बस्तर| नक्सलियों ने बंधक कोबरा जवान को जन अदालत लगाकर रिहा किया, इस रिहाई के लिए बनी टीम में सबसे बुजुर्ग और प्रतिष्ठित धर्मपाल सैनी की महत्वपूर्ण भूमिका रही| वे 11 सदस्यीय टीम का नेतृत्व कर रहे थे|
छतीसगढ़ के बीजापुर जिले के तररेम इलाके में शुक्रवार 3 अप्रैल को हुई भीषण मुठभेड़ के बाद नक्सलियों ने एक कोबरा जवान को बंधक बना लिया और छतीसगढ़ सरकार से मध्यस्थों के बीच छोड़े जाने शर्त रखी| जवान को नक्सलियों के चंगुल से छुड़ाने गुप्त योजना बनाई गई जिसे 24 घन्टे के अंदर अमलीजामा पहना दिया गया|
मध्यस्थता करने वाले कौन होंगे, इसकी खबर को गुप्त रखा गया | 8 अप्रैल को नक्सलियों ने जैसे ही बंधक जवान की रिहाई की मध्यस्थता करने वालों का नाम और चेहरा उजागर हो गया|
दरसअल पद्मश्री धर्मपाल सैनी और गोंडवाना समाज के अध्यक्ष अध्यक्ष तेलम बोरैया को यह जिमेदारी सौपी गई|
मध्यस्थता करने के लिये इनके नाम पर राय कैसे बनी यह तो जाहिर नहीं हो पाया है मगर इनके अलावा 3 अन्य आदिवासी नेता और 7 स्थानीय मीडिया कर्मीयों को ही जंगल मे प्रवेश की अनुमति नक्सलियों ने दी|
बुधवार रात को 11 सदस्यी दल तररेम इलाके में पहुँच गई थी|
नक्सलियों ने दल के सदस्यों को घटना स्थल जोनागुड़ा से 15 किलोमीटर दूर एक बीहड़ इलाके में बुलाया जहां 20 गांवों के सैकड़ों ग्रामीण मौजूद थे| उनके सामने ही जवान की निःशर्त रिहाई की गई|
जवान की रिहाई में सामजसेवी धर्मपाल सैनी की अहम भूमिका रही|
91 साल के वयोवृद्ध धर्मपाल सैनी को पूरे प्रदेश में ताऊ जी के नाम से जाना जाता है| धर्मपाल सैनी एक समाजसेवी के साथ-साथ माता रुकमणी कन्या आश्रम डिमरापाल का संचालन करते हैं|
जगदलपुर शहर के साथ-साथ बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित इलाकों में उनके आश्रम संचालित होते हैं| धर्मपाल सैनी के आश्रम में पढ़कर कई बालिकाओं ने राष्ट्रीय खेलों में शिरकत करने के साथ प्रथम पुरस्कार जीतकर बस्तर का नाम रोशन किया है|
धर्मपाल सैनी भी एक खिलाड़ी रह चुके हैं| मध्य प्रदेश के धार जिले में रहने वाले धर्मपाल सैनी आज से 4 दशक पहले बस्तर आए और यहां शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की|
जब ताऊ जी 1976 में बस्तर में आए तो यहां साक्षरता दर 1% के आसपास था| साक्षरता दर को 65 फीसदी पहुंचाने में सैनी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता|
यही वजह है कि साक्षरता दर को सुधारने के साथ-साथ बस्तर के आदिवासी लड़कियों के लिए माता रुकमणी देवी आश्रम के अंतर्गत उन्होंने एक के बाद एक कुल 37 आवासीय स्कूल खोले हैं| इनमें से कई स्कूल नक्सल समस्या से बुरी तरह प्रभावित इलाकों में भी हैं|
समाज सेवा के कार्यों के लिए धर्मपाल जी को 1992 में पद्मश्री भी मिल चुका है| धर्मपाल सैनी अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए कई बार सम्मानित हुए हैं| उन्हें विभिन्न सामाजिक संगठनों और समाजसेवियों की ओर से भी सम्मानित किया गया है|
धर्मपाल सैनी इंद्रावती बचाओ मंच के सदस्य भी हैं| बस्तर के विकास के लिए उन्होंने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है|
यही वजह रही कि धर्मपाल सैनी को राज्य सरकार ने मध्यस्थता के लिए न्योता दिया|
जिसके बाद धर्मपाल सैनी गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलाम बोरैया के साथ बीजापुर पहुंचे| यहां 11 सदस्य टीम के साथ अगवा किए जवान को रिहा कराने के लिए निकल पड़े|
11 सदस्य टीम का नेतृत्व धर्मपाल सैनी ने ही किया|
नक्सलियों ने आखिरकार मध्यस्थता कर रही टीम के साथ चर्चा कर जवान को सही सलामत रिहा कर दिया| इस रिहाई के लिए धर्मपाल सैनी समेत पूरे 11 सदस्य टीम की जमकर तारीफ हो रही है|
बता दे कि 5 दिनों तक बंधक बनाये रखने के बाद आखिरकार नक्सलियों ने कोबरा बटालियन के जवान राकेश्वर सिंह मन्हास को रिहा कर दिया| 3 अप्रैल शनिवार को हुए पुलिस-नक्सली मुठभेड़ के बाद कोबरा बटालियन के जवान राकेश्वर सिंह को नक्सलियों ने अगवा कर लिया था|