पिथौरा| छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले के पिथौरा नगर में स्थित ग्रामदेवी शीतला मंदिर की मान्यता आज भी 100 साल पहले की तरह ही है. पूजा आज भी आदिवासी बैगा के हाथों होता है. जबकि अन्य मंदिरों में आमतौर पर ब्राम्हण ही पूजा कार्य सम्पन्न कराते है.
क्षेत्रवासी आज भी किसी भी शुभ कार्य को प्रारम्भ करने या मन्नत मांगने शीतला मंदिर जरूर जाते है.अब समय के अनुरूप मंदिर में ज्योति कक्ष का निर्माण कर मंदिर को पक्का किया गया है.
पूर्व में यह मंदिर मातागुड़ी या माता देवाला के नाम से जाना जाता था. सन 1980 के दशक में इस मंदिर का संचालन एक समिति बना कर किया जाने लगा.
इस समिति के पूर्व अध्यक्ष अनन्त सिंह वर्मा ने इस संबंध में बताया कि इस मंदिर की स्थापना जमीदार रॉज में राजा रणजीत सिंह ने की थी. यह स्थापना नगर के बाहर मुहाने पर की गई थी. परन्तु अब विकास के दौर में यह मंदिर शहर के बीच मे हो गया है. समय के साथ इस मंदिर का नाम मातागुड़ी से शीतला माता मंदिर कर दिया गया एवम पूर्व में मात्र चैत्र नवरात की पूजा करने की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अब साल में दोनों नवरात्रि चैत्र एवम क्वार नवरात्रि भी मनाने लगे है.
रथ के पूर्व गुरुवार को होती है माता पहुचनी
लाखो ग्रामीणों के आस्था का केंद्र बने शीतला मंदिर में स्थापना के बाद से कोई 100 से अधिक वर्षों माता पहुचनी का कार्यक्रम होता है.इसकी तिथि भी निर्धारित है जो कि प्रत्येक वर्ष रथयात्रा के पूर्व आने वाले गुरुवार को होती है. इसमें पानी मे कुछ जड़ी बूटी ,नीम पत्ती एवम हल्दी का मिश्रण उपस्थित श्रद्धालुओ पर छिड़का जाता है. इसके पीछे यह मान्यता है कि पूर्व में फैलने वाली महामारी हैजा एवम चेचक सहित फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम में सहायता मिलती है.
पूजा आज भी आदिवासी बैगा के हाथ में
शीतला मंदिर में पूजा भोग सहित अन्य सभी माता सेवा के लिए मुख्य पुजारी आदिवासी समाज से ही होता है. जबकि अन्य मंदिरों में आमतौर पर ब्राम्हण ही पूजा कार्य सम्पन्न कराते है.
मंदिर देखरेख एवम व्यवस्था हेतु समिति
शीतला मंदिर में विकासकार्यो सहित अन्य व्यवस्था के लिए एक समिति का गठन किया गया है. प्रेम सिन्हा की अध्यक्षता में गठित समिति मंदिर में पूजन एवम विकास कार्यो के लिए जिम्मेदारी का निर्वहन करते है.
इस समिति के कोषाध्यक्ष हरकेश निर्मलकर ने बताया कि इस वर्ष 400 तेल ज्योत जल रही है. जिसके दर्शन के लिये हजारों की भीड़ उमड़ रही है. करीब इसी अनुपात में प्रतिवर्ष श्रद्धालु ज्योति प्रज्ज्वलित करवाते है. इसी तरह 5 दशक से अधिक समय से माता सेवा में जुटे सोहन निर्मलकर ने बताया कि मंदिर की आज भी वही है जिसे राजा रणजीत सिंह ने स्थापित की थी.
बहरहाल क्षेत्र में, लंबे समय से श्रद्धा का केंद बने शीतला मंदिर में अब पहले से भी अधिक भीड़ उमड़ती दिख रही है.
deshdigital के लिये रजिंदर खनूजा