2018 के विधानसभा चुनाव में गेम चेंजर रहने वाली कर्ज माफी योजना इस बार छत्तीसगढ़ में फेल हो गई है. गृह लक्ष्मी योजना के तहत प्रतिमाह 15,000 रू. के बदले राज्य की महिलाओं ने महतारी वंदन योजना की 12,000 रू. को स्वीकार कर लिया है. इसकी प्रमुख वजह महिलाओं में मोदी की लोकप्रियता और शराबबंदी से कांग्रेस का मुकरना रहा है. सरकारी कर्मचारी परिवारों की नाराजगी और आरएसएस-भाजपा के हिन्दूत्व कार्ड को शहरी-ग्रामीण जनता ने हाथों-हाथ लिया और 2018 में बुरी तरह हारने वाली भाजपा को आखिरकार इसी जनता ने ऐतिहासिक जनादेश देकर अंततः पास कर दिया है.
छत्तीसगढ़ में भाजपा की इतनी बड़ी जीत की उम्मीद तो स्वयं भाजपाईयों तक ने नहीं की थी. दरअसल में यह आम जनमानस की जीत और कांग्रेस की राष्ट्रीय मूर्खताओं की हार है. जो बताती है कि संगठन की घोर अनदेखी, राज्य नेतृत्व की तानाशाही एवं जातिवादी सोच और अति आत्मविश्वास सेे कांग्रेस डूब गई.
वैसे तो किसी राज्य या किसी पार्टी की चुनावी जीत-हार का विश्लेषण और मूल्यांकन करना सरल एवं आसान काम नहीं होता है, क्योंकि इसके पीछे यानि किसी अभ्यर्थी, पार्टी, विचारधारा की चुनावी जीत-हार के पीछे एक नहीं अपितु कई, अनेकों, बल्कि दर्जनों कारण एवं कारक होते हैं. दरअसल में उप-मुख्यमंत्री सहित नौ मंत्रियों और कांग्रेस अध्यक्ष की हार बताती है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के प्रति जनता कितनी खफ़ा थी. जनता की यह बौखलाहट भाजपा की जीत से अधिक कांग्रेस की हार को रेखांकित करती है.
छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो एक बारगी विश्वास नहीं होता कि कांग्रेस यहां भी चुनाव हार गई है, जबकि लगभग तमाम एक्जिट पोल सर्वे अच्छी-खासी अंतर से जीत के दावे कर रहे थे. सरकार के कामकाज को लेकर सरकार ही नहीं बल्कि जानकार भी मान रहे थे कि यहां सरकार की वापसी होने जा रही है. लेकिन जिस तरह से चुनाव के नतीजे आए हैं, इससे लगता है कि कांग्रेस के साथ पूर्वानुमानों की भी बुरी तरह से हार हुई है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की इस कदर हार और भाजपा की इतनी बड़ी जीत अद्भूत, अप्रत्याशित, और अविश्वसनीय लगती है. सरगुजा-बस्तर सहित राज्य की महिला मतदाताओं की निर्णायक समझदारी सराहनीय है.
भष्ट्राचार, आईटी-ईडी छापे, कानून व्यवस्था, कई नीतियों एवं मामलों को लेकर वादा खिलाफी, नरवा-गरूवा, गौठान, गोबर खरीदी जैसी योजनाओं में भारी गड़बड़ियां, एनपीएस-ओपीएस योजना को लेकर सरकारी कर्मचारियों और खासकर स्कूली शिक्षकों में भारी नाराजगी, पीएससी घोटाले को लेकर युवाओं की निराशा और नाराजगी, शहरी क्षेत्रों की सड़कों, साफ-सफाई को लेकर नगरपालिकाओं एवं नगरनिगमों की कार्यप्रणाली में भारी जनाक्रोश, भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव की गुटबाजी और अंर्तकलह जैसे दर्जनों मुद्दे हैं, जिसकी वजह से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है.
इधर संगठन की जबर्दस्त सक्रियता भाजपा की जीत की बड़ी वजहों में से एक है. आरएसएस, विहिप के जीवट कार्यकर्ताओं की हिन्दूत्व एवं राम मंदिर को लेकर घर-घर किया गया प्रचार अभिायान, बेहतरीन चुनावी प्रबंधन, गंभीर चुनावी रणनीति, कर्नाटक की हार से सबक लेकर बनाया गया सटीक घोषणापत्र, साथ में आक्रामक चुनाव प्रचार ने छत्तीसगढ़ के चुनावी नतीजों की दशा और दिशा ही बदल कर रख दी.
छत्तीसगढ़ भाजपा का घोषणा पत्र: प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान, 3100 रूपये एकमुश्त
किसानों सहित स्व-सहायता समूहों की कर्ज माफी, देश में सर्वाधिक 3200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान खरीदी, आत्मानंद अंग्रेजी-हिन्दी स्कूलों की श्रृंखला के बाद केजी से पीजी तक मुफ़्त पढ़ाई, 200 यूनिट तक मुफ़्त बिजली बिल, महिलाओं को गृह लक्ष्मी योजना के तहत हर साल 15 हज़ार रुपये देने जैसे वादों एवं महत्वपूर्ण घोषणाओं के बावजूद कांग्रेस 71 से 35 पर सिमट गई. इधर भाजपा, विवाहित महिलाओं को महतारी वंदन योजना के अंतर्गत हर साल 12 हज़ार देने, 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान की ख़रीदी जैसे वादों से सत्ता छीनने में कामयाब हो गई.
यह अलग बात है कि पिछले चुनाव की शराबबंदी, नक्सल मुद्दों पर शांति वार्ता, हसदेव में खदानों को बंद करने, बेरोज़गारों और महिलाओं को नक़द रक़म देने जैसे वादे कांग्रेस ने भले पूरा न किया हो लेकिन क़र्ज़ माफ़ी और धान ख़रीदी ने किसानों के बीच कांग्रेस सरकार की लोकप्रियता बढ़ा दी थी. 200 यूनिट तक बिजली बिल आधा करने का वादा भी कांग्रेस ने पूरा किया था. ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि आखिर इस चुनाव में इतनी लाभकारी एवं कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद जनता ने कांग्रेस पार्टी को क्यों नकार दिया ? क्या सरकार का अहंकार और अति आत्मविश्वास उसे ले डूबा ? कांग्रेस ने 75 पार की घोषणा की और कार्यकर्ता कमज़ोर पड़ गए कि अब इतनी सीटें तो जीत ही रहे हैं ?
चर्चा है कि भूपेश बघेल ने अगले पांच साल मुख्यमंत्री रहने के चक्कर में पार्टी को कई टुकड़ों में बांट दिया था ? मंत्रियों के पर कतर दिए गए थे ? विधायकों के काम नहीं हो पा रहे थे ? विधायकों के खिलाफ नाराजगी एवं अलोकप्रियता थी। यही कारण है कि पार्टी ने मौजूदा 71 में से 20 विधायकों के टिकट काट दिए थे, लेकिन यह भी काम नहीं आया. आईएएस, आईपीएस अफ़सरों का हर चार-पांच महीने में तबादला और सरकारी, संविदा कर्मचारियों की नाराजगी भी कांग्रेस के लिए मुसीबत साबित हुई.
जानकारों के मुताबिक बस्तर की 12 की 12 और सरगुजा की 14 की 14 सीटें कांग्रेस के पास थी, लेकिन इन पांच सालों में हसदेव से लेकर सिलगेर तक दर्जनों जगहों पर आदिवासियों के आंदोलन चलते रहे और सरकार ने इनकी न केवल अनदेखी की बल्कि इन आंदोलनों का दमन भी किया है.
बस्तर में हुए फर्ज़ी मुठभेड़ों की न्यायिक जांच पर भी कार्रवाई करने के बजाय सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया. भाजपा की तर्ज पर सरकार ने राज्य भर में राम रथ यात्रा शुरू कर दिया. राम वन गमन पथ का निर्माण करने लगी. राम की माता कौशल्या के नाम पर बनाए गए मंदिर के सौंदर्यीकरण और उसे प्रचारित करने का कोई अवसर जाने नहीं दिया. जगह-जगह भगवान राम की विशालकाय मूर्तियों की स्थापना करती रही. एक तरफ़ आदिवासी आस्था के प्रतीकों को हिंदू देवी-देवताओं से जोड़ने का काम किया, वहीं दूसरी ओर आदिवासियों के विरोध के बावजूद अंतरराष्ट्रीय रामायण महोत्सव और गांवों में मानस प्रतियोगिता जैसे आयोजन भी किए, लेकिन सब कुछ धरा का धरा रह गया.
-डॉ. लखन चौधरी
(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)
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