हिंदुस्तानियों के दिमाग में आंधी की तरह आए और छा गए थे उमर शरीफ
वो 80 और 90 के बीच का दौर था, तब पाकिस्तान के गुलाम अली और सलमा आगा का सुरूर हम हिंदुस्तानियों के दिमाग से उतरा नहीं था कि अचानक से एक आंधी की तरह उमर शरीफ आए और छा गए।
उमर शरीफ-बसपन का प्यार
वो 80 और 90 के बीच का दौर था, तब पाकिस्तान के गुलाम अली और सलमा आगा का सुरूर हम हिंदुस्तानियों के दिमाग से उतरा नहीं था कि अचानक से एक आंधी की तरह उमर शरीफ आए और छा गए।
उस दौर में गल्फ से लौटने वाला हर हिंदुस्तानी वीसीआर-वीसीपी के साथ दो वीडियो कैसेट जरूर लाता था। पहली दिलीप कुमार की ‘मुगल-ए-आजम’ और दूसरी उमर शरीफ की ‘बकरा किस्तों पे’।
तब किराए पर भी वीसीआर मिलता था, लिहाजा न्यू रिलीज के साथ सबसे ज्यादा डिमांड ‘बकरा किस्तों पे’ और ‘बुड्ढा घर पे है’ की कैसेट की रहती।
अब जब 2 अक्टूबर 2021 को 66 साल की उम्र में तकलीफदेह हालात में उमर शरीफ ने आखिरी सांस ली तो उनके चाहने वालों का गमगीन होना लाजिमी है।
उमर शरीफ के ड्रामे ने दक्षिण एशिया में ऐसी धूम मचाई कि उनके किरदार और डायलॉग मुंह जबानी हम बच्चों को याद हो गए थे। तीली परसों, सुंडी, मिर्जा से लेकर आदाब-आदाब तक सब कुछ…
उमर शरीफ ने अपने हास्यबोध के चलते चाहने वालों की काफी बड़ी जमात तैयार की थी। ऐसा नहीं कि उनकी कॉमेडी को हर कोई पसंद करता था। हमारे यहां के दादा कोंडके की तरह वहां उनके आलोचक भी थे।
कुछ साल पहले फैज जन्मशताब्दी में पाकिस्तान की एक बड़ी लेखिका से जब मैं भिलाई में इंटरव्यू ले रहा था तो यूं ही मैनें उमर शरीफ के बारे में पूछ लिया। उन्होंने अजीब सा मुंह बनाया और छूटते ही कहा-वो…बेहूदा..? उसके बारे में क्या हूं..।
खैर, उमर शरीफ की हाजिर जवाबी और उनका अंदाजे बयां लोग कभी नहीं भूल पाएंगे। हिंदुस्तान में भी उन्होंने अपने कई शो किए और टेलीविजन शो में भी हिस्सा लिया। जैसी लोकप्रियता उमर शरीफ को मिली वैसे बहुत कम लोगों को मिलती है।
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिउन
-मो. जाकिर हुसैन