छत्तीसगढ़ में राम वन गमन: कोरिया से सुकमा तक हर कदम प्रभु राम के दर्शन
कोरिया से लेकर सुकमा तक राम वनगमन मार्ग में अनेक साक्ष्य बिखरे पड़े हैं जिन्हें सहेजना छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक मूल्यों को ही सहेजना है। इसीलिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी ने इस पूरे राम वन गमन मार्ग को पर्यटन परिपथ के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है।
रायपुर। कोरिया से लेकर सुकमा तक राम वनगमन मार्ग में अनेक साक्ष्य बिखरे पड़े हैं जिन्हें सहेजना छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक मूल्यों को ही सहेजना है। इसीलिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी ने इस पूरे राम वन गमन मार्ग को पर्यटन परिपथ के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है।
छत्तीसगढ़ प्रभु राम के ननिहाल के रूप में सम्पूर्ण विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है। वनवास काल में प्रभु राम ने यहाँ लम्बा वक्त बिताया। यहां के ऋषियों के आश्रम, प्रकृति के मध्य वनवास काटा, इसलिए यहाँ की जनश्रुतियों, लोककथाओं और आम जनजीवन में राम रचे-बसे हैं।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने जनमान्यताओं का सम्मान करते हुए और भगवान प्रभु राम के ननिहाल प्राचीन दक्षिण कौशल और वर्तमान छत्तीसगढ़ में राम पथ वनगमन पर्यटन परिपथ की परियोजना तैयार की। इस परियोजना में राम वनगमन मार्ग से जुड़े धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के स्थलों को सजाने, संवारने और इन्हें पर्यटन की दृष्टि से सुविधा सम्पन्न बनाने का काम हाथ में लिया गया है।
ऐसी मान्यता है कि प्रभु श्रीराम के साथ माता सीता और लक्ष्मण ने वनवास काल 14 वर्षों में 10 साल छत्तीसगढ़ में बिताये थे। जिन जगहों पर प्रभु राम आए थे ऐसे 75 स्थानों को चिन्हांकित कर धार्मिक पर्यटन के अनुरूप विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है।
शिवनाथ, जोंक और महानदी के त्रिवेणी संगम में स्थित शिवरीनारायण के मंदिर परिसर एवं आस-पास के क्षेत्रों को विकसित करने एवं पर्यटकों की सुविधाओं के लिए 39 करोड़ रूपए की कार्य योजना तैयार की गई है। जिसके प्रथम चरण में 6 करोड़ रूपए के कार्य का लोकार्पण 10 अप्रैल को रामनवमी के दिन मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल करने जा रहे हैं।
इनमें शिवरीनारायण के मंदिर परिसर का उन्नयन एवं सौदर्यीकरण, दीप स्तंभ, रामायण इंटरप्रिटेशन सेन्टर एवं पर्यटक सूचना केन्द्र, मंदिर मार्ग पर भव्य प्रवेश द्वार, नदी घाट का विकास एवं सौंदर्यीकरण, घाट में प्रभु राम-लक्ष्मण और शबरी माता की प्रतिमा का निर्माण किया गया है। इसी प्रकार पचरी घाट में व्यू पाइंट कियोस्क, लैण्ड स्केपिंग कार्य, बाउंड्रीवाल, मॉड्यूलर शॉप, विशाल पार्किंग एरिया और सार्वजनिक शौचालय का निर्माण शामिल है।
राम वन गमन पर्यटन परिपथ के अंतर्गत कोरिया से सुकमा तक के धार्मिक स्थलों को जोड़ने के लिए 2260 किमी की लंबाई तक सड़क निर्माण भी प्रस्तावित है। इस मार्ग में छायादार और फलदार पौधों का रोपण वन विभाग द्वारा किया जा रहा है।
इस परियोजना के तहत चिन्हांकित 75 स्थानों में से प्रथम चरण में चिन्हांकित 9 स्थलों को विकसित करने की परियोजना तैयार की गई है। इस पर्यटन परिपथ के पूर्ण होने से देश के विभिन्न हिस्सों से न केवल पर्यटक छत्तीसगढ़ आएगें, साथ ही छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों से पर्यटकों का यहां आना-जाना लगा रहेगा। पर्यटन को बढ़ावा मिलने से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। वहीं रोजगार के नए अवसरों में भी वृद्धि होगी।
राम वन गमन पर्यटन परिपथ के तहत प्रथम चरण में चिन्हांकित स्थलों में सीतामढ़ी-हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (सरगुजा), शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (बलौदाबाजार), चंदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहावा सप्तऋषि आश्रम (धमतरी), जगदलपुर (बस्तर) और रामाराम (सुकमा) 138 करोड़ रुपए की लागत से इन क्षेत्रों में पर्यटन के विकास का कार्य होगा। इन स्थानों में पर्यटन की दृष्टि से सौंदर्यीकरण एवं अन्य साज सज्जा के कार्य किए जाएंगे।
प्रभु राम के छत्तीसगढ़ में प्रवेश कोरिया जिले के सीतामढ़ी-हरचौका से हुआ था। यहां विभिन्न पर्यटक सुविधा के विकास के लिए तीन करोड़ 84 लाख दो हजार रूपए स्वीकृत किए हैं। कोरिया जिले के सीतामढ़ी के पास घाट पर कियोस्क निर्माण कार्य के लिए 66 लाख 21 हजार रूपए, सीतामढ़ी के पास बैठने की जगह और घाट के आस-पास पैदल मार्ग के साथ गजीबो निर्माण कार्य के एक करोड़ 42 लाख सात हजार रूपए एवं घाट विकास कार्य हेतु एक करोड़ 75 लाख 74 हजार रूपए स्वीकृत किए गए हैं।
सुकमा जिले के रामाराम छत्तीसगढ़ में प्रभुराम के वनवास काल का अंतिम पड़ाव है। यहां पर्यटकों के रुकने की व्यवस्था एवं परिपथ निर्माण प्रस्तावित है। सिहावा में यात्रियों के ठहरने के लिए समरसता भवन, ऋषि आश्रम जीर्णाेद्धार का कार्य होगा। पेयजल सुविधा, गार्डन निर्माण, तालाब सौंदर्यीकरण, शौचालय, विश्रामगृह, नील नदी में स्टॉप डेम, अंडरग्राउंड नाली निर्माण का कार्य होगा। तुरतुरिया में कॉटेज बनाए जाएंगे, महानदी पर वाटरफ्रंट डेवलपमेंट और कॉटेज विकसित होंगे, बस्तर व दंतेवाड़ा के गीदम में जटायु द्वार, बारसूर में ट्राइबल कॉटेज बनाए जाने की योजना है।