वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज ने दिया स्वास्थ्य और आत्म सुधार पर अद्भुत दृष्टिकोण

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वृंदावन: वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज अपनी अद्भुत आध्यात्मिक दृष्टि और ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हैं. हाल ही में एक व्यक्ति ने महाराज जी के पास आकर अपनी शारीरिक प्रवृत्तियों के कारण पश्चाताप व्यक्त किया. उसने बताया कि वह अब तक 150 पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध बना चुका है और अब वह खुद को पापी महसूस करता है.

इस पर संत प्रेमानंद महाराज ने न केवल उसकी भावनाओं को समझा, बल्कि उसे एक नया दृष्टिकोण दिया. उन्होंने कहा, “ईश्वर की विशेष कृपा आप पर है. अब तक आपने सिर्फ डर और चिंता का अनुभव किया है, खुशी का नहीं. इस स्थिति में आपको भगवान का नाम जपने की आवश्यकता है और अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने का प्रयास करें. तब आप एक बेहतर इंसान बन सकते हैं.”

संत की यह सलाह न केवल उस व्यक्ति के लिए थी, बल्कि समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश थी. इसके साथ ही, इस बातचीत में छिपे स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों पर भी ध्यान दिया गया, जो विशेष रूप से कई शारीरिक संबंधों में शामिल होने से उत्पन्न होते हैं.

इन जोखिमों को समझने के लिए, न्यूज़18 टीम ने डॉ. तुषार त्याल से संपर्क किया, जो डॉ. सीके बिरला अस्पताल, गुरुग्राम में आंतरिक चिकित्सा विभाग के प्रमुख हैं. डॉ. त्याल ने बताया कि एक से अधिक भागीदारों के साथ बिना सुरक्षा के शारीरिक संबंध बनाने से यौन संचारित रोगों (STDs) का खतरा बढ़ जाता है, जिसमें एचआईवी, हेपेटाइटिस B, हेपेटाइटिस C, गोनोरिया, सिफलिस, क्लैमेडिया, ट्राइकोमोनियासिस, एचपीवी, प्यूबिक लाइस, और जननांग हर्पीज शामिल हैं.

उन्होंने बताया कि कई यौन संचारित रोगों के प्रारंभिक लक्षण अक्सर पहचाने नहीं जाते हैं, जिसके कारण निदान में देरी हो सकती है और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. समय के साथ, ये संक्रमण जननांगों में खुजली, धब्बे, मस्से, घाव, पेशाब में कठिनाई, गुदा में खुजली, और कुछ मामलों में रक्तस्राव या पेट में दर्द का कारण बन सकते हैं.

डॉ. त्याल ने कहा कि इन रोगों की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि इनमें से कई रोगों का कोई इलाज नहीं है, जैसे कि एचआईवी, हेपेटाइटिस B, और हेपेटाइटिस C. बिना उपचार के, ये संक्रमण मस्तिष्क तक पहुंच सकते हैं, जिससे सिरदर्द, बुखार और मस्तिष्क कोशिकाओं को नुकसान हो सकता है.

इसलिए, जो लोग उच्च जोखिम वाले व्यवहारों में शामिल होते हैं, उन्हें हर तीन महीने में रक्त परीक्षण कराना चाहिए. हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि नकारात्मक परीक्षण परिणामों के बावजूद, यौन संचारित रोगों का खतरा बना रहता है. इसलिए, नियमित रक्त परीक्षण हर छह महीने में करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि समय रहते बीमारी का पता चल सके और उचित उपचार किया जा सके.

यह मामला न केवल व्यक्तिगत जिम्मेदारी का मुद्दा है, बल्कि समाज में जागरूकता फैलाने का भी एक प्रयास है, ताकि लोग अपने स्वास्थ्य और जीवन को बेहतर तरीके से समझें और सुरक्षित जीवन जीने की दिशा में कदम बढ़ाएं.

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