सोनिया गांधी का नेतृत्व विकल्पहीन नहीं
सोनिया गांधी Sonia Gandhi का मानवीय पक्ष भी है। विदेश से आई युवती के जीवन में प्रौढ़ता आते ही वैधव्य छा गया। पचड़ेबाज लोग इटली लौट जाने का तंज कसने लगे। गुमनामी के रेवड़ में रहने से बेहतर भारत में जिल्लत झेलने का साहस सोनिया ने दिखाया।
सोनिया गांधी Sonia Gandhi का मानवीय पक्ष भी है। विदेश से आई युवती के जीवन में प्रौढ़ता आते ही वैधव्य छा गया। पचड़ेबाज लोग इटली लौट जाने का तंज कसने लगे। गुमनामी के रेवड़ में रहने से बेहतर भारत में जिल्लत झेलने का साहस सोनिया ने दिखाया। मौत का भय परिवार पर मंडरा रहा हो। विरोधी सरकारी सुरक्षा की नीयत रेतीली बुनियाद पर हो। इससे तो मानसिक संतुलन बिगड़ सकता था।-कनक तिवारी
सोनिया गांधी जन्मदिनः 9 दिसम्बर
अबोधगम्य बान्धवी
सोनिया गांधी ने राष्ट्रीय राजनीति में कुछ इतिहास तो रचा है। प्रधानमंत्री बन पाना उनकी नीयत और नियति नहीं हो पाई। उन्होंने अन्तरात्मा की आवाज और सन्तानों की भरोसेमंद सलाह सुनी। उनका नेतृत्व विकल्पहीन नहीं है। लोकसभा चुनाव 2004 तथा 2009 में सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस को मिला समर्थन राजनीतिज्ञों, मीडिया और विदेशियों को भी अचंभित कर गया। बड़बोली सुषमा स्वराज तथा धाकड़ संन्यासिनी उमा भारती ने सोनिया की प्रधानमंत्री पद पर संभावित दावेदारी के कारण सिर का मुंडन कराने ऐलान किया। संयोगवश वेंकैया नायडू तिरुपति में सिर का मुंडन करा ही चुके थे। ‘फीलगुड‘ और ‘इंडिया शाइनिंग‘ को भाजपाई नारे फीलबैड करते रहे।
मनमोहनसिंह को प्रधानमंत्री बनाना लेकिन सोनिया गांधी के यश और कांग्रेस के भविष्य-यश में इजाफा नहीं कर सका। रिटायर्ड नौकरशाह को इतनी राजनीतिक पेंशन मिली कि मूल वेतन से ज्यादा हो गई। मनमोहन सिंह ने वित्तमंत्री की हैसियत में वर्ल्ड बैंक, गैट, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, निजीकरण जैसे पश्चिमी शब्दों के अर्थ पढ़ाए ही थे। लोकतंत्र चाहता था देश पश्चिम का अनुवाद बनने के बदले पूरब का पाठ बने। संघ परिवार और कम्युनिज़्म की कशमकश से जूझती सियासत में कांग्रेस ने लाॅटरी मनमोहन सिंह के नाम खोल दी।
जवाहरलाल से लेकर सोनिया गांधी तक कांग्रेस कम्युनिस्टों से दोस्ती की कायल रही लेकिन मनमोहन सिंह ने अमरीका से परमाणु संधि करते उसे अंगूठा दिखा दिया।
सोनिया गांधी का मानवीय पक्ष भी है। विदेश से आई युवती के जीवन में प्रौढ़ता आते ही वैधव्य छा गया। पचड़ेबाज लोग इटली लौट जाने का तंज कसने लगे। गुमनामी के रेवड़ में रहने से बेहतर भारत में जिल्लत झेलने का साहस सोनिया ने दिखाया। मौत का भय परिवार पर मंडरा रहा हो। विरोधी सरकारी सुरक्षा की नीयत रेतीली बुनियाद पर हो। इससे तो मानसिक संतुलन बिगड़ सकता था। बद्दुआओं ने लेकिन सफलता नहीं पाई। संघ परिवार ने तो सोनिया को भारत में रहने पर अपराधी ही प्रचारित कर दिया। राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया ने प्रतिहिंसा के बदले वीतराग दिखाया। हमलों पर बचाव की रणनीति के सहारे जीत दर्ज की। खामोश मतदाताओं ने फैसला सुनाया। वाचाल मतदाता इलेक्ट्राॅनिक मीडिया की गलतफहमियों के मकड़जाल में लिपटते रहे। हमले झेलती सोनिया के लिए स्त्रियों की संवेदनशीलता ने राजनीति को नया तेवर दिया। चौदहवीं लोकसभा का चुनाव नतीजा खामोश मतदाताओं की वाचाल मतदाताओं पर जीत का सोनिया-पर्व हो गया।
सोनिया गांधी पैगम्बर, मसीहा या अवतार नहीं हैं। वे भाजपाई आडंबर और हाइटेक चुनाव प्रचार के बदले लोगों के करीब खुद जाती रहीं। उनके भाषणों में तालियां कम बजीं। कई बार भीड़ भी कम जुटी। चुनाव परिणाम लेकिन तालियों, भीड़, पुष्पहारों और लोकप्रियता के स्थापित मानदंडों की पराजय का भी हुआ। बहुलवादी संस्कृति की कांग्रेस सोनिया के एकल प्रचारक होने में कैद होकर रह गई। हिन्दुत्व को भारत मानने वाली भाजपा स्टार प्रचारकों से लैस जश्नजूं रही। सोनिया गांधी इतिहास का उद्दाम नहीं हैं। अतिशयोक्ति का विशेषण नहीं हैं। दीवार पर चढ़ती चींटी की कोशिश, दौड़ते भाजपाई खरगोश के मुकाबले कछुए की धीमी चाल और टिटहरी के आत्मविश्वास के साथ आकाश थामने के हौसले की पंचतंत्र कथाओं की किरदार जैसी मामूली लगती रहीं। राजनीति का ककहरा भी ससुराल के अदब में रहकर सास से सीखा।
पहली बार हुआ 2004 से 2014 तक सत्ता का नाभि-केन्द्र कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी रहीं। विपरीत स्थितियों में सहनशीलता, कूटनीतिक बुद्धि और रहस्यमय धीरज के कारण सोनिया ने भारतीय जीवन में मर्तबा हासिल कर लिया, जो राजनीति में अनोखा है। प्रधानमंत्री का पद ठुकराकर लोकप्रियता के सबसे ऊंचे सोपान पर खड़ी हो गईं।
कांग्रेस सबसे पुराना संगठन है। आज़ादी के आन्दोलन का नेतृत्व किया और सबसे लंबे समय तक हुकूमत भी की। आज कांग्रेस को असाधारण चुनौतियों और अपनी लगातार गलतियों से जूझना पड़ रहा है। देश की दौलत देशी विदेशी काॅरपोरेटियों को औने पौने मोदी सरकार द्वारा बेची जा रही है। बेशर्म लूट से प्राप्त धन विकास सूचकांक के रूप में गोदी मीडिया प्रचार कर रहा है। किसान आन्दोलन कर रहे हैं। आत्महत्या कर रहे हैं। मंत्री देश को लूटे और जनता के जीवन को पीटे पड़े हैं। कांग्रेस में मजबूरी क्यों दिख रही है? सबसे पुराना राजनीतिक दल दरकता सा क्यों हो रहा है? कांग्रेस की सियासी हालत प्रसिद्ध बांगला फिल्म ‘जलसाघर‘ की तरह क्यों हो रही है? प्रियंका गांधी की शख्सियत में राजनीतिक ट्रेनिंग तथा अनुभव के बिना इन्दिरा गांधी के किरदार को क्यों ठूंसा जा रहा है? राहुल अन्यमनस्क होकर विदेश क्यों चले जाते रहे हैं!
कांग्रेस अध्यक्ष का पद गलत सलाह पर छोड़ने वाले लेकिन सक्रिय राहुल गांधी हर दुखती रग पर हाथ रखने की कोशिश तो करते है। लेकिन केवल इतने लक्षणों से इतिहास नहीं बनेगा। कांग्रेस को सोनिया गांधी की अध्यक्षी में सोचना है भारत का भविष्य कैसा होगा। वन, खनिज, सरकारी सरकारी उद्योगों और आदिवासी संपत्तियों की खुले आम सरकार के जरिए डकैती हो रही है। कारपोरेटियों ने कोरोना काल में भी देश की बदहाली के वक्त बेईमानी और धूर्तता के साथ जनता की दौलत लूटी है। अदानी, टाटा, अंबानी, वेदान्ता जैसे कई परिवार राजनीतिक जीवन में घुसपैठ कर चुके हैं। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में संसद ने ऐसे फैसले किए हैं कि राष्ट्रीय दौलत और कुदरती संसाधनों पर आर्थिक डाका डालने का कानूनी अधिकार इजारेदारों को मिल गया। जबरिया आदिवासियों की भूमि हड़पना, सरकारी उद्यमों की खरीदफरोख्त और विशेष आर्थिक क्षेत्र इसके कुछ उदाहरण हैं। ऊर्जा क्षेत्र में निजी निवेशकों की चांदी है। भारतीय पूंजीवाद वैश्विक पूंजीवाद का अनुचर बना है।
कांग्रेस के भविष्य को लेकर गांधी ने क्या कहा …
यही हाल रहा तो राजनीति में वह धड़कन धीमी हो जाएगी जो लोकतंत्र का अहसास है। एक व्यक्ति इतिहास में इतना बड़ा हो गया कि नारा लगवाए ‘आएगा तो वो ही।‘ कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को इन सवालों से जूझने का वक्त बुरी तरह घेर चुका है। कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले की बेमेल लड़ाई है। कांग्रेस को गांधी, नेहरू और इन्दिरा के कार्यक्रमों को समकालीन लेकिन लचीला करना होगा।
(साभार :फेसबुक पोस्ट)
(लेखक संविधान मर्मज्ञ,गांधीवादी चिन्तक और छत्तीसगढ़ के पूर्व महाधिवक्ता हैं | यह उनका निजी विचार है| deshdigital.in असहमतियों का भी स्वागत करता है)