छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह, वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, वरिष्ठ मंत्री रवींद्र चौबे, डॉ शिवनारायण डहरिया, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, प्रेम प्रकाश पांडे, पूर्व छात्र नेता डॉ व्यास नारायण द्विवेदी, डॉ प्रकाश शुक्ला, शेष नारायण शुक्ला, अनिल दुबे, संतोष दुबे, योगेंद्र शंकर शुक्ला, प्रमोद दुबे जैसे नामों में भले ही कोई समानता ना हो। कोई किसी दल में है तो कोई किसी और दल में। वही कोई सरकारी सेवा में तो कोई व्यवसाय में। मगर एक समानता इनमें जरूर है कि इनमें से ऐसा कोई नहीं होगा, जिसने मनी कैंटीन का चाय नाश्ता नहीं किया हो।
रायपुर का आयुर्वेदिक कालेज जिसका नाम अब खुदादाद इमदाद जी डूंगा आयुर्वेदिक कालेज हो चुका है। इसी कालेज कैम्पस में प्रवेश द्वार के भीतर था मनी कैंटीन। अब तो कस्बों ही नहीं गांवों में भी महाविद्यालय खुल चुके हैं। एक समय में अंचल में गिने चुने ही महाविद्यालय हुआ करते थे। इन महाविद्यालयों के बीच सिर्फ एक विश्विद्यालय रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय हुआ करता था। अंचल के ज्यादातर छात्र तब पढ़ने के लिए रायपुर का रुख करते थे।
रायपुर में रविशंकर विश्वविद्यालय के साथ, साइंस कॉलेज, आयुर्वेदिक कालेज, इंजीनियरिंग कालेज ओर संस्कृत कालेज के बारे में कहा जा सकता है कि सभी एक ही परिसर में हैं क्योंकि सभी आसपास ही स्थित हैं। इनसे अलग हट कर दुर्गा कालेज है। यहां दिन में कामर्स और रात में ला कालेज लगा करती थी। वहीं छत्तीसगढ़ कालेज परिसर में ही रात में चम्पादेवी कालेज लगती थी। लड़कियों के लिए अलग से कालीबाड़ी चौक के पास दूधाधारी बजरंग कन्या महाविद्यालय भी उस समय भी मौजूद था। इस महाविद्यालय को डिग्री गर्ल्स कॉलेज अधिक बोला जाता है। वैसे बाकी महाविद्यालयों में छात्र छात्राएं साथ ही पढ़ते थे।
छात्रों की भारी भीड़ के साथ तब छात्र राजनीति भी जबरदस्त हुआ करती थी। उन्हीं छात्रों का एक अड्डा हुआ करता था मनी कैंटीन। इसे स्व मनीराम शुक्ला चलाते थे। उन्होंने कच्ची दीवारों ओर खपरैल के सहारे एक होटल खोल रखा था। जिसे छात्र उनके नाम के साथ जोड़कर मनी कैंटीन बोला करते थे। यह सुबह 5 बजे से खुल जाता था और देर शाम 8 बजे बन्द होता था।
स्व शुक्लाजी साल 1955 में उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले से रायपुर आए थे। आयुर्वेदिक कालेज परिसर के बगल में डूंगाजी कालोनी है। इसी कालोनी में एक सरकारी स्कूल हुआ करती थी। सबसे पहले स्व शुक्लाजी ने उसी स्कूल के बगल में साल 1955 में होटल खोला। बाद में उस स्कूल का प्राथमिक शाला डंगनिया में और पूर्व माध्यमिक शाला चौबे कालोनी में भेज कर उस स्कूल को बन्द कर दिया गया। जिसके बाद शुक्लाजी अपनी होटल कुछ समय के लिए आयुर्वेदिक कालेज के सामने ले गए। फिर भीतर प्रवेश मार्ग में ले गए, जहां उनका होटल 40 सालों तक मौजूद रहा।
छात्रों के लिए शुक्लाजी क्या थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आयुर्वेदिक कालेज की जब जयंती मनाई गई तब तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने शुक्लाजी के साथ ही मिश्रा जी का भी साल और श्रीफल देकर सम्मान किया था।
मिश्रा जी की आयुर्वेद कालेज के बाहर पान की दुकान थी। उस समय छात्रों के लिए एक और जाना पहचाना होटल आमानाका चौक के पास मिश्रा होटल भी था। उसी के बगल में चाचा भतीजा नामक पान की दुकान भी प्रसिद्ध थी। थोड़ा बाद में इसी जगह पर टिकली होटल भी प्रसिद्ध होने लगी थी। एक ओड़िया सज्जन थे जिनका नाम टिकली था, वे अपनी झोपड़ी नुमा होटल में बड़ा बनाते थे। उनके बनाए बड़े का स्वाद लोगों की जुबान पर चढ़ने लगा था। एक दिन उनकी आमानाका रेलवे क्रासिंग में ट्रेन से कट कर मौत हो गई।
उस जमाने के छात्रों को क्या चाहिए चाय की चुस्कियों के साथ सिगरेट का कश मिल जाए मतलब सब कुछ मिल गया। पढ़ाकू छात्र हॉस्टलों में जाकर या कालेजों के विशालकाय परिसर में जाकर पढ़ाई करते थे। वहीं छात्र नेता राजनीति। मनी कैंटीन, मिश्रा होटल, चाचा भतीजा और मिश्राजी की पान की दुकानों ने छात्र राजनीति का वह सुनहरा दौर देखा था, जिसमें मात्र छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि पूरे देश से निकले छात्र नेता देश के भी बड़े बड़े राजनेता बने।
( पत्रकारिता से अपना केरियेर शुरू करने वाले अजय कुमार वर्मा इन दिनों रायपुर नगर निगम में कार्यरत है फेसबुक पर उनका साप्ताहिक कालम #सन्डे_की_चकल्लस )