छत्तीसगढ़ : फ्लैगशिप योजनाओं में अग्रणी मगर क्रियान्वयन में फीसड्डी
लगातार तीन कार्यकाल की बहुत मजबूत और लोकप्रिय सरकार को उतनी ही मजबूती एवं ताकत से हराकर सत्ता पर काबिज छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के खाते में एक से एक नवाचारी योजनाएं एवं कार्यक्रम हैं।
लगातार तीन कार्यकाल की बहुत मजबूत और लोकप्रिय सरकार को उतनी ही मजबूती एवं ताकत से हराकर सत्ता पर काबिज छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के खाते में एक से एक नवाचारी योजनाएं एवं कार्यक्रम हैं। महज ढाई साल के कार्यकाल में सरकार को इन्हीं नवाचारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों की बदौलत केन्द्र एवं नीति आयोग से दर्जनों पुरस्कार मिल चुके हैं।
-डॉ. लखन चौधरी
लगातार तीन कार्यकाल की बहुत मजबूत और लोकप्रिय सरकार को उतनी ही मजबूती एवं ताकत से हराकर सत्ता पर काबिज छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के खाते में एक से एक नवाचारी योजनाएं एवं कार्यक्रम हैं। महज ढाई साल के कार्यकाल में सरकार को इन्हीं नवाचारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों की बदौलत केन्द्र एवं नीति आयोग से दर्जनों पुरस्कार मिल चुके हैं।
एक ओर जहां इन योजनाओं एवं कार्यक्रमों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी भरपूर सराहना एवं सुर्खियां बटोरी हैं, वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय फलक पर इससे राज्य सरकार की मजबूत पहचान बनी है। इन नवाचारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों ने देश के कई अन्य राज्यों को भी सोचने के लिए विवश किया है कि किसी भी लोकप्रिय सरकार की नीतियां और विश्वसनीयता उसकी योजनाओं एवं कार्यक्रमों के बलबूते बनती और बिगड़ती है, जो कि एक हकीकत है।
इस कड़ी में राजीव गांधी किसान न्याय योजना, गढ़बो छत्तीसगढ़, नरवा गरूवा घुरवा बारी, गौठान योजना, कर्ज माफी, ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना, सौर सुजला योजना, बिजली बिल हॉफ योजना, प्रापॅर्टी पंजीयन में 30 फीसदी की कमी की योजना, हाट-बाजार एवं पौनी-पसारी योजना, स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी मीडियम स्कूल योजना आदि प्रमुख हैं।
इस बार छत्तीसगढ़ सरकार की गोधन न्याय योजना ने देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इसके पहले राज्य सरकार की अनेक ’फ्लैगशिप योजनाओं’ ने देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। कई योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार एवं नीति आयोग के द्वारा प्रदेश सरकार को अनेक पुरस्कार भी मिल चुके हैं। इससे साफ है कि इन योजनाओं एवं कार्यक्रमों में दम है, तभी केन्द्र में भाजपा की सरकार होने के बावजूद दर्जनों पुरस्कार मिले हैं।
इधर इतना सब होने के बावजूद राज्य के विपक्षी नेता कांग्रेस सरकार की इन योजनाओं में खामियां निकालना छोड़ नहीं रहे हैं। इन पुरस्कार प्राप्त योजनाओं एवं कार्यक्रमों की धज्जियां उड़ा रहें हैं। तात्पर्य यह है कि विपक्ष को मजबूत होना चाहिए। लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका सत्ता पक्ष से बिल्कुल कम नहीं होती है, अपितु कई मामलों पर तो विपक्ष की भूमिका सत्ता पक्ष से भी अधिक होती है। विपक्ष यदि कमजोर हो जाता है तो सरकार मनमानी करने पर उतर आता है, और विपक्ष के मजबूत होने पर सरकार को झुकना एवं कोई भी नीतिगत निर्णय करने के पहले सोचना पड़ता है। लोकतंत्र की यही खूबी है।
मगर योजनाओं एवं कार्यक्रमों की लोकप्रियता एवं विश्वसनीयता का ख्याल रखना जरूरी है। यदि इन योजनाओं एवं कार्यक्रमों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप बनाई है तो साफ है कि इनमें कोई बात जरूर होगी।
पिछले दिनों छत्तीसगढ़ सरकार की एक महत्वपूर्णं गोधन न्याय योजना के बहुद्देशीय प्रभावों एवं परिणामों की राष्ट्रीय स्तर पर खूब सराहना हुई, जिसके बाद संसद की स्थायी कृषि समिति ने राज्य में आकर इस योजना के बारे में विस्तृत जानकारी लेने का मन बनाया। इसके लिए समिति ने राज्य का दौरा किया और समिति को योजना नेे बेहद प्रभावित किया है।
’गोधन न्याय योजना’ के अध्ययन-भ्रमण के लिए छत्तीसगढ़ के दौरे पर आयी 13 सदस्यीय समिति ने छत्तीसगढ़ सरकार की इस योजना से लेकर खेती-किसानी की बेहतरी के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। सरकार की राजीव गांधी किसान न्याय योजना, वनोपज संग्रहण जैसे अन्य योजनाओं पर सरकार से विस्तार से चर्चा की है।
मीडिया में आई खबरों के अनुसार स्थायी कृषि समिति के सदस्यों ने स्पष्ट रूप से कही कि छत्तीसगढ़ सरकार की गोधन न्याय योजना देश के लिए एक नजीर है। संसदीय समिति ने इसे पूरे देश में लागू करने की अनुशंसा की है।
इधर राज्य सरकार का दावा है कि इस योजना से राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है, छत्तीसगढ़ के गांवों में रोजगार के अवसर बढ़े एवं लगातार बढ़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार का दावा है कि गोधन न्याय योजना के माध्यम से अब तक 100 करोड़ रूपए की गोबर खरीदी हुई है।
अभी तक गौठानों में लगभग 10 लाख क्विंटल वर्मी एवं सुपर कम्पोस्ट का निर्माण किया गया है। लगभग 90 करोड़ रूपए की वर्मी खाद बिक चुकी है। 2 रूपए किलो में गोबर खरीदी शुरू होने से पशुपालकों, ग्रामीणों, भूमिहीनों को अतिरिक्त आय का जरिया मिला है। इससे पशुधन के संरक्षण और संवर्धन के साथ-साथ खेती-किसानी को भी लाभ हुआ है। राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा मिला है। दो रुपए में गोबर खरीदी करने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है।
दूसरी ओर विपक्ष का आरोप और मीडिया खबर है कि बड़ी मात्रा में गोबर चोरी हो रही है। वर्मी कंपोस्ट बिक नहीं रहा है। अधिकांश केंद्रों में गोबर खरीदी बंद हो गई है। कागजों में न्याय योजना चल रही है। रोका छेका अभियान फेल है। मवेशी सड़कों पर घूम रहे हैं। गौठानो से मवेशी गायब है। वास्तव में इस योजना की असलियत सामने लाने की जरूरत है।
सवाल उठता है कि क्या विपक्ष की बात में भी दम है ? यदि विपक्ष के आरोप में दम है तो कितना ? क्या यह योजना वास्तव में इतनी अच्छी योजना है, जिसने संसद की स्थायी कृषि समिति के सदस्यों को इतना अच्छी लगा ? फिर विपक्ष को इतना सवाल खड़ा क्यों करना चाहिए ? केन्द्र की सरकार इन योजनाओं के नाम पर छत्तीसगढ़ सरकार को लगातार पुरस्कार क्यों देती जा रही है ?
गोधन न्याय योजना सहित राज्य सरकार की तमाम योजनाएं एवं कार्यक्रम अच्छे हैं, लेकिन इनके क्रियान्वयन को लेकर सरकार को सचेत होने, रहने की जरूरत है। याद रहे, कितनी भी अच्छी योजना एवं कार्यक्रम; क्रियान्वयन, नियंत्रण, प्रबंधन एवं देखरेख के अभाव में दम तोड़ देती है। गौधन न्याय योजना भी इसी तरह की एक महत्वपूर्णं एवं महात्वाकांक्षी योजना है जिसमें क्रियान्वयन, नियंत्रण, प्रबंधन एवं देखरेख की भारी कमी सामने आ रही है या देखी जा रही है। यह बात सरकार को समझने की है।
योजनाएं भविष्य में तभी सफल एवं प्रभावी हो सकती हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की तमाम नवाचारी योजनाएं एवं कार्यक्रम अपनी फ्लैगशिप इमेज की वजह से राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान बनाने में जरूर सफल हो रही हैं, लेकिन इनके क्रियान्वयन एवं जवाबदेही को लेकर सरकार को इससे भी अधिक सावधान एवं सचेत रहने की दरकार है। अन्यथा दो साल बाद होने वाले चुनाव में इसके परिणाम सामने आ ही सकते हैं।
(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)
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