छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान विधानसभा चुनावों में लोक-लुभावनी घोषणाओं की बदौलत भाजपा की जिस दमदारी से सत्ता में वापसी हुई है. इसको लेकर राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर चर्चाओं का दौर आरंभ हो गया है कि आखिरकार छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की किसानों की कर्ज माफी और बिजली बिल हाफ जैसी योजना पर भाजपा की महतारी वंदन योजना कैसे भारी पड़ गई ? सवाल यह भी है कि क्या महतारी वंदन योजना ही वह एकमात्र योजना या कहा जाए कि भाजपा का मास्टर स्ट्रोक था जो किसानों की कर्ज माफी और ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों के लिए बिजली बिल हाफ योजना पर भारी पड़ी है.
भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के घोषणा पत्रों में धान खरीदी प्रमुखता ये रही है, और इसमें बहुत अधिक अंतर नहीं है. लिहाजा यह माना जा रहा है कि महतारी वंदन योजना ही वह काट थी, जिसने कर्ज माफी और बिजली बिल हाफ योजना पर नहले का दहला सिद्ध हुई है.
2018 में कांग्रेस ने 18.88 यानि 19 लाख किसानों की कर्ज माफी पर 9,270 यानि लगभग 10,000 करोड़ रू. खर्च किया. 2023 में किसानों की संख्या बढ़कर लगभग 24.96 यानि 25 लाख बताई जा रही है, जिनकी कर्ज माफी पर लगभग 14,000 करोड़ खर्च अनुमानित था. 2018 से 2023 तक बिजली बिल हाफ योजना में 3,800-4,000 करोड़ खर्च होने के अनुमान हैं. 2023 से 2028 तक इस योजना में खर्च लगभग 5,000-6,000 करोड़ अनुमानित था. इस तरह इन दोनों योजनाओं में पांच साल के लिए कुल खर्च लगभग 20,000 करोड़ अनुमानित था, यानि प्रतिवर्ष लगभग 4,000 करोड़ का बजट भार अनुमानित था.
इधर भाजपा की महतारी वंदन योजना के अंतर्गत अभी तक लगभग 53 लाख महिलाओं के फार्म भरवाये जा चुके हैं. हालाकि राज्य में महिला मतदाताओं की संख्या एक करोड़ से अधिक है. अब यदि इसका अनुमान लगाया जाए तो सरकारी खजाने पर जो भार पड़ेगा, उसका आंकलन ही चौकाने वाला लगता है. यदि महिलाओं की संख्या को एक करोड़ मानकर ही बजट भार का अनुमान लगाया जाए तो प्रतिमाह 1,000 यानि प्रतिवर्ष 12,000 की दर से एक करोड़ महिलाओं का व्यय भार 12,000 करोड़ रू. प्रतिवर्ष यानि पांच वर्ष का 60,000 करोड़ रू. बैठता है. यदि यदि महिलाओं की संख्या को 55-60 लाख मानकर अनुमान लगाया जाए तो प्रतिवर्ष लगभग 6,600-7,200 करोड़ और पांच वर्ष में 33,000-36,000 करोड़ रू. अनुमानित है.
2016-17 और 2017-18 के धान खरीदी के बोनस पर 41,000 करोड़ बंटने की बात सानने आ रही है, जो इसी साल 2023-24 के अंतिम बजट में आने वाला है. इस तरह भाजपा सरकार द्वारा इस साल यानि 2023-24 के अंतिम बजट में लगभग 50,000 करोड़ का अतिरिक्त व्यय भार आने की संभावना है. इस समय राज्य का मुख्य बजट आकार (वित्तीय वर्ष 2023-24 का संशोधित बजट आकार) अनुपूरक बजट को जोड़कर लगभग 1,28,000 करोड़ हो चुका है. इसमें यदि धान खरीदी के बोनस सहित महतारी वंदन याजना की राशि को जोड़ दिया जाए तो वित्तीय वर्ष 2023-24 का संशोधित बजट आकार बढ़कर लगभग 1,78,000 करोड़ रू. हो जाने का अनुमान दिखता है.
इससे सरकारी खजाने पर भार पड़ता है, सरकार के उपर कर्ज का बोझ बढ़ता है, जो अंततः अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी, घातक और अहितकारी सिद्ध होता है, इसके बावजूद चुनावी घोषणापत्र मुफ्त उपहारों की नुमाईशों यानि रेवड़ी बांटने की गारंटी का पुलिंदा बनकर रह गए हैं. मध्यप्रदेश और राजस्थान सरकार अपनी कुल कर कमाई का 35 से 40 फीसदी हिस्सा फ्रीबीज पर खर्च कर रहें हैं.
आरबीआई की 31 मार्च 2023 तक की रिपोर्ट में सामने आया है कि मप्र, राजस्थान, पंजाब, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य टैक्स की कुल कमाई का 35 फीसदी तक हिस्सा फ्री की योजनाओं पर खर्च कर देते हैं. पंजाब सरकार 35.4 फीसदी के साथ सूची में शीर्ष पर है. मप्र में यह हिस्सेदारी 28.8 फीसदी, राजस्थान में 28.6 फीसदी है. आंध्रप्रदेश अपनी आय का 30.3 फीसदी, झारखंड 26.7 फीसदी और बंगाल 23.8 फीसदी फ्री बीज के नाम पर खर्च कर रहे हैं.
इससे सरकारों बजट घाटा बढ़ता है, जिससेे राज्य ज्यादा कर्ज लेने को मजबूर हो जाते हैं. ऐसे में आय का बड़ा हिस्सा ब्याज अदायगी में चला जाता है. पंजाब, तमिलनाडु और पं. बंगाल अपनी कमाई का 20 फीसदी, मप्र 10 फीसदी और हरियाणा 20 फीसदी से अधिक ब्याज भुगतान पर खर्च कर रहे हैं. राजस्थान, पंजाब, बंगाल में 35 से 40 फीसदी राजस्व रेवड़ी यानि लुभावनी योजनाओं में खर्च हो रहा है. इस समय पंजाब सरकार पर जीएसडीपी का 48 फीसदी, राजस्थान पर 40 फीसदी, मध्यप्रदेश पर 29 फीसदी तक कर्ज है, जबकि यह 20 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. मप्र, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, कर्नाटक, राजस्थान और छत्तीसगढ़ आदि राज्यों ने पिछले सात सालों में करीब 1.39 लाख करोड़ की फ्रीबीज दीं या घोषणाएं कीं है. रेवड़ी योजनाओं की वजह से पंजाब का घाटा 46 फीसदी बढ़ चुका है, और सबसे खराब स्थिति में है. पंजाब में बिजली सब्सिडी 1 साल में 50 फीसदी बढ़कर 20,200 करोड़ रू. हो चुकी है.
-डॉ. लखन चौधरी
(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)
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