छत्तीसगढ़ के अंदरूनी घमासान से कांग्रेस एक बार फिर बैकफुट दिखती है। बहरहाल देखना दिलचस्प हो सकता है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस और सरकार इस प्रकरण का किस तरह समाधान निकालते हैं ? इस घमासान से छत्तीसगढ़ कांग्रेस किस तरह बाहर निकलती है ? क्या टीएस सिंहदेव के उपर अनुशासनहीनता के आरोप सिद्ध होते हैं ? सिंहदेव के खिलाफ कार्रवाई के लिए विधायकों का पत्र कितना रंग लाता है ? भाजपा इस पूरे प्रकरण को किस तरह भुनाती है ? फिलहाल सबकी नजरें टीएस बाबा के अगले कदम पर टिक गईं हैं। देखना है कि ऊंट किस करवट बैठता है ? -डॉ. लखन चौधरी
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से मात्र सवा साल पहले छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री टीएस सिंहदेव केे पंचायत मंत्रालय के सारे प्रभारों से इस्तीफा देने से छत्तीसगढ़ की राजनीति एक बार गरमा गई है। कई जानकार लोग इसे ढाई-ढाई साल वाले फार्मूले से जोड़कर देख रहे हैं तो कई जानकार इसे हाल के महाराष्ट्र मामले से जोड़कर देख रहे हैं। लगातार अंदरूनी कलहों से जुझती और अपनी ही नेताओं की वजह से कमजोर होती कांग्रेस को जहां एक ओर समझ नहीं आ रहा है कि पार्टी को किस तरह बचा कर रखें, वहीं भाजपा को बगैर कुछ किये धरे-बैठे ठाले कांग्रेस को घेरने के नये मौके मिल रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में घमासान: टीएस सिंहदेव का इस्तीफा, सीएम ने कहा,अभी तक उन्हें त्याग पत्र नहीं मिला
बकौल टीएस सिंहदेव वे राज्य सरकार और मुख्यमंत्री से कई मुद्दों पर असहमत हैं। उनके लंबेचौड़े पत्र से साफ है कि इस बार बाबा को मनाना सरकार के लिए बहुत कठिन हो सकता है। भूपेश बघेल भले ही आश्वस्त लग रहे हैं कि बाबा से बातचीत कर मामले को समाधान निकाल लिया जायेगा, लेकिन बाबा के तेवर से लगता नहीं कि इस बार पहले की तरह बाबा मान सकते हैं ? बहरहाल विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले इस घटनाक्रम ने कांग्रेस कि दिक्कतें तो बढ़ा ही दी हैं। राज्य की राजनीति में घमासान मचता भी दिख रहा है।
कांग्रेस विधायक दल की बैठक में अनुपस्थित होकर बाबा ने अपनी नाराजगी जारी रखने की मंशा साफ जाहिर कर दी है। इधर कांग्रेस विधायकों की ओर से टीएस सिंहदेव पर पार्टी की छवि खराब करने का आरोप लगाते हुए जिस तरह से कार्रवाई की मांग की खबरें आ रही हैं, वह भी एक तरह से मामले को शांत करने के बजाय और उकसाने वाली साबित हो सकती है। इसके पहले भी इसी तरह की घटनाएं हो चुकी हैं, जहां टीएस सिंहदेव पर एक तरफा दबाव बनाकर कमजोर करने की कोशीश की गई थी। मामला कुछ समय के लिए दबता गया, लेकिन असली समस्या के समाधान की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किये गये, नतीजा सबके सामने है।
मामला केवल ढाई-ढाई साल वाले फार्मूले का नहीं है। दूसरे नम्बर के कद्दावर, साफ सुथरे छवि वाले बेहद परिपक्व राजनीतिज्ञ टीएस सिंहदेव को (जो मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदर थे और हैं) पिछले कुछ महिनों से जिस तरह से अलग-थलग किये जाने की खबरें आने लगी थीं, इससे भी लगने लगा था कि मामले को सुलझाने या कम करने के बजाय दबावपूर्वक तरीके से निबटाने की बातें आने लगीं थीं। राज्य के राजनीतिक जानकारों का भी मानना है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस के गठबंधन वाली महाअघाड़ी सरकार के गिरने के बाद अब छत्तीसगढ़ में भी पार्टी को टीएस सिंहदेव की नाराजगी भारी पड़ सकती है।
बेहद उल्लेखनीय है कि साल 2018 के चुनाव के लिए जन घोषणापत्र तैयार करने की जिम्मेदारी कांग्रेस ने सिंहदेव को सौंपी थी, जिसे तैयार करने के पूर्व सिंहदेव ने पूरे प्रदेश का दौरा किया था। चुनाव के बाद इसी घोषणापत्र के कारण कांग्रेस सत्ता में जोरदार तरीके से सत्ता में आई थी, जिसमें टीएस सिंहदेव की बहुत बड़ी भूमिका थी। लेकिन बाद में धीरे-धीरे करके टीएस सिंहदेव को जिस तरह से मुख्यधारा से हटाया गया, उससे भी वे आहत दिखते हैं। उनके विभागीय कामकाज में जिस तरह से अड़ंगे की बाते सामने आ रही हैं, वह भी बेहद आफसोसजनक है।
2018 में जब सरकार गठन की चर्चाएं चल रही थीं, तो टीएस सिंहदेव को वित्त विभाग दिये जाने की खबरें थीं, जिससे उनके कद को सम्मान मिल सकता था। लेकिन वित्त विभाग की जिम्मेदारी तो दूर की बात रही, लगातार उनके विभागीय मामलों में नौकरशाही एवं विधायकों के मार्फत बाधाएं खड़ी की जाती रहीं हैं।
इस प्रकरण के यहां तक पहुंचने के लिए ये सारी परिस्थितियां भी जिम्मेदार हैं। इधर छत्तीसगढ़ में अपवाहों का बाजार तेजी से गर्म होने एवं फैलने लगा है कि अब आगे क्या होगा ? पिछले दिनों संगठन की बैठक में आई प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम की नाराजगी की खबरें भी अभी शांत नहीं हुई थीं, कि टीएस सिंहदेव प्रकरण ने छत्तीसगढ़ को एक बार फिर सुर्खियों पर ला दिया है। आगामी विधानसभा सत्र में पहले दिन भाजपा अविश्वास प्रस्ताव लाने की मंशा बना रही है। भाजपा के हौसले एक बार फिर बुलंद हो गये हैं। आयकर छापों सहित दर्जनों मसले हैं, जिन पर राज्य के सियासी हालात ठीक नहीं कहे जा सकते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की स्थिति वैसे भी बेहद खराब चल रही है।
छत्तीसगढ़ के अंदरूनी घमासान से कांग्रेस एक बार फिर बैकफुट दिखती है। बहरहाल देखना दिलचस्प हो सकता है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस और सरकार इस प्रकरण का किस तरह समाधान निकालते हैं ? इस घमासान से छत्तीसगढ़ कांग्रेस किस तरह बाहर निकलती है ? क्या टीएस सिंहदेव के उपर अनुशासनहीनता के आरोप सिद्ध होते हैं ? सिंहदेव के खिलाफ कार्रवाई के लिए विधायकों का पत्र कितना रंग लाता है ? भाजपा इस पूरे प्रकरण को किस तरह भुनाती है ? फिलहाल सबकी नजरें टीएस बाबा के अगले कदम पर टिक गईं हैं। देखना है कि ऊंट किस करवट बैठता है ?
देखें वीडियो: दिल्ली रवाना होते समय ,सोर्स ट्विटर
(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)
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