ओडिशा: आज से 4 दिनों तक रजस्वला उत्सव

भारतीय समाज मासिक धर्म/ महवारी (पीरियड) के मुद्दे पर आज भी खुलकर बात नहीं करता. महिलाएं संकोच करती हैं. वहीं कई समुदायों में तो महवारी के दौरान अछूत सा व्यवहार किया जाता है,

ओडिशा आज से 4 दिनों तक रजस्वला उत्सव मना रहा है. यह प्रकृति के रजस्वला होने का त्यौहार है. चार दिनों के इस पर्व में कई दिलचस्प गतिविधियां होती है. ओडिशा का ये पर्व हमारी महान संस्कृति को दर्शाती है जो नारीत्व को सर्वोच्च स्थान प्रदान करती है.

भारतीय समाज मासिक धर्म/ महवारी (पीरियड) के मुद्दे पर आज भी खुलकर बात नहीं करता. महिलाएं संकोच करती हैं. वहीं कई समुदायों में तो महवारी के दौरान अछूत सा व्यवहार किया जाता है, उन्हें जमीन पर सोना पड़ता है, कहीं-कहीं तो उन्हें अलग कमरे दिए जाते हैं. विवाहिताओं को रसोई में प्रवेश बंद हो जाता है. वे घर के पूजा-पाठ में भी भाग नहीं लेती.

लेकिन मासिक धर्म/ महवारी/पीरियड होने पर उत्सव मनाया जाए आपमें से शायद बहुतों को मालूम न हो. जी हां, उत्सव मनाया जाता है. चार दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में झूले सजते हैं, कन्याएं झुलती हैं. खूब मौज मस्ती होती है. ढेर सारे पकवान बनते हैं. यह अनूठा रजस्वला उत्सव मनाया जाता है ओडिशा में. आज 14 जून से 17 जून तक चार दिनों तक ओडिशा में यह शुरू हो रहा है- रज संक्रांति. यह मिथुन राशि में सूर्य के प्रवेश पर मनाया जाता है.

ओडिशा में कृषि वर्ष की शुरुआत के साथ-साथ लोग पहली बारिश का स्वागत करते हैं. दरअसल यह प्रकृति के रजस्वला होने का त्यौहार है. चार दिनों के इस पर्व में कई दिलचस्प गतिविधियां होती है. पहले दिन को पहिली रज, दूसरे दिन को मिथुन संक्रांति, तीसरे दिन को भू-दहन और चौथे दिन को वसुमति स्नान कहा जाता है.

तीन दिनों तक भू देवी रजस्वला होती है. इस दौरान खेती से संबंधित सभी कार्य नहीं किए जाते.जिस तरह मासिक धर्म होने पर औरतों को कुछ काम करने नहीं दिया जाता और उन्हें आराम की दिया जाता है, उसी तरह धरती को भी आराम दिया जाता है.

माना जाता है कि जैसे मासिक धर्म स्वस्थ शरीर के विकास का प्रतीक है, वैसे ही भू-देवी इस दिनों रजस्वला होती है. जो उसके विकास का प्रतीक है.

चौथे दिन भू-देवी को स्नान कराया जाता है. पूजा-अर्चना की जाती है.

इस चित्र में धरती माता को ओडिशा के पारंपरिक वनवासी वेश में सज्जित किया गया है फोटो फेसबुक साभार Swetapadma Mishra

पांचवें दिन किसान खेत जाकर पूजा-अर्चना करता है और बीज डालता है. यानि जिस तरह रजस्वला के उपरांत संतान धारण की क्षमता होती है, उसी तरह धरती भी इसके उपरांत अन्न उत्पन्न करने में सक्षम होती है.

छग में केवल भू-दहन

छत्तीसगढ़ के फूलझर क्षेत्र सरायपाली, बसना , पिथौरा के गांव जो ओडिशा सीमा से लगे हैं वहां केवल भू-दहन मनाया जाता है. खेती के सभी काम बंद रहते हैं.

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