आज़ाद भारत में ब्रिटिश प्रणाली का प्रभाव: आनंद महिंद्रा की यादें

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आज की आईसीएसई और आईएससी परीक्षाएं भले ही पूर्ण रूप से भारतीय हैं, लेकिन एक समय था जब इनका संचालन पूरी तरह से ब्रिटिश प्रणाली के अधीन था. स्वतंत्रता प्राप्ति के दो दशक बाद तक भी, परीक्षा के प्रश्न-पत्र इंग्लैंड में तैयार किए जाते थे और उत्तर पुस्तिकाएं भी वहीं जांची जाती थीं.

1970 के दशक तक, भारतीय स्कूलों में आईसीएसई परीक्षा के अधिकांश प्रश्न-पत्र—भारतीय भाषाओं को छोड़कर—इंग्लैंड से आते थे. परीक्षा के बाद, विद्यार्थियों की उत्तर पुस्तिकाएं फिर से इंग्लैंड भेज दी जाती थीं.

आज़ादी के बाद भी ब्रिटिश निर्भरता‘: आनंद महिंद्रा की यादें प्रसिद्ध उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने, जिन्होंने 1970 में अपनी आईएससी परीक्षा दी थी, इस प्रक्रिया को ‘अविश्वसनीय’ करार दिया. उन्होंने कहा, “यह विचार कि हमारी परीक्षा की जांच भारत में नहीं हो सकती, हमारे आत्मविश्वास को ठेस पहुंचाता था. यह हमें अप्रत्यक्ष रूप से ये संदेश देता था कि हम भारतीय इतने सक्षम नहीं हैं.”

ब्रिटिश प्रभाव से मुक्ति का संघर्ष 1960 के दशक से इस प्रणाली में बदलाव की शुरुआत हुई. 1963 में, इसका नाम ‘ओवरसीज सर्टिफिकेट एग्ज़ामिनेशन’ से बदलकर ‘इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट’ कर दिया गया. 1970 में पहली बार आईसीएसई परीक्षा भारत में आयोजित हुई. 1976 में सभी प्रश्न-पत्र भारत में सेट और जांचे गए.

इसके बाद, 1975-76 में, 12वीं कक्षा के लिए आईएससी परीक्षा की शुरुआत की गई, जो पूरी तरह भारतीय प्रणाली पर आधारित थी.

आज की स्थिति आज सीआईएससीई एक स्वायत्त बोर्ड है जो भारत में पूरी तरह से अपनी परीक्षाओं का संचालन करता है. हालांकि, यह अब भी अपनी अकादमिक सख्ती और प्रतिष्ठा के लिए जाना जाता है.

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