नई दिल्ली: मोदी सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक 2025 को संसद के दोनों सदनों से मंजूरी दिलवाकर बड़ी कामयाबी हासिल की है. लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 288 वोट पड़े, जबकि 232 सांसदों ने इसका विरोध किया. वहीं, राज्यसभा में 128 वोट समर्थन में और 95 वोट खिलाफ आए. विपक्ष के तीखे विरोध के बावजूद यह विधेयक अब राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार कर रहा है, जिसके बाद यह कानून बन जाएगा. इस जीत से सरकार ने न सिर्फ अपने राजनीतिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाया, बल्कि गठबंधन की मजबूती को भी साबित कर विपक्ष को करारा जवाब दिया है.
भाजपा के पास अपने दम पर बहुमत नहीं होने से इस बिल को पास कराना आसान नहीं था. 2024 के चुनाव में भाजपा को 240 सीटें मिलीं, जो बहुमत के लिए जरूरी 272 से कम थीं. ऐसे में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सहयोगियों का साथ बेहद अहम था. मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने नीतीश कुमार की जेडीयू, चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी, चिराग पासवान की एलजेपी (राम विलास) और जयंत चौधरी की आरएलडी पर बिल के खिलाफ दबाव बनाने की कोशिश की, क्योंकि यह मुस्लिम संपत्तियों से जुड़ा मसला था. फिर भी, इन सहयोगियों ने मुस्लिम वोटों की चिंता छोड़कर मोदी सरकार का पूरा साथ दिया.
इस सफलता ने गठबंधन राजनीति में भाजपा की ताकत को उजागर किया है. राजनीतिक जानकारों का मानना था कि नरेंद्र मोदी को गठबंधन सरकार चलाने का अनुभव नहीं है, क्योंकि 2002 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री और 2014 से 2024 तक प्रधानमंत्री के तौर पर उनके पास हमेशा पूर्ण बहुमत रहा. इस बार जेडीयू और टीडीपी की 28 सीटों के दम पर एनडीए ने तीसरी बार सत्ता हासिल की. माना जा रहा था कि सहयोगियों के साथ तालमेल बिठाना मुश्किल होगा और मोदी को अपने एजेंडे पर लगाम लगानी पड़ सकती है, लेकिन वक्फ बिल ने इन आशंकाओं को गलत साबित कर दिया.
विपक्ष को उम्मीद थी कि बिहार और आंध्र प्रदेश में मुस्लिम वोटों पर निर्भर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू बिल को रोकेंगे. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठनों ने दावा किया कि यह बिल वक्फ संपत्तियों में सरकार का दखल बढ़ाएगा, जिसके खिलाफ प्रदर्शन और एनडीए सहयोगियों के कार्यक्रमों का बहिष्कार हुआ. इसके बावजूद, जेडीयू के संजय झा और टीडीपी के केपी तेनेटी जैसे नेताओं ने संसद में बिल का जोरदार समर्थन किया और कहा कि यह मुस्लिम महिलाओं और कमजोर वर्गों के हित में है. इस एकजुटता ने मोदी विरोधियों को चुप कर दिया.
सहयोगियों को मनाने के लिए भाजपा ने पिछले एक साल में दर्जनभर से ज्यादा बैठकें कीं. बिल को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा गया, जहां जेडीयू और टीडीपी के सुझावों समेत 14 संशोधन शामिल किए गए. जेडीयू के ललन सिंह और संजय झा ने नीतीश कुमार के मुस्लिम कल्याण के कामों का जिक्र किया, तो टीडीपी ने चंद्रबाबू नायडू के प्रयासों को रेखांकित किया. सहयोगियों को यह समझाने में सफलता मिली कि बिल का मकसद समुदायों को बांटना नहीं, बल्कि मुस्लिम हितों की रक्षा करना है. इस तरह, मोदी सरकार ने विवादास्पद मुद्दे पर भी गठबंधन की ताकत से जीत हासिल की.