भोपाल । वर्तमान में मध्यप्रदेश राज्य शासन के निर्देशानुसार 50 फीसद विद्यार्थियों की उपस्थिति के साथ फिलहाल 11वीं व 12वीं की कक्षाएं सप्ताह में दो-दो दिन लग रही हैं। विद्यार्थियों को स्कूल भेजने के लिए अभिभावकों की लिखित सहमति अनिवार्य की गई है, लेकिन एक सप्ताह बाद भी महज 15 से 20 फीसद विद्यार्थी स्कूल पहुंच रहे हैं।
मालूम हो कि प्रदेश के उच्चतर माध्यमिक स्कूलों में बीती 26 जुलाई से 11वीं व 12वीं की कक्षाएं 50 फीसद उपस्थिति के साथ संचालित की जा रही हैं। अब पांच अगस्त से नौवीं से बारहवीं तक की कक्षाएं शुरू होंगी। लिहाजा, स्कूलों में बच्चों को बुलाने के लिए शिक्षकों द्वारा अभिभावकों की काउंसिलिंग भी की जा रही है।
हालांकि, स्कूलों में कोरोना गाइडलाइन का सख्ती से पालन करने के साथ शिक्षकों, कर्मचारियों का प्राथमिकता के आधार पर टीकाकरण करने के लिए कहा गया है। स्कूल में प्रार्थना सभा, स्वीमिंग पूल आदि सामूहिक गतिविधियां प्रतिबंधित हैं। साथ ही स्कूलों में ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन भी जारी है।
वहीं, निजी स्कूल संचालक भी अभिभावकों से बातचीत कर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इस बारे में राजधानी में स्थित महात्मा गांधी स्कूल की प्राचार्य हेमलता परिहार का कहना है कि 9वीं से 12वीं में 979 बच्चे हैं। सभी बच्चों के लिए 18 कमरे तैयार किए गए हैं। अभी 11वीं व 12वीं के 48 बच्चे आए हैं।
बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए उनके वाट्सएप ग्रुप पर स्कूल आने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। साथ ही अभिभावकों की काउंसिलिंग भी की जा रही है, ताकि वे बच्चों को स्कूल भेजने के लिए सहमति दें। उत्कृष्ट विद्यालय के प्राचार्य सुधाकर पाराशर का कहना है कि 11वीं व 12वीं के 300 बच्चों में से 80 बच्चे आ रहे हैं।
9वीं से 12वीं के 860 बच्चों के लिए 15 कमरों की साफ-सफाई कराई जा रही है। इसके अलावा स्कूल के बच्चे दूसरे जिले में रहते हैं। इस कारण ऑनलाइन कक्षाएं भी संचालित की जा रही हैं। अगर बच्चों को कोई भी डाउट होता है तो वे स्कूल में क्लियर करने के लिए आते हैं। उधर निजी स्कूल संचालकों का कहना है कि एक बच्चे को सप्ताह में एक दिन स्कूल आना है।
शासन ने 50 फीसद उपस्थिति के साथ बसों के संचालन के निर्देश दिए हैं। ऐसे में कोई भी अभिभावक सप्ताह में एक दिन के लिए बस का पूरे माह का किराया नहीं देना चाहता है। ऐसे में बच्चों को स्कूल पहुंचने में परेशानी हो रही है। इस कारण भी बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। पिछले माह स्कूल शिक्षा विभाग ने एक सर्वे कराया था, जिसमें अभिभावकों से स्कूल खोलने को लेकर राय ली थी।
इसमें करीब 60 फीसद अभिभावकों ने स्कूल खोलने की सहमति जताई थी। अभिभावकों का मानना है कि नौवीं से बारहवीं के बच्चों को स्कूल भेजना चाहिए। इस उम्र के बच्चे कोविड गाइडलाइन का पालन कर सकते हैं। इस संबंध में भोपाल के जिला शिक्षा अधिकारी नितिन सक्सेना का कहना है कि निजी व सरकारी स्कूलों में कोविड गाइडलाइन का पालन किया जा रहा है।
स्कूलों में साफ-सफाई से लेकर पूरी तैयारी कर ली गई है। वहीं काउंसलर मेधा वाजपेयी का कहना है कि नौवीं से बारहवीं के बच्चों को स्कूल भेजना चाहिए। ये समझदार होते हैं। साथ ही वे अपनी सुरक्षा का ध्यान रख सकते हैं। स्कूल न जाने से बच्चों में अक्रामकता आ रही है और मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है।