’फाईव डे वीक’ की असफलता के लिए कौन जिम्मेदार ?
’फाईव डे वीक’ को लेकर अधिकारियों एवं कर्मचारियों के रवैये से सरकार किस तरह निपटेगी या निपटने वाली है ? इस नई व्यवस्था के प्रति अधिकारियों एवं कर्मचारियों की लापरवाही या लेटलतीफी के क्या मायने हैं ?
’फाईव डे वीक’ को लेकर अधिकारियों एवं कर्मचारियों के रवैये से सरकार किस तरह निपटेगी या निपटने वाली है ? इस नई व्यवस्था के प्रति अधिकारियों एवं कर्मचारियों की लापरवाही या लेटलतीफी के क्या मायने हैं ? अब, जब राज्य भर से शिकायतें आनी आरंभ हो चुकी हैं, तब क्या इस विवाद में अधिकारियों एवं कर्मचारियों का संगठन आगे आयेगा ? जिन अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर कार्रवाई हो रही है, उनके बचाव के लिए संगठन क्या करेगा ? क्या सरकार अधिकारियों एवं कर्मचारियों के आगे झुकेगी ? कई तरह के सवाल हैं।
-डॉ. लखन चौधरी
छत्तीसगढ़ सरकार ने सुशासन यानि गुड गवर्नेंस को लेकर पिछले दिनों मंत्रालय, सचिवालय सहित तमाम सरकारी कार्यालयों में पांच दिवसीय साप्ताहिक कार्यदिवस की नई शुरूआत की थी। सरकार को उम्मीद थी कि इससे न केवल सरकारी कामकाज में सुधार आयेगा; बल्कि बिजली, पानी, पेट्रोल, डीजल इत्यादि ईंधन के लाखों रूपयों के संचालन खर्चों में कमी आयेगी। इससे सरकार का वित्तीय बोझ भी कम होगा। दूसरी ओर अधिकारियों एवं कर्मचारियों को सप्ताह में दो दिन आराम मिलने से प्रशासनिक एवं कार्यालयीन कामकाज में कसावट आयेगी एवं कामकाज की गुणवत्ता सुधरेगी।
सरकार इस निर्णय से र्प्याप्त मात्रा में संतुष्ट दिख रही थी। सरकार ने एक कदम और आगे बढ़कर यह बयान तक दे दिया था कि इससे राज्य का वित्तीय भार कम हो सकेगा। लगातार दो दिन अवकाश मिलने से अधिकारी एवं कर्मचारी सपिरवार अपने गांव, अपने आसपास के दर्शनीय स्थलों में घुमने जा सकते हैं, जिससे राज्य में पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकेगा। इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, सैकड़ों बेरोजगार लोगों को काम मिलेगा तथा राज्य की आर्थिक स्थिति सुधर सकती है।
सरकार की सोच सैद्धांतिक तौर पर सही है। सरकार की ओर से जितनी और जिस तरह से उम्मीदें जतीई जा रही थी, वह भी तथ्यात्मक तौर पर सही है, मगर सप्ताह भर पहले ही लागू व्यवस्था हांपने या दम तोड़ने लगी है तो सवाल उठना लाजिमी है कि क्या नई व्यवस्था में कोई कमी या खामी है ? या नई व्यवस्था में राज्य के अधिकारी एवं कर्मचारी समायोजित नहीं हो पा रहे हैं ?
सवाल यह भी उठता है कि क्या इस नई व्यवस्था को लागू करने के पहले सरकार ने अधिकारियों एवं कर्मचारियों से कोई सलाह-मश्विरा लिया था ? क्या अधिकारी एवं कर्मचारी इस नई व्यवस्था के लिए तैयार थे ? यदि तैयार थे, तो फिर अब इस व्यवस्था को लेकर पुनः पुरानी व्यवस्था लागू करने के लिए कहने की बातें क्यों हो-आ रही हैं ? क्या यह नई व्यवस्था राज्य में असफल होकर रह जायेगी ? क्या सरकार इस नई व्यवस्था को कड़ाई से लागू करने से पीछे हट सकती है ? आखिरकार इसके लिए जिम्मदार कौन है ?
फाईव डे वीक को लेकर अधिकारियों एवं कर्मचारियों के रवैये से सरकार किस तरह निपटेगी या निपटने वाली है ? इस नई व्यवस्था के प्रति अधिकारियों एवं कर्मचारियों की लापरवाही या लेटलतीफी के क्या मायने हैं ? अब, जब राज्य भर से शिकायतें आनी आरंभ हो चुकी हैं, तब क्या इस विवाद में अधिकारियों एवं कर्मचारियों का संगठन आगे आयेगा ? जिन अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर कार्रवाई हो रही है, उनके बचाव के लिए संगठन क्या करेगा ? क्या सरकार अधिकारियों एवं कर्मचारियों के आगे झुकेगी ? कई तरह के सवाल हैं।
दरअसल में पिछले साल सुशासन दिवस 25 दिसम्बर के अवसर पर केंद्र सरकार द्वारा जारी ’गुड गवर्नेंस इंडेक्स-2021’ जारी किया गया था, जिसमें ग्रुप बी के राज्यों में छत्तीसगढ़ पहले स्थान पर था। भारत सरकार के प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग की ओर से तैयार इस सूचकांक को राज्यों को सुशासन की कसौटी पर कसने के लिए जारी किया जाता है। इसमें छत्तीसगढ़ को मिले अग्रणी दर्जे से उत्साहित होकर सरकार ने एक और कदम उठाते हुए फाईव डे वीक व्यवस्था को लागू करने का फैसला किया था।
हांलाकि कुछेक मीडिया सुत्रों एवं खुफिया जानकारों को कहना है कि सरकार ने राहुल गांधी को खुश करने के मद्देनजर आनन-फानन में बगैर विस्तृत सलाह-मश्विरा किये एवं बिना रोडमैप के इस नई व्यवस्था को लागू करने की घोषणा की थी। जिसे तत्काल अमल में लागू कर दिया गया। जिसका परिणाम यह हुआ या हो रहा है कि राज्य के अधिकारी एवं कर्मचारी इस नई व्यवस्था को अपना नहीं पा रहे हैं। कहा जाये कि इस फाईव डे वीक की नई व्यवस्था के अनुरूप अपने आप को ढाल नहीं पा रहे हैं।
इधर जब इस नई फाईव डे वीक वर्किंग व्यवस्था को इसी महिने लागू की गई, तो अनेक अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने ही सवाल उठाया था कि मात्र आधा घंटा बढ़ाने से क्या होगा ? पांच कार्यदिवस में मात्र ढाई घंटा बढ़ाने से पूरे एक दिन के कामकाज की भरपाई कैसे होगी ? जहां आधे घंटे के लंच में अधिकारी एवं कर्मचारी घंटों बाहर रहते हैं, समय पर कार्यालय कभी नहीं आते हैं एवं अक्सर समय के पहले निकल जाते हैं, ऐसे में एक दिन का कार्यदिवस और कम कर देने से कामकाज कैसे होगा ? गंभीर सवाल उठता है।
सार यह है कि हमारे राज्य के अधिकारी एवं कर्मचारी भी इस लोकतंत्र के महान वोटर हैं। ये भी रोज देख रहे हैं कि जब नौकरशाह, राजनेता एवं वोटर लोकतंत्र की मलाई खा रहे हैं, तो भला अधिकारी एवं कर्मचारी ही इससे वंचित क्यों रहें ? सप्ताह में एक दिन और आराम करना एवं बाकि के दिनों में भी अपनी मर्जी से आना-जाना आखिर उनका भी तो लोकतांत्रिक अधिकार है ? कौन क्या करेगा ? सरकार की इतनी हिम्मत कहां है कि कोई कार्रवाई कर सके ? मीडिया का काम हल्ला करना है, करे। जनता जागेगी तब व्यवस्था सुधरेगी। जनता कब जागेगी ? इंतजार रहेगा !!
(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)
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