प्रेमचंद मोहब्बत का पैगाम देते हैं : प्रोफेसर अपूर्वानंद

आम लोगों के बीच आज मोहब्बत का पैगाम पहुंचाने की सबसे ज्यादा जरूरत है. जब नफरतों का बाजार गर्म हो तो हमें मोहब्बत की तालीम फैलाना होगा.उक्त बातें दिल्ली विश्वविद्यालय से आए प्रोफेसर अपूर्वानंद ने कही.

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रायपुर। आम लोगों के बीच आज मोहब्बत का पैगाम पहुंचाने की सबसे ज्यादा जरूरत है. जब नफरतों का बाजार गर्म हो तो हमें मोहब्बत की तालीम फैलाना होगा. प्रेमचंद मोहब्बत का पैगाम देते हैं. वे हिंदू मुस्लिम एकता के प्रबल हिमायती थे. उन्होंने इस एकता के मार्ग में बाधा पैदा करने वाले दोनों धर्मों के नेताओं की तीखी आलोचना की है. उक्त बातें दिल्ली विश्वविद्यालय से आए प्रोफेसर अपूर्वानंद ने कहीं.  वे रायपुर में कथा सम्राट प्रेमचंद पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.

अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन, छत्तीसगढ़; साहित्य एवं भाषा अध्ययन शाला, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर एवं साहित्य अकादमी, छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद, रायपुर के संयुक्त तत्वावधान में “प्रेमचंद : सद्भाव और साझी संस्कृति” विषय पर विचार गोष्ठी विश्वविद्यालय के फार्मेसी सभागार में आयोजित हुआ. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर केशरी लाल वर्मा ने तथा चर्चा सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर शैल शर्मा ने की. संचालन अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन की ऋचा रथ ने किया.

विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रोफेसर अपूर्वानंद ने कहा कि प्रेमचंद वर्ष 1920 से सावधान करते रहे हैं कि हमें अल्पमत का हमेशा आदर करना चाहिए और अल्पमत से संवाद करना चाहिए. आज जिस तरह से सांप्रदायिक नफरत पैदा की जा रही है, वह देश के लिए नुकसानदायक है. सद्भाव को मानवीय स्वभाव बनाने की आवश्यकता है.

वहीं पटना से आए सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रेमकुमार मणि ने कहा कि आज सद्भाव और समन्वित संस्कृति पर सबसे ज्यादा हमला हो रहा है. संस्कृति धर्मों के आधार पर नहीं बनती है. एक संस्कृति दूसरे संस्कृति से प्रभावित होती है. भारत में कई संस्कृतियां हैं और सभी मिलकर भारतीयता की संस्कृति बनाती है. इस वैविध्य को नुकसान पहुंचाने की कोई भी कोशिश देश के लिए अत्यंत ही घातक है. प्रेमचंद महान साहित्यकार के साथ साथ एक महत्वपूर्ण विचारक भी थे. उनके विचार हमें काफी प्रेरित करते हैं.

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गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, विलासपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर मुरली मनोहर सिंह ने कहा कि प्रेमचंद पर पूरे हिंदी साहित्य को गर्व है. उनकी रचनाएं भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत से गहरे तौर पर जुड़ी हुई हैं. प्रेमचंद की कहानियों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रेमचंद सामंतों के मुंशी नहीं अपितु श्रमशील जनता के वकील हैं.

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. केशरी लाल वर्मा ने कहा कि प्रेमचंद हमें अपने लगते हैं. उन्होंने सामाजिक विद्रूपताओं के खिलाफ अपनी कलम चलाई. भारत की सामासिक संस्कृति के लिए प्रेमचंद की प्रतिबद्धता जग जाहिर है. प्रेमचंद ने साहित्य के माध्यम से देश समाज के समक्ष जो विचार और चिंता व्यक्त किया है, आज हमारे लिए उनके विचार बेहद प्रासंगिक प्रतीत होता है.

इस मौके पर वरिष्ठ साहित्यकार रामकुमार तिवारी, अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के राज्य प्रमुख सुनील साह, विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मदु बारा समेत और कई साहित्य प्रेमी एवं विश्वविद्यालय के प्राध्यापकगण व छात्र छात्राएं उपस्थित रहे.

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