एनसीईआरटी पाठ्यक्रमों में बदलाव पर विवाद, कितना जरूरी ?
एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रमों में बदलाव की कवायद पर जारी विवाद के बीच स्पष्ट कर दिया है कि अब किसी भी स्थिति में बदले गये पाठ्यक्रम वापस नहीं होंगे. इसका तात्पर्य है कि अब इन्हीं बदले हुए पाठ्यक्रमों के साथ अध्ययन-अध्यापन एवं परीक्षाएं होंगी.
एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रमों में बदलाव की कवायद पर जारी विवाद के बीच स्पष्ट कर दिया है कि अब किसी भी स्थिति में बदले गये पाठ्यक्रम वापस नहीं होंगे. इसका तात्पर्य है कि अब इन्हीं बदले हुए पाठ्यक्रमों के साथ अध्ययन-अध्यापन एवं परीक्षाएं होंगी. एनसीईआरटी ने साफ कर दिया है कि इसके लिए बाकायदा 25 विषय विशेषज्ञ और 16 सीबीएसई स्कूली शिक्षकों की समिति की सलाह ली गई है, और इनके रिपोर्ट के आधार पर बदलाव किये गए हैं. चूंकि पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत ’सिलेबस को रैशनलाइज’ बनाया गया है, लिहाजा जो पाठ्यक्रम बदला गया है वो वापस किताबों में नहीं जुड़ेगा.
उल्लेखनीय है कि इतिहास, नागरिक शास्त्र, राजनीति विज्ञान और हिन्दी की किताबों से कई अध्याय, खण्ड, अंश, प्रकरण एवं परिच्छेद इत्यादि जानकारियां हटा दी गई हैं. इसमें मुगलकाल, महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे, 2002 के गुजरात दंगे, आपातकाल, शीतयुद्ध और नक्सली आंदोलन से जुड़े तथ्यात्मक आंकड़ें शामिल हैं.
एनसीईआरटी और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग इन दिनों स्कूली एवं उच्चशिक्षा के पाठ्यक्रमों में बदलाव की चर्चा को लेकर सुर्खियों पर हैं. पाठ्यक्रमों में बदलाव की कवायद कितनी जरूरी या कितनी प्रासंगिक है ? यह अहम सवाल तो है, साथ ही साथ यह मसला भी महत्वपूर्णं है कि पाठ्यक्रमों में होने वाले या हो रहे अथवा किये जा रहे बदलाव कितने उपयोगी, तार्किक एवं सार्थक हैं ? पाठ्यक्रमों में किया जा रहा बदलाव विद्यार्थियों के लिए कितना लाभदायक या उपयोगी होगा ? यह सवाल भी बेहद प्रासंगिक है क्योंकि पाठ्यक्रमों में बदलाव का मुद्दा सीधा-सीधा विद्यार्थियों के कॅरियर, जीवन से जुड़ा होता है. इतना ही नहीं बल्कि पाठ्यक्रमों में बदलाव का मसला बेहद संवेदनशील एवं व्यापक हित से जुड़ा होता है.
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा का प्री-ड्राफ्ट जारी करते हुए छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों और विद्वानों जैसे हितधारकों से सुझाव आमंत्रित किए हैं. ’इसरो’ के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति ने इस प्री-ड्राफ्ट को तैयार किया है, जिसमें कहा गया है कि छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों, विशेषज्ञों, विद्वानों और पेशेवरों से इस संबंध में फीडबैक आवश्यक है, क्योंकि स्कूली शिक्षा के विभिन्न चरणों में विद्यार्थियों की अलग-अलग आवश्यकताएं, शैक्षणिक दृष्टिकोण और सीखने-सिखाने की सामग्रियां होतीं हैं, लिहाजा व्यापक विचार-विमर्श आवश्यक है.
मंत्रालय एवं एनसीएफ के मुताबिक पाठ्यपुस्तकें अगले साल से शुरू की जाएंगी. शिक्षा मंत्रालय ने 5$3$3$4 पाठ्यचर्या और शैक्षणिक संरचना के आधार पर चार राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) तैयार की है, जिसकी एनईपी 2020 ने स्कूली शिक्षा के लिए सिफारिश की है. प्री-ड्राफ्ट में कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में सुधार, 10 $ 2 संरचना से 5 $ 3 $ 3 $ 4 संरचना में बदलाव को संरेखित करना और विभिन्न चरणों में पाठ्यचर्या और शैक्षणिक बदलावों का सुझाव देते हुए विकासात्मक दृष्टिकोण पर जोर देना, मूलभूत, प्रारंभिक, मध्य और माध्यमिक की सिफारिशों में शामिल हैं.उल्लेखनीय है कि एनसीएफ को चार बार 1975, 1988, 2000 और 2005 में संशोधित किया जा चुका है, और मौजूदा नया प्रस्तावित संशोधन ढांचे का पांचवां संशोधन होगा.
एनसीईआरटी की किताबों में बदलावों या विभिन्न हिस्सों को हटाने का निर्णय विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर किये जाने की बात कही जा रही है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों ने दावा किया कि उन्होंने तो सिर्फ सुझाव दिए थे, उन्हें मानने और न मानने का आखिरी फैसला परिषद का है. उच्च शिक्षा से जुड़े कुछ विद्धानों का मानना है कि सरकार शिक्षा जगत में ‘राष्ट्रवादियों’ के नजरिए के साथ ‘वामपंथी उदारवादियों के पक्ष में दिखावटी नियंत्रित झुकाव’ को संतुलित करना चाहती है, लेकिन एनसीईआरटी के द्वारा बदलावों को लेकर शुरू हुआ प्रयास या कहें विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. जहां, इतिहास की किताबों से हटाए गए प्रमुख हिस्सों में मुगलों, महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे के अंश हैं, वहीं राजनीति की किताबों से आपातकाल और शीत युद्ध के कुछ हिस्सों को हटा दिया गया है.
इस विवाद के केंद्र में तथ्य यह है कि तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया के तहत किए गए बदलावों को ऑनलाइन बुकलेट के जरिए सार्वजनिक तौर पर सबके सामने रख दिया गया है, लेकिन हटाए गए कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जिनका इस बुकलेट में कोई जिक्र नहीं है. कहा जा रहा है कि ये किताबों में मौजूद हिस्सों को हटाने का चोरी-छुपे किया गया प्रयास है. एनसीईआरटी ने चूक को संभवत नोटिस न कर पाने की वजह से हुई गलती बताया है, लेकिन हटाए गए इन हिस्सों को फिर से वापस लाने से इनकार कर दिया है. साथ ही यह भी कहा है कि पाठ्यपुस्तकें वैसे भी 2024 में आने वाले नेशनल करिकुलम के हिसाब से बदलने की ओर अग्रसर हैं. पहले लिए गए एक इंटरव्यू में एनसीईआरटी ने समिति के सदस्यों और उनके चयन से जुड़े किसी भी सवाल का जवाब देने से इंकार कर दिया था.
एनसीईआरटी ने कहा है कि हटाए गए हिस्से “ओवरलैपिंग” और “दोहराए जा रहे थे इसलिए उन्हें हटा दिया गया था. परिषद ने अपने जस्टिफिकेशन में कहा है कि, “पाठ्यपुस्तकों की सामग्री को एक ही कक्षा में अन्य विषय क्षेत्रों में शामिल समान सामग्री के साथ ओवरलैप करने के मद्देनजर युक्तिसंगत बनाया गया है.” जब से विवाद शुरू हुआ, एनसीईआरटी के निदेशक सकलानी ने यह कहते हुए ऑन रिकॉर्ड में चला गया कि इतिहास, राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र सहित विषयों की पाठ्यपुस्तकों में सामग्री में बदलाव “विशेषज्ञ समिति” की सिफारिश के आधार पर किया गया था, लेकिन इस बारे में अभी तक साफ नहीं हो पाया है कि “एक्सपर्ट कमीटी” के सदस्य कौन हैं क्योंकि नई पाठ्यपुस्तकों में जो नाम हैं वे 2005 की मूल पाठ्यपुस्तक विकास समिति के हिस्से के हैं.
पाठ्यपुस्तक विकास समिति के कई सदस्यों का मानना है कि “एक तरीका है जिससे पाठ्यपुस्तकों में परिवर्तन किया जाता है. पहले मूल पाठ्यपुस्तक समिति को परिवर्तनों के बारे में सूचित करना होता है, फिर वे प्रस्ताव की जांच करते हैं. इस पर टिप्पणी लिखते हैं कि परिवर्तन क्यों किए जाने चाहिए या क्यों नहीं किए जाने चाहिए ? लेकिन हालिया अभ्यास में उस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. वास्तव में 2018 के बाद से किताबों में किए जा रहे किसी भी बदलाव के बारे में हमसे सलाह नहीं ली गई है.
एनसीईआरटी ने जम्मू-कश्मीर के विलय की शर्त हटाई देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद का उल्लेख भी किताबों से हटाया गया. 12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की किताब से ’महात्मा गांधी द्वारा हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रयासों से हिंदू चरमपंथी उद्वेलित होने संबंधी अंश’ हटाया गया है. 11वीं-12वीं समाजशास्त्र की किताबों से ’गुजरात दंगों वाले अंश’ हटाये गए हैं। हिन्दी से गजल और गीत भी हटाए जा रहे हैं. फिराक गोरखपुरी की गजल और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का गीत ’गाने दो मुझे’ को हटाया जा रहा है. इसके अलावा विष्णु खरे की ’एक काम और सत्य’ को भी हटाया गया है. ’मुगल काल’ हटाने की खबरें हैं. 11वीं की बुक ‘थीम्स इन वर्ल्ड हिस्ट्री’ से ‘सेंट्रल इस्लामिक लैंड्स’, ‘संस्कृतियों का टकराव’ और ‘द इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन’ जैसे चैप्टर हटा दिए गए हैं. इसी तरह 10वीं की बुक लोकतांत्रिक राजनीति-2 से लोकतंत्र और विविधता, लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन, लोकतंत्र की चुनौतियां जैसे चौप्टर हटाए जा रहें हैं. स्वतंत्र भारत में राजनीति की किताब से ‘जन आंदोलन का उदय’ और ‘एक दल के प्रभुत्व का दौर’ हटाया गया है.
डॉ. लखन चौधरी
(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)
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