पिथौरा| रावण भाठा पारा पिथौरा में कल रविवार को मेंढक मेंढकी विवाह संपन्न होते ही बिदाई के समय कोई डेढ़ घण्टे तक बादल जमकर बरसे. अचानक हुई इस बारिश से किसान झूम उठे. ज्ञात हो कि क्षेत्र में विगत पखवाड़े भर से अधिक समय से बारिश नही होने से खेतों की फसल सूख रही थी जिससे किसान परेशान थे.
क्षेत्र में शुरुवाती अच्छी बारिश के बाद कोई पखवाड़े भर से अधिक समय से बारिश नही हुई है. जिसके कारण खेतो में लहलहा रही फसलें सूखने की कगार पर थी. लिहाजा पानी की अत्यधिक आवश्यक्ता को देखते हुए नगर के सर्वाधिक किसानों के रहवास क्षेत्र रावण भाठा पारा में पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष पार्वती निषाद एवम सत्या भोई ने मोहल्ले वासियों से मिल कर इंद्र देव को प्रसन्न करने की नीयत से रविवार को मेंढक मेंढकी के विवाह का आयोजन किया.
रविवार सुबह प्रारम्भ वैवाहिक कार्यक्रमो में सबसे पहले मड़वा कार्यक्रम किया गया जिसमें बैंड बाजे के साथ मुहल्ले वालो ने जमकर नाच गाना किया. इसके बाद मेढ़क मेंढकी को तेल हल्दी लगाकर बारात की तैयारी की गई. इसके लिए मोहल्ले के लोग दो भागों में बंटे थे. शाम कोई 4 बजे मेढ़क की बारात मेंढकी के घर के लिए बैंड बाजे के साथ निकली.
इसमें मेंढक को सजा संवार कर कार में बैठाया गया. बारात के आगे बैंड बाजे में मुहल्ले के युवा थिरकते देखे गए. बारात मेंढकी के द्वारा पहुचने के बाद आयोजको द्वारा बारातियों के लिए भंडारा का आयोजन भी किया गया था. वैवाहिक रस्म पूरा करने के बाद शाम कोई 6 बजे बिदाई की गई.
बिदाई के दौरान अचानक आये बदल जम कर बरसे
रावण भाठा पारा में चल रहे उक्त वैवाहिक कार्यक्रम को देखने सैकडो लोग एकत्र थे. दिन भर लोग धूप से बेचैन थे. परन्तु मेंढक मेंढकी की शादी के बाद अचानक बादल उमड़ आये और शाम कोई 6 बजे से रात कोई 8 बजे तक जम कर बारिश हुई. विवाह के तत्काल बाद बारिश ने रावांभाठा पारा में एक शमा बांध दिया. बारिश में क्षेत्र के किसान लगातार खुशी से नाच गाना करते दिखाई दिए.
ज्ञात हो कि- भारतीय संस्कृति का हिन्दू समाज में काफी ज्यादा महत्व है. पारम्परिक रीति रिवाज जो कि अपने में ही महत्वपूर्ण हैं. महासमुंद जिले के पिथौरा सहित आसपास क्षेत्रों में अल्प वर्षा होने से अकाल पड़ने की स्थिति निर्मित हो गई थी जिसको लेकर किसान काफी चिंतित नजर आ रहे हैं. जिसको लेकर पारंपरिक रिवाज के साथ मेंढक मेंढकी का विवाह हिन्दू रिति-रिवाज के साथ किया गया. मान्यता है कि इस तरह के आयोजन से भगवान और इंद्रदेव को खुश किया जाता है.
deshdigital के लिए रजिंदर खनूजा