सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार को बाल तस्करी मामलों को लेकर कड़ी फटकार लगाई और राज्य सरकारों को इस प्रकार के अपराधों को रोकने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए. कोर्ट ने कहा कि बाल तस्करी और बाल श्रम जैसे अपराधों को रोकने के लिए तत्काल प्रभाव से कदम उठाए जाएं.
सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच, जिसमें जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन शामिल थे, ने निचली अदालतों को आदेश दिया कि बाल तस्करी से संबंधित मामलों का ट्रायल छह महीने के भीतर पूरा किया जाए. कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि यदि कोई नवजात बच्चा तस्करी का शिकार होता है, तो अस्पतालों का लाइसेंस निलंबित किया जाए.
कोर्ट ने कहा, “देशभर के हाईकोर्ट को बाल तस्करी मामलों में लंबित ट्रायल की स्थिति जाननी चाहिए और फिर छह महीने के भीतर ट्रायल पूरा करने के निर्देश दिए जाएं. इसके अलावा, रोजाना सुनवाई की जाए.”
भारत में बाल तस्करी और बाल श्रम को लेकर कड़े कानून होने के बावजूद यह अपराध जारी हैं. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 2020 से अब तक करीब 36,000 बच्चे लापता हो गए हैं.
सुप्रीम कोर्ट का यह कड़ा बयान उस मामले की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें उत्तर प्रदेश में एक जोड़े को बेटे की चाह में तस्करी किए गए बच्चे को दिया गया था. आरोपियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने anticipatory bail दे दी थी.
कोर्ट ने आरोपियों की जमानत रद्द करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट और उत्तर प्रदेश सरकार की निंदा की. कोर्ट ने कहा, “आरोपी बेटे की इच्छा रखते थे और चार लाख रुपये में एक बेटा खरीदा. यदि किसी को बेटा चाहिए, तो वह तस्करी किए गए बच्चे को नहीं ले सकता. उन्हें पता था कि बच्चा चोरी किया गया था.”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने जमानत याचिकाओं को “लापरवाही” से निपटाया, जिससे कई आरोपी फरार हो गए.
सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कोर्ट ने कहा, “हम पूरी तरह से निराश हैं… कोई अपील क्यों नहीं की गई? कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई.”
बाल तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अस्पतालों के लाइसेंस निलंबित करने के आदेश दिए. कोर्ट ने कहा, “यदि कोई नवजात बच्चा तस्करी का शिकार होता है, तो सबसे पहला कदम अस्पताल का लाइसेंस निलंबित करना होना चाहिए. अगर कोई महिला अस्पताल में बच्चे को जन्म देने आती है और बच्चा चोरी हो जाता है, तो सबसे पहला कदम अस्पताल का लाइसेंस निलंबित करना चाहिए.”