है हम लोग बाम्बे के किसी महालक्ष्मी या फेमस स्टूडियो में बैठे हैं। खैर, रिहर्सल पूरी करने के बाद हमारी बातचीत शुरू हुई।

(भिलाई में रह रहे वरिष्ठ पत्रकार मो. जाकिर हुसैन सोशल मिडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं| वोल्गा से शिवनाथ तक उनकी चर्चित किताब है| यह पोस्ट फेसबुक से |

बातचीत शुरू हुई तो फिल्म और फिल्मी संगीत से जुड़े सवालों को रूटीन का बताते हुए थोड़ा नाराज भी हो गए। फिर उन्होंने वह बताया जो मुझे मालूम नहीं था और वो बताना चाहते थे।

रवींद्र जैन ने खुलासा किया कि 20 साल की मेहनत के बाद उन्होंने कुरआन शरीफ का पद्य में अनुवाद पूरा कर लिया है। इसमें सूरए अल बक्र की 4 घंटे की रिकार्डिंग भी अपनी आवाज में पूरी कर ली है।

कुरआन शरीफ के पद्य अनुवाद की वजह पर उन्होंने कहा था-यह एक मेरा बहुत बड़ा काम था जो अल्लाह ने मुझसे करवाया। मेरे शहर अलीगढ़ (उप्र) की तहजीब में उर्दू-हिंदी दोनों शामिल हैं। कुरआन और रामायण हमारी तहजीब का हिस्सा है, इसलिए इसके जरिए मैं अपने शहर का कर्ज उतारने की छोटी सी कोशिश कर रहा हूं। रवींद्र जैन ने सूरए फातिहा गाकर भी सुनाई, जिसे मैनें अपने मोबाइल पर रिकार्ड कर लिया । उनका तर्जुमा इस तरह है-

अलहम्द में उसने कहा है खुद को रब्बुल आलमीन

गोया कि सारे आलमों का पालने वाला है वो

दरअस्ल रहमानो रहीम,उसकी सिफत के नाम है

बंदों का रखवाला वही,अव्वल है वो आला है वो

जिस रोज होंगे हश्र में नेकी बदी के फैसले

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जिस रोज पूछा जाएगा सबसे हिसाबे खैरो-शर

उस रोज का मालिक है वो, उस रोज का हाकिम है वो

उस रोज अपने ही किए का पाएगा फल हर बशर

उसको ही पूजे और करें तेरी मदद का आसरा

तू बख्श कदमों को हमारे सीधा सच्चा रास्ता

उन राहियों का रास्ता जिन पर तेरे एहसान है

वो रास्ता शामिल रहे मालिक तेरी जिसमें रजा

वो रास्ता उनका ना हो जिन पर हुआ तेरा गजब

वो रास्ता भटके हरगिज न हो भटके हुए का रास्ता

तेरी निगाहों में रहें तेरी पनाहों में रहें

आमीन कह कर मांगते हैं आज तुझ से ये दुआ

आमीन कह कर मांगते हैं आज तुझ से ये दुआ

-मो. जाकिर हुसैन

 

 

 

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