नई दिल्ली। कोविड महामारी के बीच लोकप्रिय हुई डोलो 650 (Dolo 650) को लेकर चौंकाने वाला मामला सामने आया है। डोलो को लेकर दावा किया जा रहा है कि बिक्री बढ़ाने के लिए कंपनी की ओर से डॉक्टरों को 1,000 करोड़ से ज़्यादा के गिफ्ट बाटें गए ताकि वो इलाज के लिए मरीजों के पर्चे पर ही इसी दवा का नाम लिखे।
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने ये दावा किया है। वकील की ओर से किए गए इस दावे ने मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच भी काफी हैरान थे। जस्टिस चंद्रचूड़ ने वकील संजय पारिख से कहा, “जो आप कह रहे है, वो मुझे सुनने में अच्छा नहीं लग रहा। ये वही दवाई है जिसका कोविड के दौरान मैंने ख़ुद इस्तेमाल किया। मुझे भी इसका इस्तेमाल करने के लिए बोला गया था। ये वाकई गंभीर मसला है।”
याचिकाकर्ता फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन की ओर से वकील संजय पारिख ने यह जानकारी कोर्ट को दी। संजय पारिख ने सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज की रिपोर्ट का हवाला दिया। पारिख ने कहा कि बुखार के मरीजों के इलाज के लिए डोलो- 650 के नाम को सुझाने के लिए एक हज़ार करोड़ से ज्यादा के गिफ्ट डॉक्टरों को दिए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मांग की गई है कि दवाओं की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए डॉक्टरों को तोहफे देने वाली दवा कंपनियों की जवाबदेही भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि इस तरह के मामलों में रिश्वत के लिए डॉक्टरों पर तो केस चलता है, पर दवा कंपनियां बच जाती है।
इस याचिका में कहा गया है कि फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेज के लिए यूनिफॉर्म कोड बनाए जाने की ज़रूरत है। इसके ना होने के चलते मरीजों को ब्रांडेड कंपनियों की बहुत ज़्यादा कीमत वाली दवाई खरीदनी पड़ती है क्योंकि अक्सर उनका इलाज करने वाले डॉक्टर महंगे गिफ्ट के लालच में मरीजों को वहीं दवाई पर्चे पर लिखते है।
हालांकि, बेंच ने यह भी कहा कि सरकार या संसद को कोई कानून बनाने का आदेश नहीं दिया जा सकता है। लेकिन मामले में थोड़ी देर की सुनवाई के बाद जजों ने यूनिफॉर्म कोड ऑफ़ फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेज को कानूनी रूप देने की मांग पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को 10 दिन का समय दे दिया।