विपक्षी नेताओं के लिए चुनौती: महेश जेटमलानी ने उपराष्ट्रपति के संविधान संबंधी मुद्दे को किया स्पष्ट

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कोलकाता: वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट वकील महेश जेटमलानी ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के उस बयान का समर्थन किया, जिसमें उन्होंने न्यायपालिका को लेकर कड़ी टिप्पणी की थी. जेटमलानी का कहना है कि उपराष्ट्रपति ने संविधान की एक दोषपूर्ण स्थिति को उजागर किया है, खासकर न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को लेकर. यह बयान उस समय आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित बिलों पर अनुमोदन के लिए एक समयसीमा तय करने का आदेश दिया था.

जेटमलानी ने कहा, “धनखड़ जी ने केवल संविधान में एक दोष को उजागर किया है. समाज में एक धारणा बन रही है कि न्यायपालिका में ‘ज्यूडिशियल ओवररीच’ (न्यायिक अतिक्रमण) की प्रवृत्ति बढ़ रही है. सार्वजनिक रूप से सोशल मीडिया पर इसे लेकर कई चर्चाएँ हो रही हैं. न्यायपालिका के कामकाज में पारदर्शिता की कमी, जैसे कि जस्टिस वरमा के मामले में हुआ, लोगों को ठीक नहीं लग रहा है. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का कर्तव्य है कि वे संविधान की रक्षा करें.”

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने 18 अप्रैल को संसद में एक भाषण के दौरान सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश की आलोचना की थी, जिसमें राष्ट्रपति को राज्य विधानसभाओं से बिलों पर अनुमोदन देने के लिए एक निश्चित समयसीमा तय करने का निर्देश दिया गया था. उन्होंने सवाल उठाया था कि क्या न्यायपालिका अब विधायिका के रूप में कार्य कर रही है और क्या इसके पास कोई जिम्मेदारी नहीं है, क्योंकि यह अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी नहीं है.

इस दौरान, जेटमलानी ने सोशल मीडिया पर एक विस्तृत पोस्ट भी किया, जिसमें उन्होंने न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठाए. उन्होंने विशेष रूप से जस्टिस यशवंत वरमा के ‘कैश-एट-होम’ मामले का उल्लेख किया, जिसमें न्यायाधीश के घर में आग लगने के बाद आधे जल चुके नोटों का पता चला था. जेटमलानी का कहना था कि इस मामले में पारदर्शिता की पूरी कमी रही है और यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए.

धनखड़ ने मामले के संदर्भ में यह भी सवाल उठाया था कि क्या किसी विशेष वर्ग को कानून से बाहर एक विशेष सुरक्षा मिल गई है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह घटना आम आदमी के घर होती, तो जांच की गति बहुत तेज होती, लेकिन न्यायाधीश के मामले में यह धीमी है.

सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए जेटमलानी ने कहा कि यह आदेश निश्चित रूप से विवाद पैदा करने वाला था. उनका मानना था कि उपराष्ट्रपति ने “संविधान में स्पष्ट दोष” को उठाया, और यह संविधान की रक्षा करने के लिए उनका कर्तव्य था.

उन्होंने यह भी बताया कि कोर्ट के आदेश में एक दो-न्यायाधीशों की बेंच द्वारा इस मामले में निर्णय लिया गया था, जबकि संविधान के अनुच्छेद 145(3) के अनुसार, किसी भी संविधान संबंधी मामले को पांच न्यायाधीशों की बेंच द्वारा ही सुना जाना चाहिए. जेटमलानी ने इसे संविधान के प्रति उपराष्ट्रपति की शपथ को निभाने के रूप में देखा.

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