प्रयागराज। प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने कहा कि महा कुंभ में करोड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति उनके गहरे विश्वास और भक्ति का प्रमाण है. उन्होंने इसे भारत की सांस्कृतिक विविधता और आध्यात्मिक संपदा का प्रतीक बताते हुए कहा कि यह उत्सव देश की गहरी आध्यात्मिक चेतना से जुड़ा हुआ है.
“आस्था, आस्था और केवल आस्था ही करोड़ों लोगों को महा कुंभ की ओर खींच लाती है. यह भारतीय जनमानस के मनोविज्ञान में गहराई से समाया हुआ पर्व है,” उन्होंने इंडिया टुडे को दिए एक विशेष साक्षात्कार में कहा. श्री श्री रविशंकर ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ संस्था के संस्थापक हैं और दुनियाभर में उनके लाखों अनुयायी हैं.
महा कुंभ का आध्यात्मिक महत्व
12 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होने वाला महा कुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है. इस वर्ष यह पर्व 13 जनवरी से प्रारंभ होकर बुधवार को संपन्न हुआ, जिसमें 67 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान किया.
श्री श्री रविशंकर के अनुसार, कुंभ में डुबकी लगाना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मिक उत्थान का माध्यम है. उन्होंने कहा, “एक पवित्र स्नान व्यक्ति को अपनी वास्तविक प्रकृति से जोड़ता है. यह न केवल अतीत को क्षमा करने और भूलने की शक्ति देता है, बल्कि वर्तमान को अपनाने की प्रेरणा भी देता है.”
गंगा जल की शुद्धता पर वैज्ञानिक शोध
हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की एक रिपोर्ट में प्रयागराज में गंगा जल में उच्च स्तर के ‘फीकल कोलीफॉर्म’ बैक्टीरिया की उपस्थिति दर्ज की गई, जिससे इसकी स्वच्छता पर सवाल उठे. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए श्री श्री रविशंकर ने कहा कि गंगा की जलधारा को सदियों से आत्म-शुद्धिकरण की क्षमता के लिए जाना जाता है.
“वैज्ञानिकों के शोध बताते हैं कि गंगा जल दुनिया की सबसे सशक्त जल धाराओं में से एक है, जिसमें स्वयं को शुद्ध करने की असाधारण क्षमता है. इसके जल में बैक्टीरिया पनप नहीं सकते. कुछ मुद्दे हो सकते हैं, लेकिन वैज्ञानिक रूप से इसकी गुणवत्ता अद्भुत मानी जाती है और यह हमारी प्राचीन मान्यताओं की पुष्टि करता है,” उन्होंने कहा.
अब गर्व से स्वीकार कर रहे हैं अपनी आध्यात्मिक जड़ें
श्री श्री रविशंकर ने कहा कि पहले कई लोग, यहां तक कि राजनेता भी, कुंभ मेले में गुपचुप तरीके से स्नान करते थे, क्योंकि उन्हें सामाजिक प्रतिष्ठा की चिंता होती थी. “पहले लोग संकोच में रहते थे, लेकिन अब वे गर्व से अपनी पहचान को स्वीकार कर रहे हैं. अब वह पाखंड और दोगलापन समाप्त हो गया है. हम अपनी जड़ों को सम्मान देना सीख रहे हैं,” उन्होंने कहा.
महा कुंभ न केवल आस्था का पर्व है, बल्कि यह भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना का जीवंत प्रमाण भी है, जहां करोड़ों लोग अपने विश्वास और आत्मिक उत्थान के लिए एकत्रित होते हैं.