दशकों बाद नानक सागर में होला मोहल्ला ,27 मार्च को देश-दुनिया से जुटेंगे श्रद्धालु
दशकों बाद श्री गुरुनानक देव जी के दिव्य धाम नानक सागर में होला मोहल्ला अब फिर से शुरू होने जा रहा है | 27 मार्च को आयोजित इस होला महल्ला में देश-दुनिया से श्रद्धालु जुटेंगे |
पिथौरा| दशकों बाद श्री गुरुनानक देव जी के दिव्य धाम नानक सागर में होला मोहल्ला अब फिर से शुरू होने जा रहा है | 27 मार्च को आयोजित इस होला महल्ला में देश-दुनिया से श्रद्धालु जुटेंगे |
नानकसागर गुरुद्वारा निर्माण समिति के अध्यक्ष महेंद्र सिंह छाबड़ा एवम रिंकू ओबेरॉय ने इस सम्बंध में जानकारी देते हुए बताया कि नानक सागर गुरुद्वारा गढ़फुलझर में आयोजित एक बैठक में निर्णय लिया गया कि आगामी 27 मार्च को यहां होला मोहल्ला का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
इस दिन गुरु की भूमि पर सुबह 11 से 1 बजे तक कीर्तन समागम ,दोपहर 1 से 2 बजे तक लंगर , इसके बाद ढाई से शाम 6 बजे के बीच होला मोहल्ला फूलों की वर्षा के साथ प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से पहुचने वाली गतका टीम के बीच कॉम्पिटिशन आयोजित किया गया।उक्त कार्यक्रम में जिले के साथ पूरे देश दुनिया के श्रद्धालुओं के जुटने की संभावना है।
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बता दें कि अब तक देश भर में मात्र दो स्थान आनन्दपुर साहिब एवम हजूर साहिब में ही होला मोहल्ला का पर्व होली के दिन मनाया जाता है। अब यह पर्व इस वर्ष से नानक सागर में भी मनाया जाएगा।
बैठक में मुख्यतः रिंकू ओबेरॉय, बाबा बुड्ढा साहिब गुरुद्वारा के प्रधान,हरिकिशन सिंह राजपूत, गुरुद्वारा श्री नानकसर साहिब गुरुद्वारा के प्रधान हरजिंदर सिंह हरजु महिपाल सिह,जरनेट सिंह,जसकल सिंह बलबिर सिंह जगवाल सिंह,तरसेन सिंह,गजराज सिंह, ललितसिह ,दलजित और सरोज कौर रविन्दर कौर,अमन ओबेराय ,रंजमित कोर प्रितम कौर सहित अनेक सदस्य उपस्थित थे।
पूर्व में भी मनाया जाता था होली पर्व
उक्त सम्बन्ध में गढ़फुलझर और नानक सागर के ग्रामीणों ने बताया कि नानक सागर में दशकों पूर्व भी होला मोहल्ला का कार्यक्रम मनाया जाता रहा है। इस जानकारी के बाद ही नानक सागर गुरुद्वारा निर्माण समिति द्वारा होली के बाद होला मोहल्ला कार्यक्रम मनाने का निर्णय लिया गया है।
पौरुष का पर्व
बता दें मूल रूप से यह त्यौहार पंजाब के आनंदपुर साहिब में मनाया जाता है इसकी शुरुआत सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह जी ने 17वी सदी में की थी। गुरुगोविंद सिंह जी अपनी सेना के साथ मुगलों को खदेड़ने में लगे हुए थे। ऐसे में सिख शूरवीरों के निडरता से युद्ध लड़ने के उनके वचन को उर्जा प्रदान करने के लिए इस त्यौहार की शुरुआत की गई थी।
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बताया जाता है कि गुरु गोविन्द सिंह जी ने इसे पौरुष का पर्व बताया और होली के अगले दिन इसे मनाने की शुरुआत की। जानकारों के अनुसार होला का अर्थ आक्रमण करना एवं मोहल्ला का वह स्थान जहां आक्रमण करना होता है। यहाँ होला अरबी एवं मोहल्ला फारसी का शब्द है। इस पर्व से जुड़े विभिन्न किस्से सुनाने को मिलते हैं ।
deshdigital के लिए रजिंदर खनूजा