जानें क्या है: 43वाँ विश्व धरोहर स्थल ‘चराईदेव मोईदाम’

46वीं विश्व धरोहर समिति की बैठक में भारत की सांस्कृतिक विरासत श्रेणी से चराईदेव मोईदाम को सांस्कृतिक श्रेणी में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया.

46वीं विश्व धरोहर समिति की बैठक में भारत की सांस्कृतिक विरासत श्रेणी से चराईदेव मोईदाम को सांस्कृतिक श्रेणी में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया. चराईदेव मोईदाम, असम में शासन करने वाले अहोम राजवंश के सदस्यों के नश्वर अवशेषों को दफनाने की प्रक्रिया थी.  यह यूनेस्को द्वारा सूचीबद्ध भारत का 43वाँ विश्व धरोहर स्थल है.

चराईदेव मोईदाम – अहोम राजवंश के सदस्यों को टीलों जैसे दिखने वाले स्थल में दफनाने की प्रक्रिया

 चीन से आकर ताई-अहोम राजवंश ने 12वीं से 18वीं शताब्दी ई. तक ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के विभिन्न भागों में अपनी राजधानी स्थापित की. उनमें से सबसे अधिक पवित्र स्थल चराईदेव था, जहाँ ताई-अहोम ने पाटकाई पर्वतमाला की तलहटी में स्थित में चौ-लुंग सिउ-का-फा के अधीन अपनी पहली राजधानी स्थापित की थी. यह पवित्र स्थल, जिसे चे-राय-दोई या चे-ताम-दोई के नाम से जाना जाता है, ऐसे अनुष्ठानों के साथ पवित्र किये गए थे जो ताई-अहोम की गहरी आध्यात्मिक मान्यताओं को दर्शाते थे। सदियों से, चराईदेव ने एक टीला शवागार के रूप में अपना महत्व बनाए रखा है, जहाँ ताई-अहोम राजघरानों की दिवंगत आत्माएँ परलोक में चली जाती थीं.

 

ऐतिहासिक संदर्भ

ताई-अहोम लोगों का मानना ​​था कि उनके राजा दिव्य थे, जिसके कारण एक अनूठी अंत्येष्टि परंपरा की स्थापना हुई: राजवंश के सदस्यों के नश्वर अवशेषों को दफनाने के लिए मोईदाम या गुंबददार टीलों का निर्माण। यह परंपरा 600 वर्षों से चली आ रही है, जिसमें विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया गया और समय के साथ वास्तुकला की तकनीकें विकसित होती रही. शुरुआत में लकड़ी और बाद में पत्थर और पकी हुई ईंटों का इस्तेमाल करके मोईदाम का निर्माण किया गया, यह एक सावधानीपूर्वक की जाने वाली प्रक्रिया थी जिसका विवरण चांगरुंग फुकन में दिया गया है, जो अहोमों का एक प्रामाणिक ग्रंथ है. शाही दाह संस्कार से जुड़ी रस्में बहुत भव्यता के साथ आयोजित की जाती थीं, जो ताई-अहोम समाज की पदानुक्रमिक संरचना को दर्शाती थीं.

यहां हुए खनन से पता चलता है कि प्रत्येक गुंबददार कक्ष के बीचों बीच एक उठा हुआ भाग है, जहाँ शव को रखा जाता था. मृतक द्वारा अपने जीवनकाल में उपयोग की जाने वाली कई वस्तुएं, जैसे शाही प्रतीक चिन्ह, लकड़ी, हाथी दांत या लोहे से बनी वस्तुएं, सोने के पेंडेंट, चीनी मिट्टी के बर्तन, हथियार, वस्त्र (केवल लुक-खा-खुन कबीले से) को उनके राजा के साथ दफनाया दिया जाता था. (pib)

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