आखिर हाथी बार नवापारा अभ्यारण्य में आते क्यों हैं ?
आखिर हाथी बार नवापारा अभ्यारण्य में आते क्यों हैं ? एक आदिवासी ग्रामीण ने जो जानकारी दी मुझे हैरान कर गई | अकूत बलशाली हाथी भी यहाँ दवाई खाने आते हैं | जी हाँ, कंद मूल के रूप में मौजूद यह दवाई उनका पसंदीदा आहार होता है |
आखिर हाथी बार नवापारा अभ्यारण्य में आते क्यों हैं ? एक आदिवासी ग्रामीण ने जो जानकारी दी मुझे हैरान कर गई | अकूत बलशाली हाथी भी यहाँ दवाई खाने आते हैं | जी हाँ, कंद मूल के रूप में मौजूद यह दवाई उनका पसंदीदा आहार होता है |
-डॉ. निर्मल कुमार साहू
अथाह वन सम्पदाओं को समेटे छत्तीसगढ़ के जंगलों में वन औषधियों की भरमार है | पारम्परिक बैद्य इन्ही जड़ी बूटियों से इलाज करते आ रहे हैं | आदिवासी, जंगल जिनका जीवन है वे इस तरह के औषधियों का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करते हैं, वे इनके अच्छे जानकार होते हैं | बैगा, गुनिया भी इनके बताए या दिए गये जड़ी-बूटियों से इलाज करते हैं |
छत्तीसगढ़ के इन्ही जंगलों में से एक है महासमुंद जिले की पिथौरा से सटे बलौदाबाजार जिले में स्थित बार नवापारा अभ्यारण्य | वन्य जीवों के साथ यहाँ के जंगल जहाँ अथाह वन औषधियों को समेटे हुए हैं यहाँ के प्राकृतिक नदी-नाले भी भरपूर वन औषधियों से समृद्ध हैं|
दाना-पानी से भरपूर बार नवापारा अभ्यारण्य शायद इसीलिए हाथियों की पसंदीदा जगह बन चुका है | ओडिशा से हर बरस उनका आगमन इसे साबित करता है | कुनबा बढ़ाकर लौटते हैं |
आखिर हाथी बार नवापारा अभ्यारण्य में आते क्यों हैं ? सीधा सा जवाब होगा – दाना-पानी के लिए |
पर एक आदिवासी ग्रामीण ने जो जानकारी दी मुझे हैरान कर गई |
बार नवापारा अभ्यारण्य से सटे गाँव पाटनदादर के आदिवासी ग्रामीण बरातू बताते है | उन्हें विरासत में पुरखों से जड़ी बूटी, कंद मूल पहचान की जानकारियां मिली हैं |
हमारे पुरखे वन्य जीवों – प्राणियों के क्रियाकलापों की बारीकी से नजर रखते थे | वन्य जीवों की गतिविधियों का उन्हें सहज अंदाज था इसलिए कभी भी इन वन्य जीवों से हमले की नौबत नहीं आई |
बरातू की मानें तो अकूत बलशाली हाथी भी यहाँ दवाई खाने आते हैं | जी हाँ, कंद मूल के रूप में मौजूद यह दवाई उनका पसंदीदा आहार होता है |
हाथियों की सूंघने की क्षमता इतनी तेज होती है कि वे इस कंद मूल को ढूंढ निकालते हैं | चाहे क्यों न वह जमीन के नीचे दबा हुआ हो|
बरातू कहते हैं, बलसाय नामक इस कंद को वे पहचानते हैं | इसकी लताएँ होती हैं और जमीन में कंद | हाथी इसी कंद को खाने आते हैं | बलसाय कान की लताओं पर अगर कोई पत्थर गिर जाता है तो कुछ देर में लताएँ इसे पलट देती हैं | जब लता में इतनी ताकत तो कंद में कितना ताकत होगा जाना जा सकता है |
वे बताते है यह कंद लाल होता है | इसे तोड़ें तो लाल रस निकलता है , जिस तरह लाल चाय का रंग होता है उसी तरह |
अगर कोई बीमारी के बाद अशक्त महसूस करता है , या कमजोरी महसूस करता है तो इसके रस का सेवन कुछ ही दिनों में उसे तरोताजा कर देता है | इसलिए हमारे पुरखे इसका उपयोग करते थे | खासकर, शिशु जन्म के बाद प्रसूता को इस कंद को पीने दिया जाता था |
हाथी इसे खाकर और ताकत पाते होगे तभी तो वे इसे ढूंढ निकालते हैं| बार नवापारा अभ्यारण्य में बलसाय कंद है| इन दिनों इस इलाके में हाथी हैं | इस कंद को पाने यहाँ जाना खतरे से खाली नहीं है |
वे कहते हैं , किसी वन्य जीव को नहीं छेड़ें, उसकी गतिविधियों को देखें –जानें और वे हमें साथी की तरह नजर आयेंगे | जाने, वे किस तरह आपके जीवन की रक्षा कर रहे हैं |