18 साल के उद्यमी की कॉलेज दाखिला बहस: स्टैनफोर्ड-हार्वर्ड ने ठुकराया, सोशल मीडिया पर हंगामा

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18 साल के एक युवा उद्यमी ने कॉलेज दाखिले को लेकर बहस छेड़ दी है. जच यादेगारी नाम के इस छात्र को स्टैनफोर्ड, हार्वर्ड और येल जैसे शीर्ष आइवी लीग संस्थानों ने खारिज कर दिया, भले ही उसका शैक्षिक रिकॉर्ड शानदार है और उसकी कंपनी सालाना 30 मिलियन डॉलर कमा रही है. जच, जो न्यूट्रिशन ट्रैकिंग ऐप कैल एआई के सह-संस्थापक और सीईओ हैं, ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में यह खुलासा किया, जिसे 1 करोड़ से ज्यादा लोगों ने देखा.

उन्होंने बताया कि उनके पास 34 का एसीटी स्कोर और 4.0 का जीपीए है, फिर भी कई बड़े कॉलेजों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया. हालांकि, जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (जॉर्जिया टेक), टेक्सास विश्वविद्यालय और मियामी विश्वविद्यालय ने उन्हें दाखिला दे दिया. जच की कंपनी को फोर्ब्स ने भी सराहा है, इसे “उद्योग के दिग्गजों को चुनौती देने वाला ऐप” बताया था.

सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएं मिली-जुली रहीं. कुछ यूजर्स हैरान थे कि इतने सारे कॉलेजों ने उन्हें ठुकरा दिया, तो कुछ ने इसे “मजाक” करार दिया. एक यूजर ने पूछा, “आपने इतना कुछ हासिल कर लिया, फिर भी कॉलेज क्यों जाना चाहते हैं?” इसके जवाब में जच ने कहा, “मैं कॉलेज सिर्फ सामाजिक जीवन के लिए जाना चाहता हूं.” एक अन्य यूजर ने लिखा, “यह पागलपन है, कोई भी संस्थान आपको पाकर खुशकिस्मत होगा. शायद दाखिला अधिकारी को जलन हुई होगी.”

हालांकि, कई लोगों ने सवाल उठाया कि क्या जच का निबंध या उनका रवैया इस नतीजे का कारण बना. इसके बाद जच ने अपना कॉलेज दाखिला निबंध “पर्सनल स्टेटमेंट” पोस्ट किया. इसमें उन्होंने लिखा कि 7 साल की उम्र में उन्होंने खुद से कोडिंग सीखी, 10 साल की उम्र में 30 डॉलर प्रति घंटे की दर से कोडिंग सिखाना शुरू किया, और 14 साल की उम्र में एक गेमिंग वेबसाइट बनाई जिससे सालाना 60,000 डॉलर की कमाई हुई. 16 साल की उम्र तक उन्होंने एक छह अंकों की डील के साथ बिजनेस बेच दिया. उन्होंने पारंपरिक शिक्षा छोड़कर सैन फ्रांसिस्को में कैल एआई बनाने का फैसला भी बताया.

लेकिन उनके निबंध को इंटरनेट पर कई लोगों ने “खराब लिखा हुआ” कहा. एक यूजर ने टिप्पणी की, “आपका निबंध उनसे भी बुरा था, जो अमीर माता-पिता अपने बच्चों के लिए लिखवाते हैं.” एक अन्य ने लिखा, “आपके निबंध में कॉलेज के खिलाफ मजबूत रुख था, और भले ही बाद में आपने मन बदला, यह सवालों का जवाब नहीं देता.” कुछ आलोचकों का मानना था कि पारंपरिक शिक्षा के प्रति उनकी उदासीनता शीर्ष विश्वविद्यालयों के मूल्यों से टकराई होगी.

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