मुंबई । भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने नये जमाने की अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी युक्त कंपनियों के लिए स्वेट इक्विटी नियमों में ढील और विभिन्न खुलासा नियमों समेत कई उपायों का ऐलान किया।
इसका मुख्य उददेश्य स्टार्टअप को बढ़ावा, अनुपालन बोझ कम करना और कारोबार सुगमता बढ़ाना है। इसके साथ सेबी के निदेशक मंडल ने सूचीबद्ध कंपनियों में प्रवर्तकों से नियंत्रणकारी हिस्सेदार की धारणा को अपनाने को सैद्धांतिक मंजूरी दी।
आरंभिक शेयर बिक्री के बाद न्यूनतम ‘लॉक इन’ अवधि में भी कमी की। हाल ही में हुई बैठक में सेबी निदेशक मंडल ने वैकल्पिक निवेश कोष के संचालन से संबंधित नियमन में संशोधन को भी मंजूरी दी।
सेबी ने स्वेट इक्विटी की संख्या पर छूट प्रदान करने का निर्णय किया है जिसे इनोवेटर्स ग्रोथ प्लेटफॉर्म (अईजीपी) पर सूचीबद्ध नए जमाने की प्रौद्योगिकी कंपनियों को जारी किया जा सकता है।
यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब कई स्टार्टअप विदेशी निवेशकों समेत अन्य से उल्लेखनीय निवेश आकर्षित कर रहे हैं। आईजीपी पर सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में स्वेट इक्विटी शेयरों की वार्षिक सीमा 15 प्रतिशत होगी, जबकि समग्र सीमा किसी भी समय चुकता पूंजी का 50 प्रतिशत होगी।
यह बढ़ी हुई समग्र सीमा कंपनी के गठन की तारीख से 10 वर्षों के लिए लागू होगी। मुख्य बाजार में कारोबार करने वाली कंपनियों के लिए, वार्षिक स्वेट इक्विटी सीमा भी 15 प्रतिशत होगी, लेकिन कुल सीमा 25 प्रतिशत पर सीमित होगी।
सेबी दो नियमों सेबी विनियमन, 2021 को एक करेगा। स्वेट इक्विटी से तात्पर्य किसी कंपनी द्वारा अपने कर्मचारियों को बिना नकदी के जारी किए गए शेयरों से है।
किसी कर्मचारी की मृत्यु या स्थायी अपंगता की स्थिति में सभी शेयर लाभ योजनाओं के लिए न्यूनतम निर्धारित अवधि और लॉक-इन अवधि को समाप्त कर दिया जाएगा।
सेबी निदेशक मंडल ने प्रवर्तक से नियंत्रणकारी हिस्सेदार की धारणा को अपनाने के प्रस्ताव पर सैद्धांतिक सहमति जताई। साथ ही आरंभिक सार्वजनिक निर्गम के बाद प्रर्वतकों के लिए न्यूनतम लॉक इन अवधि कम करने का निर्णय किया।
सेबी ने ‘लॉक इन’ अवधि के बारे में कहा कि यदि निर्गम के उद्देश्य में किसी परियोजना के लिए पूंजीगत व्यय के अलावा अन्य बिक्री पेशकश या वित्तपोषण का प्रस्ताव शामिल है, तो आरंभिक सार्वजनिक निर्गम और अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम (एफपीओ) में आबंटन की तारीख से प्रवर्तकों का न्यूनतम 20 प्रतिशत का योगदान 18 महीने के लिए लॉक किया जाना चाहिए।
वर्तमान में लॉक-इन अवधि तीन वर्ष है। सेबी के अनुसार इन सभी मामलों में प्रवर्तक की न्यूनतम योगदान से ऊपर की हिस्सेदारी मौजूदा एक वर्ष के बजाय छह महीने के लिए अवरुद्ध रहेगी।