छत्तीसगढ़: कुलपति चयन में स्थानीयता कितनी जरूरी ?
इन दिनों छत्तीसगढ़ राज्य के जिन चौदह राजकीय विश्वविद्यालयों में कुलपति चयन को लेकर राजभवन एवं सरकार के बीच विवाद या घमासान जारी है, उनमें से मात्र पांच विश्वविद्यालयों में स्थानीय कुलपति हैं, शेष नौ विश्वविद्यालयों में कुलपति राज्य के बाहर के हैं।
इन दिनों छत्तीसगढ़ राज्य के जिन चौदह राजकीय विश्वविद्यालयों में कुलपति चयन को लेकर राजभवन एवं सरकार के बीच विवाद या घमासान जारी है, उनमें से मात्र पांच विश्वविद्यालयों में स्थानीय कुलपति हैं, शेष नौ विश्वविद्यालयों में कुलपति राज्य के बाहर के हैं। और दिलचस्प बात यह है कि इस समय राज्य के विश्वविद्यालयों में जितने कुलपति बाहर के हैं, सभी की पृष्ठभूमि लगभग एक या एक तरह की है। इन दिनों हो रही विवाद की जड़ की मुख्य वजह यही है|
-डॉ. लखन चौधरी
कुलपति चयन पर जारी घमासान, जिम्मेदार कौन ? (2)
छत्तीसगढ़ के राजकीय विश्वविद्यालयों में कुलपति चयन पर जारी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। राजभवन अपने मजबूत तर्कों से यह सिद्ध करने में लगा है कि विश्वविद्यालयों में कुलपतियों का चयन मेरिट के आधार होता है, और कुलपति कहीं से भी लिया जा सकता है। योग्यताओं एवं आवश्यकताओं के मद्देनजर राज्य के दूसरे राज्यों से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी यानि विदेशी विद्वानों को भी कुलपति बनाया जा सकता है।
फिर राज्य के बाहर के कुलपतियों पर सरकार का सवाल क्या गैर जरूरी है ? क्या सरकार कुलपति चयन के लिए राजभवन पर दबाव बनाकर मेरिट की अनदेखी करना चाहती है ? बड़ा सवाल खड़ा होता है। राज्य के विश्वविद्यालयों में नियुक्त बाहरी कुलपतियों में कितने का चयन मेरिट के आधार पर हुआ है ? यह एक अलग विवाद हो सकता है, या विमर्श का एक अलग मसला हो सकता है।
इधर सरकार की ओर से दी जा रही दलील ’कि राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपति चयन में राजभवन द्वारा स्थानीय प्रतिभाओं की लगातार अनदेखी की जा रही है ?’ में कितना दम है ? यह भी एक जरूरी बहस का मसला है। इस पर भी परिचर्चाएं होनी चाहिए, क्योंकि अब यह मुद्दा लगातार बढ़ता जा रहा है और आने वाले दिनों में कम होगा ? ऐसा लगता नहीं है।
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इन दिनों राज्य के जिन चौदह राजकीय विश्वविद्यालयों में कुलपति चयन को लेकर राजभवन एवं सरकार के बीच विवाद या घमासान जारी है, उनमें से मात्र पांच विश्वविद्यालयों में स्थानीय कुलपति हैं, शेष नौ विश्वविद्यालयों में कुलपति राज्य के बाहर के हैं। और दिलचस्प बात यह है कि इस समय राज्य के विश्वविद्यालयों में जितने कुलपति बाहर के हैं, सभी की पृष्ठभूमि लगभग एक या एक तरह की है। इन दिनों हो रही विवाद की जड़ की मुख्य वजह यही है।
विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति विवाद में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का बयान भी गौर करने लायक है। डॉ. सिंह ने स्थानीय कुलपति का समर्थन किया है, लेकिन उन्होंने एक जाति-वर्ग विशेष के लोगों की ही नियुक्ति पर सवाल खड़ा किया है, जो एक तरह से जायज भी लगता है।
अब मुख्य मसला यही है कि कुलपति चयन में स्थानीयता कितनी जरूरी है ? क्या स्थानीय व्यक्तियों को कुलपति बनने से राजभवन रोक रहा है ? क्या राजभवन से स्थानीय प्रतिभाओं की वास्तव में अनदेखी की जा रही है ? स्थानीयता के नाम पर राजभवन का सरकार पर आरोप कितना सही है ? देखने वाली बात है कि इस विवाद का अंत किस तरह होता है ?
क्रमशः
(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)
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