पैरालम्पिक खेलों के फाइनल में पहुंच भारत की पहली टेबल टेनिस खिलाड़ी का ख़िताब हासिल करने वाली भाविनाबेन पटेल ने दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी चीन की यिंग झोउ को कड़ी टक्कर दी | इस मुकाबले में भाविनाबेन ने रजत हासिल किया पर एक इतिहास रच गई | इस मुकाबले से पहले उन्होंने कहा भी था कि वह खुद को दिव्यांग नहीं मानती | तोक्यो खेलों में उनके प्रदर्शन ने साबित कर दिया कि कुछ भी असंभव नहीं है ।
बारह महीने की उम्र में पोलियो की शिकार भाविनाबेन पटेल ने कहा , मुझे हमेशा से यकीन था कि मैं कुछ भी कर सकती हूं और मैने साबित कर दिया कि हम किसी से कम नहीं है|
भाविनाबेन ने कहा ,‘‘ मेरा दिन सुबह चार बजे शुरू हो जाता है और मैं ध्यान तथा योग के जरिये मानसिक एकाग्रता लाने का प्रयास करती हूं । मैचों के दौरान कई बार हम जल्दबाजी में गलतियां करते हैं और अंक गंवा देते हैं लेकिन मैने अपने विचारों पर नियंत्रण रखा ।’’
उन्होंने कहा ,‘‘ मैं अपने कोचों को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मुझे तकनीक सिखाई । उनकी वजह से ही मैं यहां तक पहुंच सकी । भारतीय खेल प्राधिकरण, टॉप्स, पीसीआई, सरकार, ओजीक्यू, नेत्रहीन जन संघ, मेरे परिवार को भी मै धन्यवाद देती हूं ।’’
भाविनाबेन ने फाइनल में पहुंचने से पहले दुनिया की तीसरे नंबर की खिलाड़ी चीन की मियाओ झांग को क्लास 4 वर्ग के कड़े मुकाबले में 7.11, 11.7, 11.4, 9.11, 11.8 से हराकर भारतीय खेमे में भी सभी को चौंका दिया ।
गुजरात के मैहसाणा जिले में एक छोटी परचून की दुकान चलाने वाले हंसमुखभाई पटेल की बेटी भाविना को पदक का दावेदार भी नहीं माना जा रहा था लेकिन उन्होंने अपने प्रदर्शन से इतिहास रच दिया ।
भाविनाबेन ने क्वार्टर फाइनल में 2016 रियो पैरालम्पिक की स्वर्ण पदक विजेता और दुनिया की दूसरे नंबर की खिलाड़ी बोरिस्लावा पेरिच रांकोविच को हराया था ।
भाविनाबेन ने 2011 में दुनिया की दूसरेनंबर की खिलाड़ी भी बनी जब उन्होंने पीटीटी थाईलैंड टेबल टेनिस चैम्पियनशिप में भारत के लिये रजत पदक जीता था । अक्ट्रबर 2013 में उन्होंने बीजिंग में एशियाई पैरा टेनिस चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता था ।