नई दिल्ली: सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत में नियंत्रित श्रेणी की दवाओं की कीमतों में 1.7% की वृद्धि होने की संभावना है. इनमें कैंसर, मधुमेह, हृदय संबंधी समस्याओं और एंटीबायोटिक्स जैसी आवश्यक दवाएं शामिल हैं. ऑल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स (एआईओसीडी) के महासचिव राजीव सिंघल ने बताया कि यह कदम फार्मास्यूटिकल उद्योग के लिए राहत देगा, क्योंकि कच्चे माल और अन्य खर्च बढ़ रहे हैं.
उन्होंने कहा, “व्यापार के लिहाज से, दवाओं की नई कीमतें बाजार में दो से तीन महीने में दिखाई देंगी, क्योंकि किसी भी समय बाजार में लगभग 90 दिनों की बिक्री योग्य दवाएं होती हैं.”
एक संसदीय स्थायी समिति के अध्ययन में पाया गया कि फार्मा कंपनियां बार-बार दवाओं की कीमतों पर नियमों का उल्लंघन कर रही हैं और अनुमति से अधिक कीमतें बढ़ा रही हैं. राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने 307 मामलों में उल्लंघन पाया है. एनपीपीए दवाओं की कीमतें निर्धारित करता है और सभी निर्माताओं और विपणनकर्ताओं को निर्धारित सीलिंग मूल्य (लागू जीएसटी सहित) पर या उससे नीचे बेचना चाहिए.
इस महीने की शुरुआत में, रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने बताया कि राष्ट्रीय आवश्यक दवाओं की सूची, 2022 में सूचीबद्ध दवाओं की कीमत सीमा के कारण मरीजों को लगभग 3,788 करोड़ रुपये की वार्षिक बचत हुई है.