बच्चों का मौलिक अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्थलों पर स्तनपान सुविधाएं उपलब्ध कराने के दिए निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो भी सार्वजनिक भवन अभी निर्माणाधीन या योजना के स्तर पर हैं, उनमें बच्चों और माताओं के लिए आवश्यक सुविधाओं जैसे कि चाइल्ड केयर/नर्सिंग रूम के लिए पर्याप्त स्थान सुनिश्चित किया जाए.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्तनपान एक बच्चे के जीवन, अस्तित्व और समुचित विकास का मौलिक हिस्सा है. इसके साथ ही, न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह सार्वजनिक स्थलों और कार्यस्थलों पर स्तनपान के लिए अनुकूल स्थान उपलब्ध कराने की व्यवस्था सुनिश्चित करे.

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे केंद्र सरकार की एडवाइजरी को लागू करें और जहां तक संभव हो, मौजूदा सार्वजनिक स्थलों में माताओं के लिए स्तनपान कक्ष की व्यवस्था करें.

नए सार्वजनिक भवनों में स्तनपान कक्ष अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो भी सार्वजनिक भवन अभी निर्माणाधीन या योजना के स्तर पर हैं, उनमें बच्चों और माताओं के लिए आवश्यक सुविधाओं जैसे कि चाइल्ड केयर/नर्सिंग रूम के लिए पर्याप्त स्थान सुनिश्चित किया जाए.

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार द्वारा 2024 में जारी की गई एडवाइजरी संविधान के अनुच्छेद 14 और 15(3) के तहत मौलिक अधिकारों के अनुरूप है. पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों/प्रशासकों को एक रिमाइंडर कम्युनिकेशन भेजे ताकि वे एडवाइजरी का अनुपालन सुनिश्चित कर सकें. इससे सार्वजनिक स्थलों पर स्तनपान कराने वाली महिलाओं को आवश्यक सुविधाएं मिल सकेंगी.

मातृ स्पर्श’ पहल के तहत याचिका पर सुनवाई

यह मामला ‘मातृ स्पर्श’ पहल के तहत आया, जिसे अव्यान फाउंडेशन द्वारा दाखिल किया गया था. याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया था कि सरकार और अन्य संबंधित निकायों को निर्देश दिया जाए कि वे सार्वजनिक स्थलों पर स्तनपान व चाइल्ड केयर कक्ष जैसी सुविधाएं विकसित करें. याचिकाकर्ता ने दलील दी कि किसी भी बच्चे को मातृ दूध से वंचित करना उसके मौलिक अधिकार का हनन है.

याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि वर्तमान समय में महिलाएं बड़ी संख्या में कार्यस्थलों पर सक्रिय भूमिका निभा रही हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि सार्वजनिक स्थलों पर स्तनपान व चाइल्ड केयर की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं.

सरकार की प्रतिक्रिया

सरकार के वकील ने अदालत को बताया कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव ने 27 फरवरी 2024 को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों/प्रशासकों को एक संचार भेजा था, जिसमें इस विषय पर दिशा-निर्देश दिए गए थे. इसके तहत राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को केंद्र सरकार की एडवाइजरी को सिफारिश के रूप में अपनाने का निर्देश दिया गया था.

स्तनपान का महत्व और राज्य की जिम्मेदारी

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि स्तनपान एक महिला की प्रजनन प्रक्रिया का अभिन्न अंग है और यह मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है. विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों को जन्म के पहले छह महीने तक केवल स्तनपान कराना चाहिए और छह महीने के बाद पूरक आहार के साथ इसे दो वर्ष या उससे अधिक समय तक जारी रखना चाहिए. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की धारा 5(ए) भी इस तथ्य का समर्थन करती है.

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बच्चे के स्तनपान के अधिकार का संबंध सीधे उसकी मां से जुड़ा है, इसलिए मां को भी अपने बच्चे को स्तनपान कराने का अधिकार है. यह राज्य का दायित्व बनता है कि वह सार्वजनिक स्थलों पर ऐसी सुविधाएं प्रदान करे जिससे महिलाएं सहजता से अपने शिशुओं को दूध पिला सकें. यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 और ‘बाल कल्याण के सर्वोत्तम हित’ के सिद्धांत से उत्पन्न होता है, जिसे अंतरराष्ट्रीय कानून और किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 में भी मान्यता प्राप्त है.

संविधान में बच्चों के अधिकारों का प्रावधान

कोर्ट ने अनुच्छेद 39(एफ) का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य की नीति बच्चों के स्वस्थ विकास की दिशा में केंद्रित होनी चाहिए. साथ ही, अनुच्छेद 47 के तहत यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह लोगों के जीवन स्तर और पोषण के स्तर को बेहतर बनाए.

सभी सार्वजनिक उपक्रमों को दो सप्ताह में निर्देश जारी करने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह दो सप्ताह के भीतर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पुनः परामर्श जारी करे. इसके तहत सभी सार्वजनिक उपक्रमों को निर्देश दिया जाएगा कि वे अपने परिसर में चाइल्ड केयर, स्तनपान और नर्सिंग रूम जैसी सुविधाओं के लिए स्थान सुनिश्चित करें.

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