बस्तर के दंतेवाडा में महाशिवरात्रि की अनोखी परंपरा है। यह रीति-रिवाज ओर परंपरा हज़ारों वर्ष से चली आ रही है। यहां सिरहा जनजाति के लोग महाशिवरात्रि के दो दिन पहले भगवान शंकर और माता पार्वती की सेवा और विशेष पूजा अर्चना करते हैं|
जिसके लिए अलग-अलग पहाड़ियों के ऊपर से बांस के दो टुकड़े लाते हैं इन टुकड़ों को ग्रामीण शिव और पार्वती का स्वरूप मानते हैं और फिर उनका विवाह कराते है।
दंतेवाडा के दंतेश्वरी मंदिर के संगम तट जहां इलाके की प्रमुख नदियों शखनी डंकनी का मिलन होता है, वहां ढोल नगाड़ों के साथ पुजारी की अगुवाई में ग्रामीण जात्रा निकालते हैं। इस दौरान वो नाचते गाते भैरव मंदिर जाते है और वहां पूजा अर्चना कर उन दोनों बांस को दंतेश्वरी मंदिर के सामने रख कर उन बांस के टुकड़ों को शिव और पार्वती का रूप मानते हुए उनका विवाह कराते है।
बता दें आंध्रप्रदेश तथा ओडिशा से घिरे दंतेवाड़ा में बहुत से जनजातीय समूह हैं। इनमें मुख्य रूप से तीन जनजातीय समूह मुड़िया-दंडामी माड़िया या गोंड, दोरला तथा हल्बा हैं।
ये जनजातियाँ भी देवी-देवताओं में विश्वास करती हैं। वे झाड़-फूक, भूत प्रेत और जादू टोना में भी भरोसा करते हैं। सिरहा-गुनिया पर उन्हें विशेष भरोसा होता है। सिरहा ऐसा व्यक्ति होता है जो अपने शरीर में पवित्र आत्मा को आमंत्रित करता है और इससे पीड़ित का इलाज करने का दावा करता है।
गुनिया सिरहा का सहयोगी होता है और तंत्र-मंत्र के माध्यम से पीडि़त को ठीक करने का दावा करता है।