धमतरी-बेमेतरा में “दुपहर” नाटक का मंचन,अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन का आयोजन

अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन ने धमतरी और बेमेतरा में श्रीकान्त वर्मा के कहानी “दुपहर” नाटक का मंचन का आयोजन करवाया. प्रख्यात साहित्यकार स्व.श्रीकांत वर्मा के रचित कहानी “दुपहर” का धमतरी और बेमेतरा में मंचन हुआ जिसे देखने पहुंचे शिक्षकों के अलावा तमाम दर्शकों ने खूब सराहा.

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रायपुर| अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन ने धमतरी और बेमेतरा में श्रीकान्त वर्मा के कहानी “दुपहर” नाटक का मंचन का आयोजन करवाया. प्रख्यात साहित्यकार स्व.श्रीकांत वर्मा के रचित कहानी “दुपहर” का धमतरी और  बेमेतरा में मंचन हुआ जिसे देखने पहुंचे शिक्षकों के अलावा तमाम दर्शकों ने खूब सराहा.
विहान ग्रुप, भोपाल द्वारा प्रस्तुत इस नाटक का पिछले 17 जनवरी को जिला समग्र शिक्षा और अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में धमतरी शहर स्थित धनकेशरी मंगल भवन में जिला समग्र शिक्षा के साथ संयुक्त आयोजन किया गया वहीँ बेमेतरा में यह नाटक 18 जनवरी को समाधान महाविद्यालय और अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजन किया गया. दोनों जगहों को मिलाकर तक़रीबन सात सौ दर्शकों ने नाटक को देखा.
इस नाटक ‘दुपहर’ में बचपन और किशोरावस्था की मन:स्थितियों का रोचक अनुभव दिखाया गया है.


विहान ड्रामा वर्क्स भोपाल के निर्देशक सौरभ अनंत ने कवि स्व. श्रीकांत वर्मा का 35 साहित्य पढ़ने के बाद तीन कहानियों ‘दुपहर’, ‘संकर’ व ‘चॉकलेट’ को मंचन हेतु चयनित किया था.
यह नाटक मूलत: बचपन और किशोरावस्था की मन:स्थितियों का रोचक अनुभव कराता है. जिसमें केंद्रीय पात्र बिगुल और कप्तान दो लड़के हैं जो स्कूल से भागकर नदी किनारे जाने के लिए निकले हैं.
इस नाटक में ऐसे कई संवाद ऐसे हैं जो शिक्षा की गहराई को समझने के लिए काफी है. जैसे “ यहाँ पे खुद से आकर निशाना लगाना सीखना पड़ता है. कोई मासाब नहीं आते सीखाने, समझा” यानी यह नाटक यह भी कहता है कि सीखने को स्कूल या कॉलेज की चारदीवारी तक सीमित नहीं किया जा सकता, ख़ास तौर पर साहस और प्रयोगशीलता जैसे गुणों की शिक्षा को. इसमें कप्तान की भूमिका शुभम कटियार और बिगुल की भूमिका रुद्राक्ष भायरे ने निभाई. दोनों अभिनेताओं ने अपने सहज और रंग भरे अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया.
इस नाट्य प्रस्तुति में गिटारिस्ट स्नेह विश्वकर्मा,गीत, गायक व संगीत निर्देशन निरंजन कार्तिक,रूपसज्जा, वेशभूषा एवं रंग सामग्री श्वेता केतकर,तकनीकी सहायक कार्तिकेय नामदेव,अभिनय प्रशिक्षण व सहायक निर्देशक श्वेता केतकर,प्रकाश परिकल्पना, नाट्य रूपांतरण व निर्देशक सौरभ अनंत का योगदान रहा.

नाटक का कथासार इस प्रकार है :
बिगुल और कप्तान दो लड़के हैं जो स्कूल से छुट्टी मारकर भाग निकले हैं.  कप्तान एक ऐसा लड़का है जो पाँचवी कक्षा में दो बार फेल हो चुका है. उससे कम उम्र का बिगुल अब उसकी कक्षा में आ गया है. कप्तान उसका असली नाम नहीं है. वह सबसे पीछे की पंक्ति में बैठता है. वह निडर है, उद्दंड भी उसका मन हमेशा स्कूल के बाहर ही भागता है. उसे हर शिक्षक से डाँट और मार पड़ती है, मगर वह रोता बिल्कुल नहीं. इसीलिए उसके सहपाठी उसे कप्तान पुकारते हैं. बिगुल भी कप्तान को अपना हीरो मानता है. वह कप्तान से दोस्ती करना चाहता है. आज कप्तान बिगुल को स्कूल से भगाकर ले आया है. बिगुल में बहुत सारी झिझक और डर है. उसने स्कूल से आगे की दुनिया कभी देखी ही नहीं. यही वजह है कि उसे कप्तान का साथ अच्छा लगता है और उसमें आत्मविश्वास भर उठता है. बिगुल नदी देखना चाहता है. कप्तान उसे खेतों, टीलों, मंदिरों और क़ब्रिस्तान के रास्ते नदी तक ले जाता है. बिगुल के सामने अब एक नदी है, जिसे जीवन में पहली बार वह देख रहा है. धीमे धीमे बहती, गुनगुनाती, हवा के संग खेलती नदी. वह मंत्रमुग्ध सा खड़ा उसे देखता रह जाता है. तभी कप्तान पानी में कूद पड़ता है. बिगुल उसे पुकारता रहता है. जैसे वह ख़ुद को ही पुकार रहा हो. यह कहानी बचपन और किशोरावस्था की मन:स्थितियों के रोचक अनुभव दिखा है.

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‘दुपहर’ नाट्य मंचन के आखिर में शिक्षकों की प्रतिक्रिया एवं सवाल :

शिक्षक साथियों ने नाटक के दोनों ही पात्र, बिगुल एवं कप्तान की काफ़ी सराहना की. वे इस प्रस्तुति को अपने जीवन एवं स्कूल से जोड़कर देख पा रहे थे. उनका मानना था कि वास्तव में हर बच्चा कप्तान के रूप में जन्म लेता है पर हमारी स्कूली प्रक्रिया ऐसे बच्चों को प्रोत्साहित नहीं करती है इसलिए ज्यादातर बच्चे बिगुल जैसे बन जाते है. साथ ही वे नाट्य विधा को कक्षा में ज्यादा से ज्यादा जगह देंगे ऐसा कहते नज़र आए. शिक्षण, केवल पुस्तक आधारित न होकर बच्चों की खोजी प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हुए कैसे आसपास की चीजों से जोड़ते हुए हो इस बात की पैरोकार करती इस नाटक से सहमत नज़र आए. वहीं उनका यह भी मानना था कि बच्चे प्रकृति से पूर्णतः जुड़े होते है बस ज़रूरत है उन्हें कक्षा में जगह देने की, जो कि शिक्षक चाहें तो कर सकते हैं.
इंदु मेडम का यह भी प्रश्न था कि वे खुद के बच्चों को कैसा देखना चाहेंगे – बिगुल या कप्तान जैसा! इससे प्रतीत होता है कि नाटक ने उन्हें अंदर से झकझोरा है. वह यह भी कह रही थी कि मैं शुरू से बिगुल ही थी.कप्तान बनना सपना जैसा लगता है।भले कक्षा में फेल है पर जीवन मे तो कही और ही ऊंचाई तक खड़े दिखते हैं.
मैं सोंच रही थी कि कल कक्षा में कप्तान के जैसे अनुभवी के प्रत्यक्ष अनुभव को बिगुल जैसे साथियों के साथ सहसंबंध बना पाऊ.
निखत फातिमा कहती है हम बिगुल की जमात खड़े कर रहे हैं कप्तान जैसे साथियों के अनुभव दैनिक जीवन की हर कठिनाई से जुड़ने व खुद से करने का पाठ पढ़ायेगा.
दया शंकर CAC कंडेल पाठ्यक्रम से बाहर और बाहरी दुनिया को पाठ से जोड़ने वाली बात की सत्यता को बताने वाली प्रदर्शन कहा. फनेन्द्र सांडिल्य शिक्षक ने रोल प्ले को कक्षा शिक्षण का सबसे लाभकारी शिक्षण विधि है हमे कक्षा में इसे लाना होगा.
जिला साहित्य समिति के पूर्व अध्यक्ष सरिता दोषी के अनुसार बीच में इस तरह का बेहतरीन नाटक अज़ीम प्रेमजी फॉउंडेशन के माध्यम से देखने मिलता हैं ये हम घमतरी वासियों के लिए एक तरह से देन है.


विहान समूह के अंकित ने दुपहर कहानी को ही चुनने के सवाल के जवाब में बताया कि यह बच्चों की वास्तविक जीवन और पूरे 35 कहानी में से इसे नाटकीय भाव व संवाद के स्वरूप में श्रीकांत वर्मा जी ने लिखा है.
शिक्षकों का प्रश्न था कि बच्चों को कप्तान बनाये या बिगुल? यह सभी को स्वयं से सोंचना होगा. कक्षा में बच्चों के अनुभव,उनकी दुनिया,सोंच व अवलोकन को जगह देने के लिए और शिक्षकों को एक बार वापिस नई सोंच बनाने और करके देखने व सीखने का मौका देने वाली नाटक रही .
इंदुरानी मैडम का कथन –
“मैं तो बचपन में बिलकुल बिगुल जैसी थी. यहाँ यह अच्छी बात देखने को मिली कि बिगुल भी कप्तान के साथ रहते-रहते कप्तान जैसा ही हो जाता है. मेरे स्कूल में तो हर बच्चा कप्तान जैसा है. लेकिन अपने घर में ही ऐसा माहौल नहीं बना पाते हैं.” मैम का आखिरी वाक्य यह बताता है कि उनके बच्चे जो कि प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं कप्तान जैसा नहीं है. इसलिए वे कभी कभी अपने बच्चों को खुद के स्कूल में भी लाती हैं.
इस नाटक को देखने के बाद और एक शिक्षक वैभव रणसिंह का कहना है – “इस नाटक में कप्तान को लेकर जो देखने में ऐसा लगता है कि वह कक्षा का एक बिगड़ा हुआ और गलत दिशा में जाता हुआ नजर आता है।


इस नाटक को लेकर सबके अपने अपने विचार और कल्पना हो सकते हैं लेकिन मेरे विचार से इस नाटक में कप्तान एक बिगड़े हुए छात्र के रूप में नहीं बल्कि अनजाने में ही सही जीवन को लेकर उसका खुद का अपना एक अलग ही विचारधारा था और शायद सभी के मन में यह विचार होता है लेकिन नियम समाज और परिस्थिति को देखकर हर कोई बिगुल की ओर खिंचा चला आता है।
प्रथम दृष्टया में ऐसा लगता है जैसे कप्तान एक बिगड़ा हुआ छात्र है जो शायद जीवन में सफल ना हो परंतु बिगुल का जैसा स्वभाव है जीवन में सफलता पाने के उम्मीदें उससे भी कम है।
लेकिन कहानी के अंत में शायद कप्तान और बिगुल दोनों ही एक नए जीवन की ओर चल पड़ते हैं।
और वर्तमान में यदि देखा जाए तो हमारे समाज में बच्चों को लेकर शिक्षा में इस तरीके से परिवर्तन आए ताकि बच्चे भी अपने जीवन को पहले से और बेहतर बना सकें।अंत में विहान समूह और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन को कोटि धन्यवाद !”

 

पात्र परिचय :
1. कप्तान : शुभम कटियार
2. बिगुल : रुद्राक्ष भायरे

गिटारिस्ट : स्नेह विश्वकर्मा
गीत, गायक व संगीत निर्देशन : निरंजन कार्तिक

रूपसज्जा, वेशभूषा एवं रंग सामग्री, : श्वेता केतकर

तकनीकी सहायक : कार्तिकेय नामदेव

अभिनय प्रशिक्षण व सहायक निर्देशक : श्वेता केतकर

प्रकाश परिकल्पना, नाट्य रूपांतरण व निर्देशक : सौरभ अनंत

प्रस्तुति : विहान ड्रामा वर्क्स, भोपाल (मध्यप्रदेश)

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