दानेश्वर शर्मा: उस तिकड़ी की आखिरी कड़ी भी टूट गई…
एक जमाने में भिलाई स्टील प्लांट में दानेश्वर शर्मा, डॉ. विमल कुमार पाठक और रमाशंकर तिवारी ''महराज'' की तिकड़ी हुआ करती थी। इस तिकड़ी की आखिरी कड़ी भी आज टूट गई। दानेश्वर शर्मा हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने 92 साल की भरपूर उम्र पाई और पिछले कुछ दिनों तक ठीक-ठाक ही थे।
एक जमाने में भिलाई स्टील प्लांट में दानेश्वर शर्मा, डॉ. विमल कुमार पाठक और रमाशंकर तिवारी ”महराज” की तिकड़ी हुआ करती थी। इस तिकड़ी की आखिरी कड़ी भी आज टूट गई। दानेश्वर शर्मा हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने 92 साल की भरपूर उम्र पाई और पिछले कुछ दिनों तक ठीक-ठाक ही थे।
–-मो. जाकिर हुसैन
हमर सियान-दानेश्वर शर्मा
”भिलाई की तलाश” में आखिरी बार जब मैं उनसे मिला था तो बिस्तर पर लेटे थे लेकिन बात करने में उन्हें ज्यादा दिक्कत नहीं थी। तथ्यों के नाम पर मैनें उनसे काफी कुछ या यूं कहिए भरपूर हासिल किया।
हाल के दिनों तक दानेश्वर शर्मा मेरे ऐसे इकलौते ”सूत्र” थे, जिन्हें भिलाई के जन्मकाल से लेकर 90 के दौर तक की सारी बातें अच्छी तरह याद थीं और जब भी पूछो तो सिलसिलेवार आनॅ रिकार्ड बताते भी थे ।
जिस वक्त भिलाई परियोजना जन्म ले रही थी, तब दानेश्वर शर्मा नागपुर टाइम्स के पत्रकार थे और इस लिहाज से उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल का इकलौता भिलाई दौरा कवर किया था। बाद में वो भिलाई स्टील प्लांट की सेवा में आए और यहां उन्होंने अपनी नौकरी का पूरा उपभोग किया।
सच कहूं तो बीएसपी को उन्होंने जितना दिया, उतना लिया भी। एक दौर में लोक कला व संस्कृति के मामले में दानेश्वर शर्मा का बीएसपी मेें दबदबा हुआ करता था।
”भिलाई मड़ई” से लेकर छत्तीसगढ़ लोक कला महोत्सव के आयोजन में उन्होंने भरपूर दखल के साथ अपनी भूमिका का निर्वहन किया। तत्कालीन मैनेजिंग डायरेक्टर केआर संगमेश्वरन का दौर उनके लिए भी स्वर्णिमकाल रहा।
इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि इस दौरान लोक कला महोत्सव का आयोजन जब 9 दिवसीय करने मैनेजमेंट ने मंजूरी दी तो दानेश्वर शर्मा ने इसकी शुरूआत 10 मई (अपने जन्मदिन) के दिन से करवाई, फिर जब तक सेवा में रहे हर साल 10 मई से ही इस आयोजन की शुरूआत करते रहे।
इसी लोककला महोत्सव के आयोजन में उन्होंने कई अनचिह्ने कलाकारों को अवसर देकर न सिर्फ मंच दिलाया बल्कि ऐसे कलाकारों को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ख्याति की राह भी दिखाई। इनमें पंथी नर्तक देवदास बंजारे और पद्मविभूषण डॉ. तीजन बाई का नाम प्रमुख है।
दानेश्वर शर्मा ने छत्तीसगढ़ी लोक कला व संस्कृति को बहुत कुछ दिया। जिन दिनों भिलाई परियोजना के लिए गांव खाली हो रहे थे, तब उन्होंने इन उजड़ते गांवों के साथ छूट रही संस्कृति का दस्तावेजीकरण किया था, जो नवभारत में किस्तों में छपा। बीएसपी के लिटररी क्लब के अध्यक्ष के तौर पर भी उन्होंने कई उल्लेखनीय कार्य किए।
उन्होंने गीत लेखन में भी एक अलग मकाम बनाया। उनके लिखे गीतों से ही एचएमवी वालों ने छत्तीसगढ़ी में लांग प्लेइंग (एलपी) रिकार्ड्स जारी करने की शुरूआत की। उनके लिखे गीतों में मंजुला दासगुप्ता के स्वर में ”तपत कुरु भई तपत कुरु” और बैतलराम साहू के स्वर में ”मोर साली परम पियारी” गीत ने लोकप्रियता के नए आयम तय किए।
स्व. दानेश्वर शर्मा का छत्तीसगढ़ी-हिंदी साहित्य लोक कला व संस्कृति को अतुलनीय योगदान रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार ने उन्हें पं. सुंदरलाल शर्मा साहित्य सम्मान और छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का अध्यक्ष बनाने जैसा सम्मान दिया।
नाम बदलने के “खेला” के बीच इंदिरा की याद और कांग्रेस की मौजूदा हालत
अभी एक और खास बात याद आ रही है। ”मैनें प्यार किया” की रिकार्ड तोड़ सफलता के बाद चर्चित गीत ”कहे तोह से सजना” का छत्तीसगढ़ी संस्करण राजश्री वाले निकाल रहे थे और जिम्मेदारी दानेश्वर शर्मा जी को दी गई थी। वो दास्तां फिर कभी….
मुझे लगता है 92 की भरी पूरी उम्र पाने वाले दानेश्वर शर्मा अपने जीवन से संतुष्ट ही रहे होंगे। जीवन के आखिरी पड़ाव में भागवत प्रवचन भी करने लगेे थे। कवि सम्मेलन के मंचों पर जब तक उनकी सक्रियता रही, तब तक उनके नाम से रौनक बनी रही।
किस्सा मुख्तसर, उन्होंने समाज को जितना दिया उससे कहीं ज्यादा समाज-सरकार ने उन्हें तमाम सम्मान और अवसर देकर लौटाया भी। एक बड़े कलमकार ने हम सबके बीच से विदा ली। विनम्र श्रद्धांजलि….