ह्यूस्टन । अमेरिका की अंतरिक्ष अनुसंधान की संस्था नासा के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि चांद के गड्ढों यानी क्रेटर्स में दिन में भी बर्फीला पानी मिल सकता है। क्योंकि कई क्रेटर ऐसे हैं, जिनकी परछाइयों की वजह से अंधेरे वाले हिस्से में चांद की सतह पर काफी ठंडक रहती है।
यानी क्रेटर का वो हिस्सा जहां कभी सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती। यही स्थिति बड़े पत्थरों के पीछे बनने वाली परछाइयों के साथ भी है। हालांकि, नासा के वैज्ञानिकों का पहले मानना था कि रात में चांद की सतह पर बर्फीले पानी की हल्की परत बनती होगी, जो सुबह सूरज की रोशनी में गायब हो जाती है।
नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के साइंटिस्ट जॉर्न डेविडसन ने कहा कि करीब एक दशक पहले इसरो के चंद्रयान-1 स्पेसक्राफ्ट ने चांद के दिन वाले हिस्से में पानी की मौजूदगी के संकेत दिए थे। इसे नासा के स्ट्रेटोस्फियरिक ऑब्जरवेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी (सोफिया) ने पुख्ता भी किया था।
जॉर्न डेविडसन ने कहा कि चंद्रयान-1 समेत कई अन्य अंतरिक्ष यानों ने चांद पर पानी होने के संकेत और सबूत दिए हैं। लेकिन चांद के बुरे पर्यावरण में पानी का टिके रहना बेहद मुश्किल है। इसलिए हमारी खोज लगातार जारी है कि चांद की सतह पर पानी कहां और कैसे मिल सकता है।
तो पता ये चला कि बर्फीला पानी जमा हो सकता है और वह हवाविहीन वस्तुओं पर सर्वाइव कर सकता है। जैसे पत्थरों की परछाइयों के नीचे या फिर क्रेटर के उन हिस्सों में जहां कभी सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती। एक नई स्टडी में जॉर्न डेविडसन और सोना हुसैनी ने लिखा है कि चांद की सतह पथरीली और ऊबड़-खाबड़ है।
जिसकी वजह से सूरज की रोशनी दिन में भी कई जगहों पर नहीं पहुंच पाती। इसलिए यह संभावना है कि पत्थरों और क्रेटर की परछाइयों में बर्फीले पानी जमा होता हो। जबकि, सूरज के ध्रुवीय इलाकों यानी उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर काफी ठंडा रहता है, वहां तो ये काम आसानी से देखने को मिल सकता है। इसकी वजह से हल्का वायुमंडल भी बनता दिखाई देता है।
डेविडसन और सोना हुसैनी ने इसे समझने के लिए कंप्यूटर मॉडल्स बनाए। पहले यह माना जाता था कि ध्रुवों से दूर जो मैदानी इलाके हैं, वो दिन में एक समान गर्म होते हैं। लेकिन कंप्यूटर मॉडल्स के जरिए की गई स्टडी में यह बात स्पष्ट हुई है कि चांद की सतह एक समान गर्म नहीं होती। कई स्थानों पर परछाइयों के भीतर पानी के कण मिल सकते हैं।
दोनों वैज्ञानिकों ने बताया कि सोफिया ने यह बात पकड़ी है कि दिन की गर्मी के बावजूद चांद की सतह पर मौजूद परछाइयों में पानी के सिग्नल मिले हैं। ये चांद की पूरी सतह पर मौजूद हो सकते हैं। सिर्फ एक ही समस्या है कि दोपहर के समय जब सूरज ठीक सिर के ऊपर होता है तब इनकी मात्रा कम हो जाती है, लेकिन सुबह, शाम और रात में इनकी मात्रा बढ़ जाती है।
क्योंकि कई अंतरिक्ष यानों और टेलिस्कोप ने यह डेटा हासिल किया है, जिसमें पानी की हल्की परत एक जगह से दूसरी जगह हवा के सहारे तैरती है और सेकेंड्स में गायब हो जाती है। यानी इसका मतलब ये है कि चांद की सतह पर मौजूद पत्थरों, क्रेटर और उनकी परछाइयों में पानी जमा रहता है। जो दिन की रोशनी के हिसाब से कम ज्यादा होता रहता है।
अपनी बात को पुख्ता करने के लिए डेविडसन और हुसैनी ने 1969 से 1972 के बीच अमेरिका द्वारा छोड़े गए अपोलो मिशन के डेटा का भी अध्ययन किया।