वृद्धावस्था पेंशन घोटाला: बरेकेल खुर्द पहुंची जाँच टीम
महासमुंद जिले के पिथौरा जनपद के बरेकेल खुर्द गाँव में 41 युवाओं को विगत 9 साल से वृद्धावस्था पेंशन मिलने की deshdigital की खबर के बाद गुरुवार को जिला पंचायत द्वारा गठित चार सदस्यीय जांच समिति ने जांच की।
पिथौरा| महासमुंद जिले के पिथौरा जनपद के बरेकेल खुर्द गाँव में 41 युवाओं को विगत 9 साल से वृद्धावस्था पेंशन मिलने की deshdigital की खबर के बाद गुरुवार को जिला पंचायत द्वारा गठित चार सदस्यीय जांच समिति ने जांच की। समिति अब जिला पंचायत में जांच रिपोर्ट पेश करेगी जिसके बाद कार्यवाही की जाएगी|
जांच समिति ने गुरुवार को कुछ स्थानीय पत्रकारों की उपस्थिति में जांच की | जांच में पाया गया कि जिन 41 लोगों को पेंशन दिया जा रहा है वे वास्तव में पेंशन के हकदार नहीं हैं । इन सभी के आधार कार्ड तो पेंशन के लिए पात्र होने की जन्मतिथि अंकित है। परन्तु वास्तविक मतदाता सूची एवम जन्मतिथि में आधार से 10 से 20 वर्ष तक की उम्र कम दर्ज की गई है।
41 में से 16 पेंशन धारियों ने अपना बयान समिति के समक्ष दर्ज कराए है। किसी ने भी अपनी उम्र के बारे में साफ नहीं बताया। लिहाजा अब आधार कार्ड की जांच भी की जा सकती है।
पंचायत में कोई प्रस्ताव नहीं- सिंह
समाज कल्याण विभाग की उप संचालक श्रीमती संगीता सिंह ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए बताया कि वे जांच के लिए टीम के साथ आई हैं । कुछ ग्रामीणों सहित पंच सरपंच एवम सचिव के बयान लिए गए है।
प्रथम दृष्टया किसी भी पेंशन प्रकरण में पंचायत का प्रस्ताव अनिवार्य होता है परन्तु इनमे से किसी के नाम का प्रस्ताव नहीं है और ना ही इसकी जानकारी जिला स्तर पर दी गयी है। सभी पेंशनधारी विगत 7 से 8 वर्षों से पेंशन लेने की बात स्वीकार कर रहे हैं ।
क्या अब इनका पेंशन बन्द होकर अब तक दिए गए पेंशन की रिकवरी की जाएगी ? इस पर उन्होंने कहा कि हमारे द्वारा रिपोर्ट पेश की जाएगी उसके बाद पुनः सत्यापन के पश्चात ही कोई कार्यवाही की जाएगी।
आखिर जिम्मेदार कौन?
प्रथम दृष्टया यह बात सामने आ रही है कि ग्राम की पंचायत सचिव एवम सरपंच ने उक्त अपात्रों का नाम पेंशन हेतु आखिर किसी के दबाव में भेजा या स्वयम ही भेज दिया। नाम भेजने के बाद पिथौरा जनपद के तात्कालिक जिम्मेदार अधिकारिओ ने इसकी जानकारी अपने जिला कार्यालय में क्यों नही दी?
सचिव गुलाब कोसरिया के अनुसार जब उन्हें पता चला कि पेंशन सूची में अपात्रों का नाम है तब उन्होंने इसकी सूचना जनपद कार्यालय में दी। इसके बाद भी पेंशन रोकने की बजाय पेंशन चालू रखने के निर्देश दिए गए।
पूरे मामले को देखते हुए प्रश्न यह उठता है कि जनपद का आखिर वह अधिकारी कौन था जिसने उसे पुनः मौखिक आदेश कर पेंशन देते रहने बाध्य किया ?
सन 2012 एवम 2016 में सरपंच पुरषोत्तम ध्रुव द्वारा उक्त सम्बन्ध में कई गयी शिकायत के बाद जनपद के दो कर्मी क्रमशः श्री चौधरी एवम श्रीगजेंद्र को जांच अधिकारी बनाया गया था ।इन्होंने जांच की या नहीं ? यदि की तो इनकी रिपोर्ट पर क्या कार्यवाही की गई? यदि नहीं तो ऐसा कौन सा कारण था कि जांच रोकनी पड़ी।
बहरहाल ,छत्तीसगढ़ में शायद पेंशन घोटाले का यह अकेला मामला होगा जिसमें स्वयम सरपंच द्वारा शिकायत के बाद भी कार्यवाही नहीं हो सकी। जानकर बताते हैं कि इस तरह के घोटाले जनपद क्षेत्र की अनेक पंचायतों में हो रहे हैं |
(deshdigital के लिए पिथौरा से रजिंदर खनूजा)