मंदिर के लिए उजड़ रहा जंगल, सोशल मीडिया पर भारी विरोध

महासमुंद जिले के पिथौरा ब्लाक के लोहरिन डोंगरी में मंदिर एवम सामुदायिक भवन के निर्माण के लिए जंगल को काटने कि इजाजत देने का पर्यावरण प्रेमी सामाजिक कार्यकर्ताओं एवम पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर भारी विरोध जताया है.

पिथौरा| महासमुंद जिले के पिथौरा ब्लाक के लोहरिन डोंगरी में मंदिर एवम सामुदायिक भवन के निर्माण के लिए जंगल को काटने कि इजाजत देने का पर्यावरण प्रेमी सामाजिक कार्यकर्ताओं एवम पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर भारी विरोध जताया है. बता दें डीएफओ महासमुन्द द्वारा अनुमति देते ही जंगल उजड़ने के लिये जेसीबी चलने लगी है.

पिथौरा ब्लाक के लोहरिन डोंगरी में मंदिर एवम सामुदायिक भवन के निर्माण  के लिए वन मण्डलाधिकारी द्वारा कोई ढाई एकड़ हरे भरे पेड़ो से युक्त वन भूमि पर कब्जा कर निर्माण हेतु ग्रामीणों को अधिकार पत्र प्रदान कर दिया गया.

सोशल मीडिया पर डीएफओ के उक्त आदेश को निंदनीय बताते हुए उच्च अधिकारियों से जंगल मे अवैध कब्जा हेतु अधिकार पत्र रद्द कर वहां कटे जंगल के स्थान पर पुनः वृक्षारोपण करने की मांग की है. इन्होंने लिखा है कि वन विभाग जंगल की जमीन का अतिक्रमण करवा रहा है. एक यूजर ताराचंद पटेल एवम ललित मुखर्जी ने सवाल उठाते हुए कहा कि जंगलों की जमीन का उपयोग मंदिर निर्माण और सामुदायिक भवनों के लिए करना कितना उचित है?

वन विभाग की यह कार्यवाही न केवल गलत है, बल्कि भविष्य के लिए बेहद खतरनाक भी है. जंगल हमारी पृथ्वी के फेफड़े हैं, जो न केवल पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं बल्कि वन्यजीवों का घर भी हैं. अगर इस तरह से जंगलों की जमीन का अतिक्रमण होता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब जंगल खत्म हो जाएंगे, और हमारे पर्यावरण पर इसका भयावह असर पड़ेगा.

वन्यजीवों का विनाश: वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को नष्ट करना उनके अस्तित्व के लिए खतरा है. जंगल कटने से तापमान में वृद्धि, बाढ़ और सूखा जैसी आपदाएं बढ़ेंगी. क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक प्रदूषित और बंजर धरती देना चाहते हैं?

ऐसे मुद्दों पर समाज को जागरूक होना होगा. जंगलों की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है. मंदिर और सामुदायिक भवनों के लिए वैकल्पिक जगहों का उपयोग किया जाना चाहिए, न कि पर्यावरण का विनाश किया जाए।इन्होंने आम लोगो से अपील की है कि आइए, मिलकर जंगल बचाएं, जीवन बचाएं.

एक अन्य यूजर एवम पर्यावरण प्रेमी लोचन चौहान लिखते हैं कि वन विभाग के कुछ अफसर करप्ट हैं.  महासमुन्द जिले में जिस  तरह जंगल कट रहे हैं.  उससे वह दिन दूर नही ज़ब जिले वासी शुद्ध हवा एवम पानी के लिए तरस जाएंगे. जिले के अफसर को कम से कम पर्यावरण के बिगड़ते हालात को देख कर निर्णय लेना चाहिए. अभी कोई ढाई एकड़ जमीन पर मंदिर एवम भवन की अनुमति दी गयी है परन्तु यहां इसका क्षेत्रफल कई गुना अधिक होगा जो कि पर्यावरण के लिये घातक सिद्ध हो सकता है.

deshdigital के लिए रजिंदर खनूजा

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