कुलपति चयन पर जारी घमासान, जिम्मेदार कौन ?

छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों को लेकर राज्यपाल एवं सरकार के बीच एक बार फिर टकराव की खबरें पिछले कुछ दिनों से सुखियों पर हैं। राज्य में कुलपति चयन को लेकर विवाद का यह पहला मामला नहीं है।

छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों को लेकर राज्यपाल एवं सरकार के बीच एक बार फिर टकराव की खबरें पिछले कुछ दिनों से सुखियों पर हैं। राज्य में कुलपति चयन को लेकर विवाद का यह पहला मामला नहीं है। इसके पूर्व राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों को लेकर राज्यपाल एवं सरकार के बीच टकराहट की खबरें सार्वजनिक हुई एवं होती रहीं हैं।

-डॉ. लखन चौधरी

राज्य के शासकीय या राजकीय विविश्वविद्यालयों में कुलपति चयन को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। जब से राज्य में कांग्रेस की सरकार आई है, तब से राजभवन एवं सरकार के बीच कुलपति चयन को लेकर मतभेद की खबरें लगातार मीडिया में आती रहीं हैं। कई बार तो यह मतभेद इतना बड़ा एवं गहरा हो गया है कि कई दिनों तक सार्वजनिक बयानबाजी होती रही है।

लगातार छह-सात विश्वविद्यालयों में कुलपति चयन को लेकर बढ़ते विवाद के चलते सरकार ने नियुक्ति या चयन के राज्यपाल के विशेषाधिकार तक को चुनौती देते हुए विधानसभा में संशोधन विधेयक पास करा लिया-दिया है, लेकिन राजभवन से इसे अभी तक मंजूरी नहीं मिलने के चलते मामला अभी तक लटका है और विवाद जारी है। इधर, यह विवाद कब सुलझेगा या कब तक जारी रहेगा ? यह भी कहना जल्दबाजी होगी।

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बहरहाल, छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों को लेकर राज्यपाल एवं सरकार के बीच एक बार फिर टकराव की खबरें पिछले कुछ दिनों से सुखियों पर हैं। राज्य में कुलपति चयन को लेकर विवाद का यह पहला मामला नहीं है। इसके पूर्व राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों को लेकर राज्यपाल एवं सरकार के बीच टकराहट की खबरें सार्वजनिक हुई एवं होती रहीं हैं।

दिलचस्प बात यह है कि इन सारे विवादों में अक्सर राज्यपाल का पलड़ा या पक्ष ही भारी रहा है, और सरकार की एक नहीं चली है। राज्यपाल ने अपनी मर्जी से कुलपतियों की नियुक्ति की है। कम से कम पांच-छह विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति में सरकार के तमाम विरोध के बावजूद संघ पृष्ठभूमि के लोगों की नियुक्ति हुई है, जो इस समय राज्य में अपना कामकाज कर रहे हैं। इनके कामकाज एवं इनकी कार्यशैली कितनी विवादित या विवादरहित है ? विमर्श का एक अलग मसला हो सकता है।

दरअसल में इस मसले को लेकर सरकार के उपर लगातार लग रहे या राजभवन एवं जानकार सूत्रों के द्वारा लगातार लगाये जा रहे आरोपों के संदर्भ में भी बात करने की जरूरत है।

राज्य में एक जाति विशेष के कई कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर राजभवन की मुखरता सरकार के लिए सवाल खड़ा तो करती है ? साथ ही साथ राज्य के बाहर से आने वाले तमाम कुलपतियों की संघी पृष्ठभूमि भी इस विवाद को कम नहीं करती अपितु बढ़ाती ही है। यही वजह है कि राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री के बीच की सार्वजनिक बयानबाजी सुर्खियों पर रहती आई है, और इस बार भी है।

कहने के लिए कुलपतियों का चयन या नियुक्ति का आधार योग्यता, दक्षता, कार्यक्षमता, उपलब्धियां, अनुभव यानि मेरिट होता है, लेकिन इसके पीछे की कहानी कुछ और ही होती-रहती है। पिछले कुछ दशकों एवं सालों से यह लगातार साफतौर पर दिखने लगा है। कई बार तो कुलपतियों के कामकाज एवं कार्यशैलियों की वजह से भी विवाद खड़े होते रहते हैं। कालान्तर में यही विवाद, मतभेद या विरोधाभास उनके पृष्ठभूमियों की चर्चाओं को जोर देते रहते हैं, और नये-नये विवाद पैदा होते जाते-रहते हैं।

क्रमश:

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)

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