काम-1: कामना, सृजन और विकास को जन्म देती है

सामान्य सा प्रतीत होने वाला यह शब्द 'काम' गुढ़ार्थ के परिपेक्ष्य में व्यापक और विशाल है। इसके स्वरुप को लेकर सामान्य ही नहीं विद्वतजन भी भ्रम की स्थिति में पाये जाते है। क्योंकि सामान्य जीवन से संबंधित काम एवं पौराणिक एवं धार्मिक ग्रंथों में काम के मध्य भेद कर पाना तभी संभव है जब अध्ययन फलक विशाल हो।

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सामान्य सा प्रतीत होने वाला यह शब्द ‘काम’ गुढ़ार्थ के परिपेक्ष्य में व्यापक और विशाल है। इसके स्वरुप को लेकर सामान्य ही नहीं विद्वतजन भी भ्रम की स्थिति में पाये जाते है। क्योंकि सामान्य जीवन से संबंधित काम एवं पौराणिक एवं धार्मिक ग्रंथों में काम के मध्य भेद कर पाना तभी संभव है जब अध्ययन फलक विशाल हो।

वैसे काम, कर्म तथा कामना को परस्पर सामानार्थी माना जाता है और यदि ऐसा हो तो काम की सर्वव्यापकता की किसी भी स्थिति में नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि भगवान कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा कि बिना कर्म किये व्यक्ति (जीव) एक पल भी नहीं रह सकता”।

आगे उन्होंने यह भी कहा है। “प्रकृति के तीन गुण है सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण” । रजोगुण की विशेषता बताते श्री कृष्ण, अर्जुन से कहते है कि “रजोगुण में लोग लोभी बन जाते हैं और इन्द्रि भोग की उनकी लालसा की कोई सीमा नहीं रह जाती है। यह पुरूष और स्त्री के मध्य आकर्षण का भाव लाता है और जब इन गुणों में वृद्धि हो जाता है तो मनुष्य भौतिक भोग के लिए लालायित हो जाता है”|

facebook से साभार

अब अध्ययन से दो बातें उभर कर सामने आती है। एक इन्द्रिय भोग, दूसरा स्त्री और पुरुष के मध्य आकर्षण। यहां यह भी सत्य है कि मात्र स्त्री एवं पुरूष के मध्य का आकर्षण ही सम्पूर्ण इन्द्रिय सुख नही कहा जा सकता। तब यह स्वयमेव प्रमाणित हो जाता है कि इन्द्रिय सुख में समस्त भौतिक सुखों का योग समाहित है और यही काम को कामना के  रूप में सामने लाती है| इन अर्थों में यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि काम का मूल स्वरूप कामना है तथा लैगिंक भोग संबंधी काम-भाव इसका अंग मात्र है।

यह अलग बात है कि लैंगिक भोग ने काम की कामनाओं पर जय प्राप्त कर लिया, प्रतीत होता है। इसलिये सामान्य जन ‘काम’ का प्रसंग आते ही प्रथमतः नारी एवं पुरुष के मध्य के आकर्षण से आगे बढ़कर नारी भोग को सर्वोपरि मानने लगते है।

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यह एक निर्विवाद सत्य है कि व्यक्ति की कामनाएं अनन्त होती है। कामनाऐं, दुख एवं कष्टों को आमंत्रित करती है। किन्तु व्यक्ति क्षणिक कामना भोग के लिये इनका आत्मघाती स्वागत करने को सदैव प्रस्तुत रहता है। यद्यपि कि धर्म ग्रंथों में कामनाओं से विमुख होकर सुखी रहने का सूत्र दिया है तथापि कामना की अहमियत को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।

आज चारों ओर भागमभाग मचा है। व्यक्ति ही व्यक्ति से नहीं अपितु एक देश दूसरे देश से आगे बढ़ना चाहता है। यह आगे बढ़ जाने का भाव क्या है। यह सभी कुछ पा लेने की होड़ के पीछे मानसिकता क्या है।

स्पष्ट है यह मानसिकता प्रतिद्वंदिता है जिसके मूल रूप में महत्वाकांक्षा है। महत्वकांक्षा के लिये उच्च श्रेणी की मानसिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है और यह ऊर्जा कामनाओं की पूर्ति के लिये आवश्यक क्रियात्मकता से उत्पन्न होती है। क्रियात्मकता ही तो व्यक्ति को गतिशील बनाती है और गतिशील व्यक्ति ही सृजनशील हो सकता है। सृजन से ही तो विकास संभव है। अतः स्पष्ट है कि कामना, सृजन और विकास को जन्म देती है।

वैसे भी व्यक्ति कामना-रहित हो भी कैसे सकता है। कामना तो व्यक्ति का प्राणतत्व है कामना में कल्पना निकट से जुड़ी है। कल्पना का संबंध मानस से है और मानस का सीधा संबंध अन्तस से है। इससे यह स्पष्ट होता है कि व्यक्ति प्रकृति से कल्पनाशील होता है और कल्पना यथार्थ में प्राप्त कर भोग करना उसका अभीष्ठ होता है। कल्पना और यथार्थ के मध्य के व्यवधान को वह अन्तस से स्वीकार नहीं करता। यहां अन्तस से मन, वचन व कर्म को पृथक नहीं किया जा सकता है जिनका प्रयोग वह भोग प्राप्ति के लिये करने आकुल रहता है। भोग की यह अकुलाहट उसे क्रियाशील बनाये रखती है |

( लेखक शिवशंकर पटनायक के निबंध संग्रह विकार विमर्श का एक अंश )

छत्तीसगढ़ के पिथौरा जैसे कस्बे  में पले-बढ़े ,रह रहे लेखक शिवशंकर पटनायक मूलतःउड़ियाभासी होते हुए भी हिन्दी की बहुमूल्य सेवा कर रहे हैं। कहानी, उपन्यास के अलावा  निबंध  लेखन में आपने कीर्तिमान स्थापित किया है। आपके कथा साहित्य पर अनेक अनुसंधान हो चुके हैं तथा अनेक अध्येता अनुसंधानरत हैं।
‘विकार-विमर्श” निबंध संकलन 44 स्वाधीन चिंतन परक, उदान्त एवं स्थायीभावों का सरस सजीव गद्यात्मक प्रकाशन है। प्रौढ़ चिंतन, सूक्ष्म विश्लेषण एवं तर्कपूर्ण सुसम्बद्ध विवेचन एवं मनोविकारों का स्वरूप निर्धारण उनका रुपान्तरण आवश्यकता आदि पर पटनायक जी का चिंतन दर्शनीय है| deshdigital  इन निबंधों का अंश  उनकी अनुमति से प्रकाशित कर रहा है |

 

 

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