कोंडागांव | छत्तीसगढ़ के बस्तर के लोक साहित्यकार हरिहर वैष्णव नहीं रहे| 66 वर्षीय हरिहर वैष्णव ने बीती रात अपने निवास में अंतिम साँस ली | वे काफी दिनों से बीमार चल रहे थे | मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने बस्तर के मूर्धन्य साहित्यकार श्री हरिहर वैष्णव के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
हरिहर वैष्णव का जन्म 19 जनवरी 1955 को हुआ था| वह जीवन भर बस्तर पर शोध करते रहे। आदिवासियों की जिंदगी, उनकी परंपराएं उनके साहित्य के मूल में हैं।
वन विभाग में लेखाकार रहे बस्तर के इस लोक साहित्यकार ने बस्तर की जनजातियों में प्रचलित कहानियों, गीतों को लिपिबद्ध किया। बस्तर की स्थानीय बोलियों, हल्बी, भतरी में भी उनकी लेखनी खूब चली।
हरिहर वैष्णव की अब तक 24 किताबें प्रकाशित हुई हैं, जिनमें से इनकी मुख्य कृतियाँ हैं: लछमी जगार और बस्तर का लोक साहित्य। लक्ष्मी जगार बस्तर का श्रुति परंपरा का महाकाव्य है । इस श्रुति परंपरा को हरिहर ने पुस्तक का रूप दिया।
उनकी अन्य प्रमुख कृतियों में कहानी संग्रह मोहभंग, बस्तर का लोक साहित्य, बस्तर के तीज त्यौहार, राजा और बेल कन्या, बस्तर की गीत कथाएं, बस्तर का लोक महाकाव्य धनुकुल आदि हैं। हरिहर जी ने हल्बी की साहित्यिक पत्रिका घूमर, लघु पत्रिका ककसाड़ और प्रस्तुति का संपादन भी किया।
हरिहर वैष्णव को 2009 में छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य परिषद का उमेश शर्मा सम्मान मिला। इसी साल उन्हें दुष्यंत कुमार स्मारक संग्रहालय का आंचलिक साहित्यकार सम्मान मिला। वर्ष 2015 में ही वेरियर एल्विन प्रतिष्ठा अलंकरण और साहित्य अकादमी के भाषा सम्मान से भी उन्हें नवाजा गया। इसी वर्ष छत्तीसगढ़ राज्य अलंकरण पंडित सुंदरलाल शर्मा साहित्य सम्मान से सम्मानित किये गए |
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने बस्तर के मूर्धन्य साहित्यकार श्री हरिहर वैष्णव के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि यह साहित्य जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है । स्व. श्री हरिहर वैष्णव जी ने बस्तर के लोक साहित्य की समृद्ध विरासत को सहेजने में अपना जीवन समर्पित कर दिया । मुख्यमंत्री श्री बघेल ने ईश्वर से उनकी आत्मा की शान्ति और परिजनों को दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की है।