बिल्डर को या तो पैसा दिखता है या जेल की सजा ही समझ में आती है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार अवमानना एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि बिल्डर को या तो पैसा दिखता है या फिर जेल की सजा ही समझ में आती है।
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार अवमानना एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि बिल्डर को या तो पैसा दिखता है या फिर जेल की सजा ही समझ में आती है।
सुप्रीम कोर्ट ने ने एक रियल स्टेट कंपनी को उसके आदेश का जानबूझकर पालन ना करने के लिए अवमानना का दोषी करार देते हुए यह कहा और उसपर 15 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया।
कोर्ट ने रियल एस्टेट फर्म इरियो ग्रेस रियलटेक प्राइवेट लिमिटेड को राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नल्सा) के पास 15 लाख रुपए जमा करने और कानूनी खर्च के तौर पर घर खरीदारों को दो लाख रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया।
कंपनी ने कोर्ट के आदेश पर खरीदारों को पैसा नहीं लौटाया। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने गौर किया कि इस साल पांच जनवरी को उसने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद समाधान आयोग के 28 अगस्त के पिछले साल के फैसले को बरकरार रखा था
जिसमें कंपनी को घर खरीदारों को नौ प्रतिशत ब्याज के साथ रिफंड का निर्देश दिया गया था। पीठ ने कहा, हमने आपको पांच जनवरी को दो महीने के भीतर राशि लौटाने का निर्देश दिया था।
फिर आपने (बिल्डर) आदेश में संशोधन की मांग करते हुए एक याचिका दायर की, जिसे हमने मार्च में खारिज कर दिया और आपको घर खरीदारों को दो महीने के भीतर पैसा लौटाने का निर्देश दिया।
अब, फिर से घर खरीदार हमारे सामने अवमानना याचिका के साथ आए हैं कि आपने पैसे का भुगतान नहीं किया है। हमें कोई ठोस कदम उठाना होगा जिसे याद किया जाये या फिर किसी को जेल भेजना होगा।
बिल्डर्स को केवल पैसा दिखता या फिर जेल की सजा ही समझते हैं। रियल्टी कंपनी के वकील ने कहा कि उन्होंने आज 58.20 लाख रुपए का आरटीजीएस भुगतान कर दिया है और घर खरीदारों को देने के लिये 50 लाख रुपए का डिमांड ड्राफ्ट भी तैयार है।
इस पर पीठ ने कहा, आपको मार्च में भुगतान करना था लेकिन अब अगस्त में आप कह रहे हो कि अब आप कर रहे हो। आपने जानबूझकर हमारे आदेश की अवहेलना की है, हम इसे हल्के में नहीं छोड़ सकते हैं।
कंपनी के वकली ने कहा कि वह देरी और असुविधा के लिये माफी मांगती है। इस पर पीठ ने कहा, ”हमें यह माफी स्वीकार्य योग्य नहीं लगती। बिल्डर ने आदेश का पालन नहीं करने के लिये हर तरह की रणनीति अपनाई है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, न्यायालय के आदेश की जानबूझकर और साफ-साफ अवहेलना की गई। इसलिए प्रतिवादी (बिल्डर)को अवमानना का दोषी करार दिया जाता है।
भुगतान में देरी का कोई उचित कारण नहीं दिया गया। हम याचिकाकर्ता (घर खरीदार) को पूरी राशि का भुगतान करने का निर्देश देते हैं और यह दिन के कामकाम के घंटों के दौरान हो जाना चाहिए।
न्यायालय ने बिल्डर को घर खरीदार को कानूनी लड़ाई खर्च के लिए दो लाख रुपए और कानूनी सेवा प्राधिकरण के पास 15 लाख रुपए जुर्माना के तौर पर जमा कराने को कहा।