नई दिल्ली । तीन तलाक के खिलाफ मोदी सरकार द्वारा लाए गए कानून को दो साल पूरे हो गए हैं। कानून को पूरी तरह प्रभावी बताते हुए केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने दावा किया है कि इससे ट्रिपल तलाक के मामलों में 80 फीसदी कमी आई है। हालांकि मुस्लिम संगठनों ने इस आंकड़े पर सवाल उठाए हैं। तीन तलाक के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाली मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर इस कानून के दुरुपयोग का दावा किया है।
तीन तलाक कानून के दो साल पूरे होने पर रविवार को राजधानी दिल्ली में ‘मुस्लिम महिला अधिकार दिवस’ का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि मुस्लिम महिला (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) एक्ट लागू होने के बाद तीन तलाक के मामलों में 80 फीसदी की कमी आई है। 1 अगस्त 2019 को कानून लागू होने से पहले उत्तर प्रदेश में 63 हजार से ज्यादा मामले दर्ज थे, जो कानून लागू होने के बाद 221 रह गए।
बिहार में तीन तलाक के केवल 49 मामले ही दर्ज किए गए। कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि यह मुस्लिम महिला अधिकार दिवस मुस्लिम महिलाओं की भावना और संघर्ष को सलाम करने के लिए है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने कहा तीन तलाक के लागू होने के दो साल बाद मोदी सरकार ने जो दावा किया है, वह जमीनी हकीकत से पूरी तरह से मेल नहीं खाता है। मुस्लिम कम्युनिटी के जो तथ्य हमारे सामने आ रहे हैं, उससे पता चलता है कि कानून लागू होने के बाद मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं।
मौलाना सज्जाद नोमानी ने कहा कि तीन तलाक को रोकने का इस्लामी तरीके से कानून बनाया जाता तो काफी प्रभावी होता। तीन तलाक को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी रोकना चाहता था, जिसके लिए हम इस्लामिक लिहाज से कानून बनाने के पक्षधर थे, लेकिन सरकार बिना मुस्लिम उलेमाओं और संगठन से विचार-विमर्श किए कानून ले आई, जो तीन तलाक को खत्म करने से ज्यादा परेशानी खड़े करने वाला बन गया है।
नोमानी ने कहा कि हम तीन तलाक कानून के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पहलुओं का अध्ययन कर रहे हैं और उनसे जुड़े तथ्य जुटा रहे हैं, ताकि लोगों के सामने इस कानून की हकीकत को रख सकें।