माड़ डिवीजन ने बनाई थी धमाके की रणनीति
40 किलो विस्फोटक का किया इस्तेमाल,10 बरस पहले 76 जवान शहीद हुए थे
जगदलपुर| बस्तर के नारायणपुर जिले में मंगलवार दोपहर नक्सल धमाके की रणनीति माड़ डिवीजन की पीएलजीए की कम्पनी नम्बर 06 ने बनाई थी| धमाके में 40 किलो विस्फोटक इस्तेमाल किया गया| नक्सलियों को पता था कि आपरेशन के बाद थके जवान गाड़ी से ही लौटेंगे| 10 बरस पहले माड़ के इसी इलाके में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे।
जिस इलाके में नक्सलियों ने ब्लास्ट किया है, वह नक्सलियों का लिबरेटेड जोन माना जाता है। यहां पूरी तरह नक्सलियों का कब्जा है। नक्सलियों की माड़ डिवीजन यहां तैनात है। 10 बरस बाद इस इलाके में बड़ी वारदात से अपने लिबरेटेड जोन को बरकरार रखने का संदेश देने की कोशिश है।
जवानों का रविवार से मंगलवार तक तीन दिन इलाके में आपरेशन चला। वापसी के लिए तीन बसों से दोपहर 02 बजे कैम्प के लिए निकले और जवानों की पहली बस बनी निशाना।
दोपहर बाद 4.15 से 4.30 बजे के करीब नक्सलियों ने कडेनार के पास विस्फोट किया ।
करीब 40 किलो बारूद भर रखा था धमाके के लिए, लेकिन कच्ची सड़क होने से ब्लास्ट की तीव्रता घटी।
नक्सलियों ने इस बार भी पुल को चुना विस्फोट के लिए क्योंकि यहां वाहन की गति धीमी हो जाती है ।
सूत्रों के अनुसार इस हमले में माड़ डिवीजन की पीएलजीए की कम्पनी नम्बर 06 का सहारा लिया गया जिसमें हार्डकोर सदस्य शामिल थे। इसकी प्लानिंग दो साल पहले ही की गई थी।
नक्सलियों को पता था कि आपरेशन के बाद थके जवान गाड़ी से ही लौटेंगे|
नक्सलियों का गढ़ – अबूझमाड़
नक्सली पूरे बस्तर संभाग में अबूझमाड़ को अपना सेफ जोन मानते हैं| इसका सबसे बड़ा कारण आज तक यहाँ किसी भी प्रशासनिक या पुलिस का ना पहुँचना है,इलाके का आज भी राजस्व सर्वे तक नहीं हुआ है|
माड़ का इलाका साढ़े 5 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला है जिसमे दंतेवाडा और बीजापुर जिले भी शामिल है। मगर माड़ का सबसे बड़ा साढ़े 4 हजार वर्ग किलोमीटर इलाका नरायणपुर में आता है| नक्सलियों कर बड़े बड़े ट्रेंनिग सेंटर यही है|
संगठन का हर बड़ा नेता अक्सर यहीं आते हैं और वारदात को अंजाम देने की पूरी योजना इसी इलाके में होती है|
हथियार बनाने की फैक्ट्री से लेकर तमाम सुविधाएं यही उपलब्ध है|
एक तरह से कहा जा सकता है कि नक्सलियों ने अपना मुख्यालय माड़ में ही बना रखा है|
इसीलिए नक्सली माड़ में किसी भी प्रकार के विकास का भारी विरोध करते है| बस्तर संभाग के मध्य और घना जंगल होने के चलते बड़ी वारदात के बाद नक्सली माड़ में छिप जाते हैं, जहाँ उनकी तलाश फोर्स के लिए भी नामुमकिन है|
टीसीओसी हमला
नक्सली अप्रैल और मई में टीसीओसी (TCOC) टेक्निकल काउंटर ऑफ ऑफेंसिव कैपेन चलाते हैं| इस दौरान छुप कर वार करना,जवानों को नुकसान पहुँचने के लिये विस्फोट करना,केम्पों में हमले जैसी वारदात करते हैं|
सन 2010 के पहले टीसीओसी के तहत नक्सली गाँव गाँव मे संगठन को मजबूत करने,गाँव गाँव मे प्रचार करने तथा फोर्स पर हमले की योजनाओं पर काम करते थे| पर ताड़मेटला की घटना के बाद नक्सलियों ने टीसीओसी को गोरिल्ला युध्द बदल दिया|
नक्सली अब टीसीओसी में ज्यादा से ज्यादा जवानों पर हमला करते हैं | पहले यह 2 माह अप्रैल – मई चलाई जाती थी मगर अब इसे बढ़ा कर 8 माह कर दिया गया है| वर्ष 2010 से अब तक नक्सलियों ने टीसीओसी के तहत कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया है|
टीसीओसी में अब तक के बड़े हमले
06 अप्रैल 2010 में ताड़मेटला हमले में सीआरपीएफ के 76 जवानों की शहादत ।
25 मई 2013 झीरम घाटी हमले में 30 से अधिक कांग्रेसी व जवान शहीद ।
11 मार्च 2014 को टहकवाड़ा हमले में 15 जवान शहीद ।
12 अप्रैल 2015 को दरभा में यदे एम्बुलेंस । 5 जवानों सहित ड्राइवर व एएमटी शहीद ।
मार्च 2017 में भेज्जी हमले में 11 सीआरपीएफ जवान शहीद ।
06 मई 2017 को सुकमा के कसालपाड़ में किया घात लगाकर हमला जिसमें 14 जवान शहीद ।
25 अप्रैल 2017 को सुकमा के बुरकापाल बेस केम्प के समीप किये नक्सली हमले में 32 सीआरपीएफ जवान शहीद ।
21 मार्च 2020 को सुकमा के मिनपा हमले में 17 जवानों की शहादत ।