पिथौरा| उत्तर प्रदेश के ईंट भट्ठों मे दिन रात मेहनत करने के बाद भट्ठा दलालों को लाखों रुपयों के कमीशन देने के बाद भी मजदूर नम आंखों से अपने सिर पर कर्ज का बोझ लाद कर वापस अपने घर पहुँच रहे है।मजदूरों की दयनीय हालत देखकर किसी भी भावुक इंसान की आंखे डबडबा सकती हैं|
सितंबर से नवम्बर माह में क्षेत्र से अन्य प्रान्तो के ईंट भट्ठों में काम करने गए मजदूर अब तेजी से वापस लौटने लगे हैं। वापस आने वाले मजदूरों में अनेक मजदूर तो ऐसे भी है।जिन्होंने काम के लिए मेहनत तो बहुत की परन्तु वापस वे कर्ज लेकर ही घर पहुँचे है।जबकि इन मजदूरों को भट्ठा तक पहुचने वाले दलाल घर बैठे मजदूरों को मिलने वाली लाखो रुपये कमाई की राशि स्वयम कमीशन के रूप में हड़प रहे हैं।
82 हजार ईंट बनाई–4000 कर्ज लेकर आये
रविवार को उत्तरप्रदेश के सिद्धार्थ नगर से बस द्वारा सीधे पिथौरा बस स्टैंड में उतरे एक मजदूर से इस प्रतिनिधि ने बात की ।बया निवासी इस युवक ने बताया कि वे अपने परिवार के कुल 7 लोग सिद्धार्थ नगर के भडलिया स्थित ईंट भट्ठा में कार्य कर रहे थे।उनके साथ एक सात साल तो दूसरा तीन साल का बालक भी था।
(बार बार उक्त युवक द्वारा नाम प्रकाशित नहीं करने के आग्रह के कारण हमने युवक का नाम प्रकाशित नहीं किया।परन्तु उनके ग्राम एवम उनके द्वारा बताए गए भट्ठा दलाल का नाम अवश्य प्रकाशित कर रहे हैं)
यहां उन्हें ईंट निर्माण की मजदूरी 600 रुपये प्रति हजार दी गई। जबकि मजदूरों द्वारा बनाई गई ईंट पर 600 रूपए की दलाली इन्हें भट्ठा तक पहुचाने की दी गयी। कुल मजदूरी 1200 रुपये प्रति हजार ईंट निर्माण के दिये जायें है।जिसे मजदूर एवम दलाल के बीच आधा आधा बंटवारा हो जाता है। इस बार उक्त परिवार ने कोई 82 हजार ईंट बनाई थी।जिसकी मजदूरी 49हजार दो सौ रुपये की मजदूरी बनी।अब भट्ठा दलाल रामलाल ने इस परिवार का और चंद रुपये एडवांस के मिलाकर 53 हजार रुपये का हिसाब निकाल दिया। मतलब अब ये मजदूर परिवार दिन रात की मेहनत के बाद भी 4 हजार का कर्ज लेकर घर लौटे हैं।
शासन की योजनाओं से दूर परिवार
जंगल के समीप बसे कंवर आदिवासी परिवार के उक्त परिवार के मुखिया मोतीलाल से भट्ठा जाने का कारण पूछने पर उसने क्षेत्र में काम नही होना बताया। मोती के पास कोई डेढ़ एकड़ जमीन भी है।इस जमीन पर वह खेती भी करता है परन्तु धान जरुरत के अनुसार थोड़ा थोड़ा बेच कर खाते हैं जिससे उन्हें राज्य सरकार की राजीव न्याय योजना हो या केंद्र की किसान सम्मान निधि।दोनों का लाभ नहीं मिल पाता लिहाजा ग्रामीण जनप्रतिनिधियों एवम सरकारी नुमाइंदों से उपेक्षित हो कर भट्ठा जाना ही इनकी नियति बन चुका है।
मालामाल दलाल करोड़ों के मालिक
क्षेत्र के मजदूरों को भट्ठा मालिको से अग्रिम लेकर मजदूरों को उधार देने वाले मजदूर अपने इस कार्य में प्रति वर्ष लाखो से करोड़ तक की कमाई करते है।इन भट्ठा दलालों के रौब इतना है कि इनसे पूछताछ करने का साहस भी नीचे स्तर के अफसर नहीं कर सकते। जिससे इन दलालों के पास करोड़ो की प्रॉपर्टी हो गयी है। एक छोटे ठेकेदार ने बताया कि अब मजदूर दलाली का कार्य एक ऐसा उद्योग बन गया है जिसमें ना तो जीएसटी का झंझट और ना ही आयकर का कोई झमेला।
बताया जाता है कि भट्ठा दलालों के रुतबा इतना ज्यादा होता है कि इनके सामने पुलिस भी नतमस्तक दिखाई देती है। एक पूर्व थानेदार ने तो मजदूर लेजाने की शिकायत पर कार्यवाही करने की बजाय शिकायत करने वाले को उन्हें अधिकार नहीं है कहकर चलता कर दिया था।
25 हजार से 50 हजार भी कमाते हैं मजदूर
कर्ज लेकर आने वाले मजदूरों के अलावा वापस आ रहे मजदूरों में कुछ मजदूर ऐसे भी है जो 25 से 50 हजार रुपये तक नगद लेकर घर पहुचते है।परन्तु लगातार 6 से 7 माह तक मेहनत करने वाले इन मजदूरों के 50 हजार कमाई के रुपये भी घर आते ही खर्च हो जाते है।
बहरहाल समृद्ध छत्तीसगढ़ में भट्ठा मजदूर दलाल एक कलंक के टीके के समान है जो कि मजदूरों को शासन की योजनाओं से पहले वंचित करते हैं ।फिर उन्हें कर्ज देते हैं।इसके बाद इसी कर्ज को उतारने उन्हें भट्ठा की हाड़तोड़ मेहनत में झोंक कर स्वयम धन कमाते हैं ।
आयकर विभाग को संज्ञान में लेने की जरूरत
अपने क्षेत्र में बगैर कोई व्यवसाय या कृषि के प्रतिवर्ष करोड़ों की बेहिसाब संपत्ति बनाने वाले भट्ठा दलालों पर अब मात्र आयकर विभाग ही कार्यवाही करने में सक्षम हो सकता है।दलालों की सम्पति की जांच की जाय तो शासन को करोड़ों की बेहिसाब सम्पति का पता चल सकता है।
deshdigital के लिये रजिन्दर खनूजा